Stand up comedy का युवाओं पर पड़ने वाला दोहरा प्रभाव

impotance of stand up comedy

Stand up comedy: “हंसना” जीवन की सबसे ज्यादा जरूरी प्रक्रिया है, इंसान को अपने जीवन में हंसते रहना चाहिए इससे उनका तनाव भी कम होता है, और एक पॉजिटिव वाईब्ज आती है। कॉमेडी का क्षेत्र भी बहुत विशाल है, कॉमेडी शो हों या कॉमेडी मूवी दर्शक इन्हें देख कर अपने पूरे दिन की थकान दूर कर देते हैं। अब कॉमेडी शोज़ को नया मिला है जिसे Stand up comedy कहते हैं। Stand up comedy का प्रचलन सोशल मीडिया से ले कर लाइव शोज़ तक तेजी से फैल रहा है, और बड़ी संख्या में यूवाओ को प्रभावित कर रहा है। आज हम कॉमेडी और हंसी के इस माध्यम के बारे में चर्चा करेंगे कि आखिर इन माध्यम का हमारी युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

Stand up comedy से आत्माविश्वास बढ़ता है

Stand up comedy increases self-confidence: Stand up comedy में कॉमेडियंस ज्यादा तर खुद का ही मज़ाक बनाते हैं. और उन्होंने अपने जीवन में ज्यादा बदमाशी की या उनके साथ क्या मजाकिया चीज़ें हुई वो अपने ऑडियंस को शेयर करते हैं। ताकि हर व्यक्ति अपने जीवन में होने वाली हर घटना को स्वतंत्र रूप से अपनाए, खुद को स्वीकार करें और आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कहने में हिचकिचाए नहीं। इसी के साथ stand up comedy में उन मुद्दों पर भी चर्चा होती है जिन पर इंसान खुल कर बाते नहीं करता जिससे युवा ज्ञान भी प्राप्त करते हैं और ठहाके भी लगाते हैं। Stand up comedy आज के समय में करियर का अच्छा स्कोप है, कई ऐसे कॉमेडियंस हैं जिन्होंने शुरुआत तो लाइव शोज़ से की लेकिन आज वो बॉलीवुड के बड़े पर्दों में भी लोगों को हंसाते हैं l।

Stand up comedy युवाओं की सोच को कैसे बिगाड़ रहा है

stand up comedy is spoiling the thinking of youth: हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार अगर कहीं सकारात्मकता है, तो नकारात्मकता भी जरूर होगी. तो हम ये कैसे मान सकते हैं, की ऐसे शोज़ जो लोगों को हंसाते हैं उनका दुष्प्रभाव युवाओं पर नहीं पड़ सकता। आज कल की यूथ बड़ी मॉडर्न हैं, उन्हें पुराने जोक्स से हंसना बेहद मुश्किल है, इसी वजह से Stand up comedians आज कल के नए जोक्स बनाने लग गए हैं, इन जोक्स में अश्लीलता है. जो युवाओं के दिमाग पर गलत छाप छोड़ती है। इन जोक्स में संस्कृति का मजाक बनाया जाता है। धर्म की धज्जियां उड़ाई जाती है। परिवार को लेकर मजाक बनाए जाते हैं, ऐसे मुझे जो गंभीर और संवेदनशील होते हैं जैसे– रेप, मानसिक बीमारी, आत्महत्या, जातिवाद इन मुद्दों पर ठहाके मार मार कर हंसा जाता है। क्या ये सभी मुद्दे हंसने लायक हैं? हमारी यूथ का चंद पल के हंसी मजाक के लिए इन मुद्दों फूहड़ता को बढ़ावा देना सही है।

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