डॉ. रामानुज पाठक सतना मध्यप्रदेश | एक ऐसी मनोवृति या सोच जिसका मूल आधार किसी भी घटना की पृष्ठभूमि में उपस्थित कारण को तार्किक रूप से जानने की प्रवृत्ति हो उसे “वैज्ञानिक दृष्टिकोण” कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति को विकसित कर विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तात्पर्य है कि हम तार्किक रूप से सोचें तथा दूसरों की कही बात को तर्क के पैमाने पर रखने के बाद विश्वास करें। हमारे संविधान के भाग चार (क) के अनुच्छेद 51 (क) में मौलिक कर्तव्यों के अंतर्गत हमारा कर्तव्य है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए प्रयास करे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संबंध तर्कशीलता से है। इसके साथ ही निष्पक्षता, मानवता, लोकतंत्र, समानता ,स्वतंत्रता आदि के निर्माण में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण कारगर सिद्ध होता है। विज्ञान और अंधविश्वास दोनों एक साथ नहीं रह सकते।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही सच्चा विज्ञान है तथा अंधविश्वास ,पाखंड है,अविज्ञान है।एमबीबीएस की पढ़ाई कर चुके तर्कवादी, चिकित्सक नरेंद्र दाभोलकर ने सन 1982 में अंधविश्वास उन्मूलन कार्य प्रारंभ किया था। 1989 में महाराष्ट्र अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना की थी। आजन्म समिति के डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर कार्याध्यक्ष रहे। अंधविश्वास उन्मूलन विषय पर दर्जन पुस्तकों का लेखन किया।पुस्तकों को अनेक पुरस्कार मिले। 20 अगस्त 2013 को अज्ञात तत्वों द्वारा गोली मारकर महाराष्ट्र पुणे में उनकी हत्या कर दी गई थी। मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था उन्हीं की याद में उनकी पुण्यतिथि 20अगस्त को राष्ट्रीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस दिवस को अंधविश्वास निर्मूलन दिवस, वैज्ञानिक चेतना, वैज्ञानिक मनोवृति, वैज्ञानिक स्वभाव दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।सभी दिवसो को डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की याद में मनाया जाता है।
डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की याद में देश में 38 सामाजिक संगठन ‘वैज्ञानिक चेतना दिवस’ मनाते हैं ।डॉ. नरेंद्र दाभोलकर अंधविश्वास निर्मूलन आंदोलन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे और उन्होंने महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना की थी।नरेंद्र दाभोलकर की पहली पुस्तक “भ्रम और निरसन “में अंधविश्वासों के विविध प्रकारों की जानकारी है।दूसरी पुस्तक “अंधविश्वास प्रश्न चिन्ह और पूर्णविराम” में अलग-अलग अंधविश्वासों के बारे में हमेशा से जो सवाल पूछे जाते हैं उनके सरल सीधे जवाब हैं। तीसरी पुस्तक “अंधविश्वास विनाशाय” में अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने आंदोलन करते समय जो अनगिनत संघर्ष किए हैं उनमें से कुछेक घटनाओं का वर्णन है। चौथी पुस्तक का नाम “सोचो तो जानो” इसके दो हिस्से हैं पहला वैज्ञानिक दृष्टिकोण और दूसरा अंधविश्वास निर्मूलन में लगे हुए व्यक्तियों के समक्ष पेश होने वाली समस्याओं या घटनाओं का वर्णन है। उनकी पांचवी पुस्तक है “विश्वास अंधविश्वास”जिस पर श्रद्धा और अंधविश्वास, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, फल ज्योतिष का पाखंड, मन और मन की बीमारियां, भूत बाधा देवी का संचार ,स्त्रियां और अंधविश्वास उन्मूलन, अंधविश्वास उन्मूलन की विस्तृत वैचारिक भूमिका, अंधविश्वास उन्मूलन और ईश्वर की संकल्पना, अंधविश्वास उन्मूलन और नीति विचार, पर जमकर तबियत से लिखा गया है।नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के पीछे के कारणों के बारे में विभिन्न सिद्धांत हैं, जैसे; दाभोलकर अंधविश्वास विरोधी आंदोलन के नेता थे और उन्होंने अंधविश्वास और जादू-टोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उनके कार्यों से अंधविश्वासी तत्वों को खतरा महसूस हुआ होगा।
दाभोलकर एक तर्कवादी लेखक थे और उन्होंने तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देने के लिए काम किया था। उनके विचारों से धार्मिक और रूढ़िवादी तत्वों को खतरा महसूस हुआ होगा।दाभोलकर एक सामाजिक कार्यकर्ता थे और उन्होंने सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उनके कार्यों से सामाजिक और राजनीतिक तत्वों को खतरा महसूस हुआ होगा। दाभोलकर ने महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति का गठन किया था, जिसका उद्देश्य अंधविश्वास के खिलाफ लड़ना था। इस समिति के कार्यों से अंधविश्वासी तत्वों को खतरा महसूस हुआ होगा।
इन कारणों से यह माना जा सकता है कि दाभोलकर की हत्या उनके अंधविश्वास विरोधी कार्यों, तर्कवादी विचारधारा, सामाजिक कार्य, और महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के गठन के कारण की गई थी। डाक्टर नरेंद्र दाभोलकर,वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए काम करते थे और उन्होंने लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में शिक्षित करने के लिए काम किया था, उनके इस विज्ञान सम्मत कार्य से रूढ़िवादी लोग चिढ़ते कुढ़ते थे। तर्कवादी चिकित्सक डॉ नरेंद्र दाभोलकर के शहादत दिवस को वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस मनाने के कई कारण हैं,जैसे: वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देने और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने के लिए मनाया जाता है।यह दिवस वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा देने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है।
यह दिवस नरेंद्र दाभोलकर की शहादत को याद करने और उनके द्वारा किए गए कार्यों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है।वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने और समाज में बदलाव लाने के लिए मनाया जाता है।यह दिवस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में शिक्षित करने के लिए मनाया जाता है। दरअसल विश्वास और अंधविश्वास में कई अंतर हैं,जैसे;विश्वास, आधारित ज्ञान और साक्ष्यों पर होता है। विश्वास, तर्कसंगत और तार्किक होता है।विश्वास में संदेह की गुंजाइश होती है और इसे बदला जा सकता है। विश्वास निरंतर शिक्षा और ज्ञान प्राप्ति को प्रोत्साहित करता है। जबकि अंधविश्वास, बिना आधार के और साक्ष्यों के बिना होता है।
अंधविश्वास, अतार्किक और अवैज्ञानिक होता है। अंधविश्वास में संदेह की कमी होती है और इसे बदलना मुश्किल होता है।अंधविश्वास, ज्ञान की कमी को बढ़ावा देता है और निरंतर शिक्षा को रोकता है।इन अंतरों को समझने से हम विश्वास और अंधविश्वास के बीच के अंतर को समझ सकते हैं और अपने जीवन में तर्कसंगत और आधारित वैज्ञानिक मनोवृत्ति युक्त निर्णय ले सकते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक तरीका है जिसमें हम दुनिया को देखते हैं और समझते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण में तार्किक सोच का महत्व है, जिसमें हम तर्कों और साक्ष्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण में प्रश्न पूछना और जिज्ञासा रखना महत्वपूर्ण है, जिससे हम नई जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण में प्रयोग और अनुसंधान का महत्व है, जिसमें हम विभिन्न परिस्थितियों में परीक्षण करते हैं और निष्कर्ष निकालते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण में साक्ष्यों का महत्व है, जिसमें हम साक्ष्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण में निरंतर शिक्षा का महत्व है, जिसमें हम नई जानकारी प्राप्त करते हैं और अपने ज्ञान को अद्यतन रखते हैं।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए, वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें दुनिया को समझने और समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से नवाचार और अनुसंधान को महत्व दिया जाता है, जिससे राष्ट्र की प्रगति में योगदान मिल सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से सामाजिक जिम्मेदारी को समझने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया जाता है, जिससे राष्ट्र के संसाधनों का संरक्षण हो सके।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे राष्ट्र की प्रगति में योगदान मिल सकता है।राष्ट्रीय कर्तव्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बीच गहरा संबंध है, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से राष्ट्रीय कर्तव्य को समझने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को महत्व दिया गया था, जिसमें छात्रों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नीति में वैज्ञानिक सोच को विकसित करने पर जोर दिया गया था, जिसमें छात्रों को वैज्ञानिक तर्कों और विधियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।1986की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रयोगशाला शिक्षा को महत्व दिया गया था, जिसमें छात्रों को व्यावहारिक रूप से वैज्ञानिक प्रयोगों और अनुसंधान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
इसके साथ ही पर्यावरण शिक्षा को महत्व दिया गया था, जिसमें छात्रों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नीति में सामाजिक जिम्मेदारी को महत्व दिया गया था, जिसमें छात्रों को समाज के प्रति जिम्मेदार और सहयोगी बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को महत्व दिया गया था,और छात्रों को वैज्ञानिक सोच और तर्कों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा है। नई शिक्षा नीति2020 में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है, जिसमें छात्रों को वैज्ञानिक विचारों और तर्कों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नई शिक्षा नीति में नवाचार और अनुसंधान को महत्व दिया गया है, जिसमें छात्रों को नए विचारों और तकनीकों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नई शिक्षा नीति में व्यावहारिक ज्ञान को महत्व दिया गया है, जिसमें छात्रों को व्यावहारिक रूप से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
नई शिक्षा नीति में समस्या समाधान को महत्व दिया गया है, जिसमें छात्रों को समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नई शिक्षा नीति में सहानुभूति और करुणा को महत्व दिया गया है, जिसमें छात्रों को दूसरों के प्रति सहानुभूति और करुणा के साथ व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस (साइंटिफिक टेंपरामेंट डे )पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे :वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच पर व्याख्यान और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समाज पर इसके प्रभावों पर पैनल चर्चा आयोजित की जाती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रदर्शनी आयोजित की जाती है।विज्ञान और तर्कसंगत सोच पर आधारित क्विज और प्रतियोगिता आयोजित की जाती है।वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच पर आधारित फिल्म और वीडियो प्रदर्शित किए जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच पर आधारित पुस्तक और साहित्य प्रदर्शित किए जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच पर आधारित संगोष्ठी और कार्यशाला आयोजित की जाती है।इन कार्यक्रमों का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देना है। हमारे संविधान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भावना के विकास की बात कही गई है ताकि वैज्ञानिक सूचना एवं ज्ञान में वृद्धि से चेतना संपन्न समाज का निर्माण हो सके। विज्ञान के किसी तथ्य या सिद्धांत के बारे में दृहोक्ति उचित नहीं क्योंकि सभी वैज्ञानिक सिद्धांतों को कभी ना कभी खंडन संशोधन अथवा परिवर्तन किया जाता रहा है। विज्ञान में कहा गया हर तथ्य परम सत्य नहीं हो सकता है। विज्ञान परिवर्तनशील होता है।
आइए वैज्ञानिक चेतना के दिवस के दिन हम संकल्प लें कि, नींबू मिर्च खाने के लिए हैं, इनको दरवाजे पर टांगने से कुछ नहीं होता।बिल्ली के रास्ता काटने तथा छीकने से कोई अनहोनी नहीं होती।भूत-प्रेत काल्पनिक होते हैं इनको लेकर डरने की आवश्यकता नहीं है। चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती, हर घटना के पीछे वैज्ञानिक कारण होता है। ठग तथा तांत्रिक जैसे लोग झूठे होते हैं, वह परिश्रम नहीं करना चाहते।जादू टोना द्वारा ग्रहों की दिशा नहीं बदली जा सकती है। चंद्र या सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है यह घटना अमंगलकारी नहीं हो सकती है। ईश्वर चढ़ावे से प्रसन्न नहीं होता है, हमारा भविष्य हमारे कर्मों पर निर्भर करता है। स्वयं को कोड़े मारने या अंग काटकर अर्पित करने से ईश्वर प्रसन्न नहीं होता है।गिरगिट का गर्दन हिलाने का स्वभाव होता है इस कारण से उसे मारना अंधविश्वास है। कोई भी अंक या संख्या शुभ या अशुभ नहीं होती है।
प्रसिद्ध मनोविचारक डॉक्टर इब्राहिम कोबूर के अनुसार,”कोई व्यक्ति चमत्कार दिखाता है और अपने चमत्कारों की जांच नहीं करने देता तो वह पाखंडी है।कोई व्यक्ति इन चमत्कारों पर आंख मूंदकर विश्वास कर लेता है तो वह अंधविश्वासी है। जो व्यक्ति उन चमत्कारों की वास्तविकता के बारे में सोचना ही नहीं चाहता तो वह व्यक्ति मूर्ख है।” अंधविश्वास को किसी उपदेश या कानून से समाप्त नहीं किया जा सकता है।इन अंधविश्वासों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास करने वाली शिक्षा दी जाना चाहिए तभी समाज में व्याप्त अंधविश्वास का उन्मूलन हो सकेगा। अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए विद्यालय के पाठ्यक्रम में स्थानीय अंधविश्वास और उनका निवारण जैसे विषयों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
आम जन के लिए अंधविश्वास निवारण के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए। समाचार पत्रों,पत्रिकाओं, टेलीविजन तथा इंटरनेट पर अंधविश्वास फैलाने वाले व भ्रमित करने वाले विज्ञापन पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किए जाने चाहिए तथा उपभोक्ता वस्तुओं के विज्ञापन गैर चमत्कारी हों अर्थात उनसे किसी चमत्कार हो जाने की बात ना कही जाए।किसी भी घटना दुर्घटना या चालाकी को चमत्कार के रूप में प्रचारित करने वाले व्यक्ति व संस्था को दंडित किया जाना चाहिए। वर्तमान समय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास के प्रमुख आधार हैं ,लेकिन हमारे विकास में अतार्किक मान्यताएं एवं उनसे उपजने वाले अंधविश्वास सबसे बड़े बाधक हैं।विज्ञान के युग में जीवन व्यतीत करने के बावजूद भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी अनेक निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। इन अंधविश्वासों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सहारे ही दूर किया जा सकता है। आज वैज्ञानिक चेतना दिवस को वैज्ञानिक प्रेरणा और प्रण दिवस के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए जिसमें कुतर्कों का तथा अविज्ञान का कोई स्थान ना हो।