Srimad Bhagwat Ktha 2025 : तप-आत्मा का आभूषण और साधक की सिद्धि का मूल आधार-पं. बाला व्यंकटेश शास्त्री

Srimad Bhagwat Ktha 2025- तप-आत्मा का आभूषण और साधक की सिद्धि का मूल आधार- पं. बाला व्यंकटेश शास्त्री – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर श्रीधाम वृन्दावन स्थित फोगला आश्रम में जारी सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव का चतुर्थ दिवस भक्तिभाव और आध्यात्मिक उल्लास के चरम पर रहा। पं. बाला व्यंकटेश शास्त्री ने अपने प्रवचन में कहा कि तप आत्मा का आभूषण और साधक की सिद्धि का मूल आधार है। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में तप को साधना का श्रेष्ठ साधन माना गया है। यह केवल व्रत, उपवास या शारीरिक कष्ट नहीं, बल्कि आत्मसंयम और आत्मशुद्धि की प्रक्रिया है। तप साधक को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध कराता है और उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। जिस प्रकार सोना आग में तपकर और अधिक चमकदार हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा भी तप की साधना से निर्मल और प्रकाशित होती है। तप साधक को धैर्य, सहनशीलता और समत्व का मार्ग दिखाता है तथा उसे सांसारिक मोह और आकर्षणों से मुक्त करता है।

जब भी अन्याय बढ़ता है, तब दिव्यता अवतरित होकर मानवता का मार्गदर्शन करती है

भगवान श्री कृष्ण के जन्म की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने कहा की श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण का जन्म प्रसंग दैवीय सौंदर्य और गहन प्रतीकात्मकता से युक्त है। जब धरती अत्याचार से कराह रही थी, तभी मध्यरात्रि के शांत क्षण में, कारागार की अंधकारमयी कोठरी दिव्य प्रकाश से आलोकित हो उठी। देवकी की कोख से प्रकट हुए श्यामसुंदर भगवान चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए थे, मानो स्वयं धर्म, सत्य और आशा ने नया जन्म लिया हो। यह जन्म केवल एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की, अधर्म पर धर्म की और भय पर प्रेम की विजय का शाश्वत प्रतीक है। श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव संसार को यह सन्देश देता है कि जब भी अन्याय बढ़ता है, तब दिव्यता अवतरित होकर मानवता का मार्गदर्शन करती है।

श्रीमद भागवत कथा में जब कृष्ण जन्म प्रसंग आया तो हर किसी ने अपने हृदय में अद्भुत शांति का अनुभव किया

श्रीमद्भागवत कथा में जब भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग आया, तो वातावरण में एक अद्भुत अलौकिकता छा गई। कथा स्थल पर भव्य झांकी का आयोजन हुआ, जिसमें श्रीकृष्ण के जन्म का वह दिव्य दृश्य जीवंत हो उठा। श्रद्धालु जब उस झांकी के माध्यम से बालकृष्ण के रूप का दर्शन करने लगे, तो उनके नेत्र स्वतः ही अश्रुधारा से भीग गए। किसी को लगा मानो स्वयं द्वारकाधीश उनके सामने बालरूप में प्रकट हो गए हों, किसी ने अपने हृदय में अद्भुत शांति का अनुभव किया। भक्ति और प्रेम से ओतप्रोत वातावरण में हर कोई भावविभोर हो उठा। शंख-घंटियों की गूंज, जयकारों की ध्वनि और भक्तों के हर्षित मुखमंडल—सब मिलकर ऐसा प्रतीत करा रहे थे कि जैसे वह दिव्य रात्रि पुनः अवतरित हो गई हो और समस्त जगत को यह संदेश दे रही हो कि जहाँ श्रीकृष्ण का जन्म होता है, वहाँ अंधकार नहीं टिकता।

प्रतिदिन कथा में सम्मिलित हो, पुण्य लाभ लेने का किया आग्रह

कथा श्रवण के अंत में सभी श्रद्धालुओं ने गहन शांति, आत्मसंतोष और भक्ति का रसास्वादन किया। इस अवसर पर श्रीमती अवधेश शुक्ल, डॉ. संध्या शुक्ला, श्रीमती साधना- डॉ. देवेश शुक्ल, डॉ. वंदना- प्रोफेसर राजनिवास शर्मा, डॉ. गायत्री- प्रोफेसर अखिलेश शुक्ल, डॉ. आरती- इंजी. संतोष तिवारी ने सभी श्रद्धालुओं, पत्रकार गणों तथा फोगला आश्रम के सदस्यों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त किया और सभी को प्रतिदिन कथा में सम्मिलित होकर पुण्य लाभ लेने का आग्रह किया।

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