Kedarnath Jyotirling Ki kahani Hindi Mein: 2 मई शुक्रवार से केदारनाथ मंदिर के पट खुल गए हैं। पहले ही दिन कुल 10 हजार तीर्थयात्रियों ने भगवान केदारनाथ के दर्शन किए। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म के पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। मान्यता है द्वापर युग में स्वर्ग जा रहे पांडवों ने भगवान केदारनाथ शिव की पूजा की थी। लेकिन उत्तराखंड में केवल एक केदारनाथ नहीं हैं। बल्कि केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमाहेश्वर और कल्पेश्वर सहित भगवान शिव को समर्पित कुल पांच मंदिर हैं जिन्हें पंचकेदार कहा जाता है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी | Kedarnath Jyotirling Story
महाभारत और पुराणों के अनुसार भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना द्रौपदी सहित पांच पांडवों ने की थी। कथा है महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने कई वर्षों तक राज्य किया। लेकिन कुछ वर्षों बाद उनका मन राज-काज से उचट गया, जिसके बाद महर्षि वेदव्यास के परामर्श के बाद उन्होंने अर्जुन के पौत्र, अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को राज-काज सौंपकर स्वर्ग की यात्रा पर चल दिए। लेकिन उससे पहले भगवान वेदव्यास ने पाप मुक्ति के लिए उन्हें भगवान शिव के दर्शन के लिए कहा।
पांचों भाई पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ पहले काशी गए। लेकिन पांडवों को आता देख भगवान काशी से लुप्त हो गए और गढ़वाल क्षेत्रों के वन में तप करने चले गए। भगवान शिव अपने भाई बांधवों की हत्या के कारण पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान को काशी में ना पाकर पांडव उनके पीछे हिमालय क्षेत्र की तरफ गए जहाँ भगवान शिव तपस्यारत थे।
पांडवों को अपनी तरफ आता देख भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण किया और वहीं चर रहे अन्य पशुओं से मिल गए। पांडव जान गए भगवान शिव उनसे नहीं मिलना चाहते हैं, इसीलिए वह इन पशुओं के बीच मिले हुए हैं। इसीलिए उन्होंने एक युक्ति चली घाटी से निकलने के लिए जो संकरा मार्ग था भीम उस पर दोनों तरफ पैर रख कर खड़े हो गए और बाकि पांडव पशुओं को हाँकने लगें। अब सभी जानवर तो एक-एक करके उस संकरे मार्ग से होकर निकलने लगे। एक वृषभ रूपी भगवान शिव ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि मार्ग के ऊपर भीम खड़े थे। भगवान शिव आखिर उनके नीचे से तो निकल नहीं सकते थे।
अब एक वृषभ को देख कर पांडव पहचान गए, यही भगवान शिव हैं। इसीलिए वह उन्हें पकड़ने दौड़े, पांडवों को अपनी तरफ आता देखा भगवान शिव वहीं पृथ्वी पर समाने लगे। लेकिन भीम ने दौड़कर उनकी पूंछ पकड़ ली। हालांकि बाकि का तो अंग पृथ्वी पर समा गया। पांडवों के दर्शन की उत्कट अभिलाषा को देखकर भगवान शिव प्रकट हुए और पांडवों को दर्शन देते हुए पापमुक्त किया। पांडवों ने भी वहाँ पर उपस्थित बैल के पीठ वाले हिस्से की जगह पर एक शिवलिंग की स्थापना की। तभी से यहा शिवलिंग स्थापित हो गया और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हो गया।

कौन से हैं पंच केदार | Which are the Panch Kedar
लेकिन भगवान शिव के आदेश पर उन्होंने उन हिस्सों की भी खोज की, जहाँ भगवान शिव के शरीर के बाकी हिस्से निकले थे। केदारनाथ के अलावा तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमाहेश्वर और कलपेश्वर वह स्थान थे। पांडवों ने वहाँ भी शिवलिंगों की स्थापना कर उन्हें प्राण प्रतिष्ठित किया। गढ़वाल का यह क्षेत्र पंच केदारों के वजह से पुराणों में केदारखंड कहलाता है। यहाँ पर पंच केदारों की यात्रा भी की जाती थी।
केदारनाथ मंदिर- चूंकि भगवान शिव ने यहाँ पांडवों को प्रत्यक्ष दर्शन दिया था और एक ज्योति के रूप में स्थापित हैं। इसीलिए इसे केदारनाथ मंदिर कहते हैं। यह 3528 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव का कूबड़ वाला भाग निकला था, माना जाता है केदारनाथ में बहुत वर्षों तक हिमयुग रहा। जिसके बाद 8-9 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर को पुनः खोजकर इसे पुनर्स्थापित किया।
तुंगनाथ- पंचकेदारों में से दूसरा केदार तुंगनाथ को ही माना जाता है। यह मंदिर बहुत 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, पंच केदारों में यह सब ज्यादा ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। इसके साथ ही यहाँ सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित शिवलिंग भी है। यहाँ भगवान शिव के वृषभ रूपी भगवान शिव के हाथ दिखाई दिए थे।
रुद्रनाथ- पंचकेदारों में से तीसरा केदार भगवान शिव का रुद्रनाथ शिवालय है। जो 2286 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है यहाँ पर वृषभ रूपी भगवान शिव का मुख प्रदर्शित हुआ था। इसीलिए इसे रुद्रनाथ शिवालय कहते हैं।
मध्यमाहेश्वर- मध्यमहेश्ववर शिवलिंग गढ़वाल के गौंडर नामक गाँव में 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है यहाँ भगवान शिव के शरीर का नाभि सहित मध्यभाग उभरा था। इसीलिए इसे मध्यमाहेश्वर शिवलिंग कहते हैं।
कल्पेश्वर- कल्पेश्वर पंच केदारों से पांचवा और आखिरी केदार खंड माना जाता है। यह हिमालय में 2200 मीटर ऊंचाई पर स्थित है, माना जाता है यहाँ भगवान शिव का सिर और उसके बाल दिखे थे। इसीलिए यहाँ शिव को जटाधारी या जटेश्वर रूप में पूजा जाता है।