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Social Media: वायरल होने का बढ़ता चलन, व्यूज के चक्कर में मासूमों ने की आत्महत्या

Innocent people committed suicide for views.

Innocent people committed suicide for views.

Social Media a Trap: आज हम एक बहुत ही गंभीर और दुखद मुद्दे पर बात करेंगे। ये मुद्दा है सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स का जिसका बच्चों और युवाओं पर गहरा असर पड़ता जा रहा है आजकल हर बच्चा, हर नौजवान सोशल मीडिया पर फेमस होने का सपना देखता है। कुछ अपने अनोखे टैलेंट से फेमस हो जाते हैं, और कुछ अपने उटपटांग हरकतों को सोशल मीडिया में अपलोड करके वायरल हो जाते हैं. वायरल होने की इस होड़ में आअज कल कुछ भी सोशल मीडिया पर सरेआम परोसा जा रहा है. ये जाने और समझे बिना की इसका युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जितने ज्यादा फॉलोवर्स उतनी ज्यादा लोकप्रियता। फेमस होने का सपना हर कोई देखता है लेकिन क्या होता है जब ये सपना टूटता है? जब व्यूज और लाइक्स नहीं मिलते? कई बार ये निराशा इतनी गहरी हो जाती है कि बच्चे डिप्रेशन में चले जाते हैं, और कुछ तो अपनी जान तक दे देते हैं।आज हम कुछ ऐसे दिल दहला देने वाले मामलों के बारे में जानेंगे, जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या सोशल मीडिया वाकई में उतना मजेदार है जितना स्क्रीन पर दिखता है?

1)नोएडा का इक़बाल

मामला 2020 अप्रैल का है, जहाँ नोएडा के सलारपुर इलाके में 18 साल का इक़बाल रहता था। इक़बाल एक बहुत ही दिलखुश, शरारती बच्चा था. बाकि फेमस बच्चो की ही तरह नूर का भी सपना था, सोशल मीडिया पर फेमस होने का. इक़बाल दिन-रात वीडियोज़ बनाता, डांस, लिप-सिंक, कॉमेडी, सब कुछ ट्राई करता। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसके वीडियोज़ पर लाइक्स और कमेंट्स कम हो रहे थे। इक़बाल को लगने लगा कि वो नाकामयाब है। उसकी हंसी, उसकी चमक धीरे-धीरे गायब होने लगी। एक शाम, जब घरवाले बाहर थे, नूर ने अपने कमरे में सीलिंग फैन से लटककर अपनी जान दे दी। उसके पिता ने बताया कि इक़बाल को लाइक्स न मिलने का बहुत दुख था। पड़ोसियों ने भी यही कहा कि वो अकेले में उदास रहने लगा था। कोई सुसाइड नोट नहीं मिला, लेकिन उसकी आखिरी रील वीडियो में उसकी आँखों की उदासी सब कुछ बयान कर रही थी।

2)उज्जैन का प्रियांशु यादव

मामला नवंबर 2023 का है, मध्य प्रदेश के उज्जैन में 16 साल का प्रियांशु यादव एक क्वीयर आर्टिस्ट था। वो इंस्टाग्राम रील्स पर मेकअप और ट्रांजिशन वीडियोज बनाता, अपनी क्रिएटिविटी से लोगों को इंस्पायर करने का सपना देखता। लेकिन एक रील पर हजारों हेट कमेंट्स आ गए – लोग उसके लुक का मजाक उड़ाने लगे, ट्रोलिंग की बाढ़ आ गई। प्रियांशु ने इसे सहन करने की बहुत कोशिश की, लेकिन दबाव इतना बढ़ गया कि वो डिप्रेशन में डूब गया। एक दिन, घर पर ही उसने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। उसके दोस्तों ने बताया कि वो ऑनलाइन बुलिंग से टूट चुका था। एक एक्टर ने सोशल मीडिया पर शेयर किया कि प्रियांशु की मौत हेट कमेंट्स की वजह से हुई। ये मामला दिखाता है कि ट्रोलिंग कितनी घातक हो सकती है, भले ही बाहर से सब चमकदार लगे।

3)कोलकाता का अर्णव

मामला 2021 कोलकाता का है जहाँ 17 साल का अर्णव एक होनहार स्टूडेंट तह लेकिन उसे पढाई के साथ साथ सोशल मीडिया पर वीडियोस बनाना और यूट्यूब शॉर्ट्स पर कॉमेडी वीडियोज़ बनाने का शौक था। जैसा की पहले भी बताया है प्लैटफॉर्म्स पर टैलेंट से ज्यादा अश्लील और ऊटपटांग चीज़े जल्दी वायरल और फेमस होती है वैसा ही कुछ अर्णव के साथ हुआ अर्णव ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर कई वीडियोज़ बनाए, लेकिन जब व्यूज नहीं आए, तो वो निराश हो गया। क्यूंकि उसके कुछ दांतण के वीडियोस पर अच्छे व्यूज आ जाते थे. उसे लगने लगा कि वो अपने दोस्तों से पीछे रह गया है। एक दिन, स्कूल से लौटने के बाद, अर्णव ने अपने कमरे में फांसी लगा ली। उसके फोन में आखिरी सर्च थी, “टिकटॉक पर फेमस कैसे हों?”

4)मोरैना का करण

मामला जुलाई 2024 का है, जहाँ मध्य प्रदेश के मोरैना जिले में 11 साल का करण रहता था। करण एक चुलबुला बच्चा था, जो सोशल मीडिया रील्स की दुनिया में कदम रखने की कोशिश कर रहा था। उसके दोस्तों के साथ मिलकर वो वायरल होने के लिए ऊटपटांग स्टंट्स प्लान करता। एक दिन, फेमस होने के चक्कर में, करण ने ‘फर्जी सुसाइड स्टंट’ करने का फैसला किया – एक रील बनाने के लिए खुद को फंदे पर लटकाने का नाटक। उसके दोस्त वीडियो रिकॉर्ड कर रहे थे, लेकिन स्टंट के दौरान करण बेहोश हो गया और असल में उसकी जान चली गई। दोस्त डरकर भाग गए। परिवार को बाद में पता चला कि ये सब व्यूज और लाइक्स के लिए था। पुलिस ने कहा कि ये सोशल मीडिया की होड़ का दर्दनाक नतीजा था। करण की मौत हमें याद दिलाती है कि वायरल होने की दौड़ में जान जोखिम में डालना कितना खतरनाक हो सकता है।

5)मुंबई की रिया

मामला 2020 मुंबई का है जहाँ 19 साल की रिया जो एक कॉलेज स्टूडेंट थीं, लेकिन 2020 का दौर टिक टॉक और रील्स का दौर था और रिया भी इंस्टाग्राम रील्स की दीवानी थी। वो अपने दोस्तों के साथ रील्स बनाती, ट्रेंडिंग सॉन्ग्स पर डांस करती। लेकिन एक दिन उसकी रील पर कुछ नेगेटिव कमेंट्स आए। किसी ने उसका मज़ाक उड़ाया, किसी ने उसे “फ्लॉप” कहा। रिया ने इसे दिल से लगा लिया। वो धीरे-धीरे अपने दोस्तों से दूर होने लगी। एक रात, उसने नींद की गोलियों का ओवरडोज लेकर अपनी जान दे दी। उसके परिवार को बाद में पता चला कि वो उन कमेंट्स की वजह से डिप्रेशन में थी।

ये कहानियाँ सिर्फ़ कुछ बच्चों की नहीं, बल्कि उस सच की हैं, जो आज हमारी नई पीढ़ी को खा रहा है। सोशल मीडिया का दबाव, लाइक्स और व्यूज की रेस, ये सब बच्चों को मानसिक तौर पर तोड़ रहा है।

हम ये नहीं कहते की सोशल मीडिया पर वीडियोस बनाना बुरी बात है बल्कि ये एक अच्छा माध्यम है खुद की पहचान बनाने का. लेकिन सोशल मीडिया की दुनिया असली दुनिया से बिलकुल अलग होती है, हर चमकने वाली चीज़ हीरा नहीं हो सकती है, यही आज कल की युवा पीढ़ी को समझने की जरुरत है, और ये भी की सफलता पाने के लिए मेहनत की जरुरत होती है,और इसमें समय लगता है, साथ ही माता-पिता को अपने बच्चों से खुलकर बात करनी चाहिए। अगर आपका बच्चा सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिता रहा है, तो उससे पूछिए कि वो कैसा महसूस कर रहा है। स्कूलों में मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता बढ़ानी चाहिए। और सबसे जरूरी, हमें अपने बच्चों को सिखाना होगा कि उनकी वैल्यू लाइक्स और फॉलोअर्स से नहीं, बल्कि उनकी मेहनत, टैलेंट और अच्छाई से है।

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