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हमारे विंध्य के सेतबन्धु थे ‘लक्ष्मीनारायण नायक’ :- जयराम शुक्ल

Lakshminarayan Nayak

Lakshminarayan Nayak

Story Of Lakshmi Narayan Nayak: मध्यप्रदेश में हजम हो जाने के बाद भी हम विंध्यप्रदेश को एक राजनीतिक-सांस्कृतिक इकाई के रूप में देखते और परिभाषित करते आए हैं। मैं इस समूचे भूभाग को दो प्रकाशस्तंभों के आलोक में देखा करता था.. ये दो स्तंभ थे यमुना प्रसाद शास्त्री, रीवा (Yamuna Prasad Shashti )’ और लक्ष्मीनारायण नायक, टीकमगढ़ (Lakshmi Narayan Nayak)। नायक जी के बिछड़े आज पांच साल पूरे हो गए।

ये दोनों महापुरुष विंध्यप्रदेश के ओर-छोर थे। संसदीय राजनीति में भी ‘दो जिस्म एक जान’ की भाँति रहे। शास्त्री और नायक मध्यप्रदेश की विधानसभा में साथ-साथ तो रहे ही, 77 में दोनों लोकसभा में एक साथ पहुंचे। यद्यपि वे विंध्य के लौहपुरुष कहे जाने वाले ‘चंद्रप्रताप तिवारी’ के भी अत्यंत निकट थे। मध्यप्रदेश की विधानसभा में आज भी नायकजी और चंद्रप्रताप तिवारी की युति संसदीय विद्वता की चरमोत्कर्ष मानी जाती है। चंद्रप्रताप जी के कांग्रेस में जाने के बाद समाजवादी राजनीति में नायक और शास्त्री की युति बनी।

लक्ष्मीनारायण नायक की कहानी

नायक जी, शास्त्री जी के साथ मिलकर विंध्यक्षेत्र के मुद्दों पर एक साथ लड़े-भिड़े। इन दोनों का बड़ा सपना था विंध्य के ओर-छोर जोड़ने वाली ललितपुर सिंगरौली रेल परियोजना। दोनों की इस साझा माँग की स्वीकृति दी थी तत्कालीन रेलमंत्री मधुदंडवते ने। 80 से 96 तक इस परियोजना की फाइलों में जमी गर्द को अटलबिहारी वाजपेयी ने साफ किया.. पाँच साल और सही पर शास्त्री और नायक का सपना पूरा होगा इस पर पूर्ण विश्वास है।

नायकजी को शास्त्रीजी के सानिध्य में रहकर जाना. दोनों के व्यक्तित्व को एक शब्द में समेटना हो तो बस इतना ही कह सकते हैं, शास्त्री जी तेजस्वी थे तो नायकजी तपस्वी। सरलता, सादगी, मधुरता में वे शास्त्री जी से श्रेष्ठ थे, उम्र में ज्येष्ठ तो थे ही।

आखिरी बार नायकजी का सानिध्य मिला 27 मार्च 2000 को जब भोपाल में विंध्यप्रदेश के पुनरोदय के संकल्प के लिए भोपाल में अधिवेशन बुलाया गया। तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष श्रीयुत श्री निवास तिवारी (Sriniwas Tiwari) की पहल पर 10 मार्च 2000 को विधानसभा में विंध्यप्रदेश के पुनरोदय का अशासकीय संकल्प सर्वसम्मति से पारित किया गया। तिवारी जी ने सदन के बाहर इस संकल्प को पारित कराने और इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु अधिवेशन बुलाने का जिम्मा मुझे सौंपा गया।

27 मार्च 2000 को यह अधिवेशन भोपाल के 45 बंगले स्थित स्पीकर आवास में आयोजित किया गया। जब समूचे विंध्यप्रदेश के जनप्रतिनिधियों को इस अधिवेशन में भाग लेने के लिए न्योता गया तब एक संशय सभी के मन में तैर रहा था कि क्या बुंदेलखंड हिस्से के जनप्रतिनिधि साथ देंगे। लेकिन सुखद आश्चर्य तब देखने को मिला जब बुंदेलखंड के जनप्रतिनिधि अधिवेशन में सबसे बड़ी संख्या में सबसे पहले पहुँचे।

इनमें सबके अगुवा नायक जी ही थे। अन्य प्रतिनिधियों में राजेन्द्र भारती विधायक दतिया, उमेश शुक्ल विधायक छतरपुर, केशरी चौधरी विधायक, मगनलाल गोइल विधायक टीकमगढ़, कैप्टन जयपालसिंह पूर्व विधायक पवई-पन्ना व बड़ी संख्या में अन्य प्रतिनिधि थे..। बघेलखण्ड हिस्से से श्रीयुत के अलावा शिवमोहन सिंह, इंद्रजीत कुमार, सईद अहमद, सबनम मौंसी, पंजाब सिंह, रामप्रताप सिंह सभी विधायक डा. लालता खरे, विश्वभंर दयाल अग्रवाल, विजयनारायण राय समेत अन्य थे..।

इस अधिवेशन में लक्ष्मीनारायण नायकजी के विचार संक्षिप्त किंतु अत्यंत सारगर्भित थे। उन्होंने कहा था-

“मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मैं और जो मेरे साथी हैं इस पक्ष में रहे हैं कि छोटे राज्य होने चाहिए। बराबर हम लोग उसका प्रयास करते रहे। अभी 16 मार्च को ही हजारों साथी पकड़े गए छोटे राज्यों की मांग की लड़ाई लड़ते हुए। मैंने अखबार में पढ़ा कि तिवारी जी ने 27 मार्च को यहां एक सम्मेलन बुलाया है विंध्यप्रदेश राज्य के लिए, मैं चला आया। मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि मेरा विंध्यप्रदेश से बहुत ही ताल्लुक रहा है। जब मैं कांग्रेस में था तो जीवन भर सहयोग रीवा से ही मिला। जब मैं समाजवादी दल में आया तो तिवारी जी, जोशीजी, शास्त्री जी, और भी साथी जो आज नहीं हैं उनके साथ काम करने को मिला। सबने विंध्यप्रदेश के लिए लड़ाई लड़ी, विंध्यप्रदेश बन गया, विंध्यप्रदेश मिट गया..!


इतना जरूर चाहता हूँ और जो कहना चाहता हूँ कि जो दिक्कतें, परेशानियां, आपकुछ लोग महसूस करते हैं, ऐसे प्रांत की रूपरेखा आप रखें जिसमें जो पीड़ित है, पददलित है, परेशान है, जिनके झोपड़े नहीं हैं , खाने को दाना नहीं है जैसे स्वाराज के बाद ऐसा महसूस हुआ था, हमारा राज्य ऐसा हो गया। अँग्रेजी राज्य चला गया। इसलिए विंध्यप्रदेश बनने के बाद नीचे से लेकर ऊँचे तक सभी साथियों को बड़ी प्रसन्नता हो, खुशहाली हो, परेशानी न हो।”

विंध्यप्रदेश के पुनरोदय की आकांक्षा दिनों दिन प्रबल होती जा रही है। रीवा से लेकर भोपाल तक कई संगठन सक्रिय हैं। युवाओं और छात्रों को अब ऐसा महसूस होने लगा है कि हमारा हक मारा गया। हमें साजिशन पीछे किया गया। श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी की पहलपर विधानसभा में पारित हुआ संकल्प अभी भी लोकसभा में जिंदा है। 21 जुलाई 2000 को लोकसभा में रीवा सांसद सुंदरलाल तिवारी ने इस संकल्प की याद दिलाई थी। तब तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण अड़वाणी ने इसके परीक्षण की बात कही थी।

विंध्यप्रदेश लक्ष्मीनारायण नायक का सपना था, शास्त्री ने इस हेतु खुद को होम दिया, श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी की हर स्वाँस में विंध्यप्रदेश बसा था, जगदीश चंद्र जोशी की आखिरी अभिलाषा विंध्यप्रदेश का पुनरोदय था।
नायकजी विंध्यप्रदेश की आकांक्षा के प्रबल स्वर थे। उनकी स्मृतियां यहां की भूमि, नदी-तलाबों, वनप्रांतरों में बसी हैं। वे सुचिता की राजनीति की पराकाष्ठा थे। आइए हम सब नायकजी को नमन करते हुए उनके आदर्शों को आत्मसात करने की ओर बढ़े।

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