Death Anniversary Of Smita Patil : सशक्त और स्वतंत्र महिलाओं के अपरंपरागत चित्रण के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री स्मिता पाटिल भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा थीं जिन्होंने ज़्यादातर हिंदी और मराठी फिल्मों में अपने अभिनय की छठा बिखेरी। उन्होंने श्याम बेनेगल की 1975 की फिल्म ‘चरणदास चोर’ से अपने करियर की शुरुआत की थी और महज़ 31 साल की उम्र में हमें छोड़कर चली गईं इसके बावजूद, उन्होंने 80 फिल्मों में काम किया था।
सामाजिक तौर पर भी रहा अमूल्य योगदान :–
एक अभिनेत्री होने के साथ -साथ वो एक बहोत अच्छी इंसान भी थी। उनके दिल में दया और करुणा का सागर था इसीलिए अपनी ज़्यादातर फिल्मों में उन्होंने महिला मुद्दों को उठाया ,महिला सहायता केंद्र की सदस्य भी रहीं। यहाँ तक कि अपने पहले राष्ट्रीय पुरस्कार से मिली राशि को भी उन्होंने दान कर दिया था।
क्यों मिला स्मिता नाम :-
17 अक्टूबर 1955 को पुणे में पैदा हुईं स्मिता के पिता सरकारी मंत्री और स्वतंत्रता सेनानी थे। जब वो पैदा हुईं तो माँ विद्या देवी पाटिल ने उनके चेहरे पर बड़ी आकर्षक मुस्कान देखी इसलिए उनका नाम स्मिता रखा था, ये वही मुस्कान थी जो हमेशा उनके चेहरे में चार चाँद लगाती रही। हमेशा संजीदा रोल के लिए जानी गईं स्मिता जी असल ज़िंदगी में बहोत चंचल और शरारती थीं कुछ बड़े सपने नहीं थे हाँ पर गाड़ी चलाने का बहोत शौक था इसलिए कुछ 15 साल की उम्र में उन्होंने ड्रॉविंग सीख भी ली थी।
फिल्मों में आने के पहले थीं न्यूज़ रीडर :-
उनके शब्दों का उच्चारण बहोत साफ़ था आवाज़ भी बहोत प्रभावशाली थी ,जिसकी वजह से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बॉम्बे दूरदर्शन में मराठी में समाचार वाचिका के तौर पर की थीं लेकिन उन्हें जीन्स पहनना पसंद था और वहाँ लेडीज़ न्यूज़ रीडर्स के लिए साड़ी पहनना ज़रूरी था इसलिए वो जीन्स के ऊपर ही साड़ी लपेट लिया करती थीं। स्मिता के फिल्मी करियर की शुरुआत अरुण खोपकर की डिप्लोमा फिल्म “तीव्र मध्यम” (Teevra Madhyam) से हुई थी जो 1974 में FTII (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) की एक छात्र फिल्म थी इसमें उनके बेमिसाल अभिनय को देखकर श्याम बेनेगल ने उन्हें अपनी फिल्म ‘चरणदास चोर’ में मौका दिया था। ये एक बच्चों की फिल्म थी जिसमें उन्होंने स्मिता को प्रिंसेस के रोल के लिए चुना था फिर इस फिल्म में स्मिता पाटिल के टैलेंटे और कॉन्फिडेंस को देखकर श्याम बेनेगल इतना प्रभावित हुए कि उसी वक़्त निर्णय ले लिया कि वो उनकी अगली फिल्म “निशांत” में काम करेंगी। स्मिता पाटिल के करियर में ये फिल्म तब मील का पत्थर बन गई जब साल 1977 में उन्हें इसी फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
जीवंत कर दिया था “सोन बाई” का किरदार :-
इसके बाद स्मिता पाटिल ने ‘निशांत ‘,’चक्र’,’ आक्रोश ‘, ‘गिद्ध’, ‘मिर्च मसाला’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया पर इनमें से 1981 में आई फिल्म ‘चक्र’ ने उन्हें एक बार फिर नेशनल अवॉर्ड दिला दिया। हालाँकि फिल्म ‘मिर्च मसाला’ उनके इस दुनिया से जाने के बाद रिलीज़ हुई और इसमें उनके निभाए गए “सोन बाई” के किरदार को हमेशा उनके बेहतरीन कामों में गिना गया।
क्यों कहा गया “होम ब्रेकर”:-
साल 1982 में फिल्म ‘भीगी पलकें’ की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाकात शादीशुदा अभिनेता राज बब्बर से हुई, और दोनों एक दूसरे को इस हद तक चाहने लगे कि राज बब्बर ने अपनी पत्नी नादिरा को छोड़ दिया और स्मिता पाटिल से शादी कर ली इस वजह से स्मिता पाटिल ऊँचाइयों की ओर बढ़ते हुए एक दम से नीचे गिर गईं आलोचना का शिकार हुईं ,उन्हें “होम ब्रेकर” भी कहा गया। राज और स्मिता का एक बेटा हुआ, प्रतीक बब्बर लेकिन बेटे के पैदा होने के महज़ 15 दिन बाद ही 13 दिसंबर 1986 को वो गुज़र गईं ,उनका वायरल इंफेक्शन बढ़ते-बढ़ते ब्रेन तक पहुँच गया था।
क्यों हो गईं अपराध बोध की शिकार :-
हालाँकि इस रिश्ते पर राज बब्बर कहते हैं कि मेरा और नादिरा का रिश्ता अच्छा नहीं था। मै बहोत दुखी था और स्मिता ने मुझे सहारा दिया लेकिन शादी के बाद भी हमें सुख नहीं मिला। उनके आख़री पलों को याद करते हुए , उन्होंने बताया था कि “घर से अस्पताल तक के पूरे सफ़र में, वो माफ़ी माँगती रहीं। ” इस बात से हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वो कितनी नेक दिल थीं जिससे उनके मन पर एक अपराधबोध था और उसने ही उन्हें जीने नहीं दिया।
नहीं मानी रोल मॉडल माँ की भी बात :-
स्मिता पाटिल अपनी माँ की बहोत इज़्ज़त करती थीं ,उनका हर फैसला उनके लिए बहोत मायने रखता था लेकिन स्मिता और राज बब्बर के रिश्ते को लेकर उनकी नाराज़गी के बावजूद स्मिता खुद को न रोक पाईं। माँ भी इस बात पर हैरान थीं कि उनकी बेटी जो दूसरों के हक़ के लिए लड़ती है वो किसी का घर तोड़ रही हैं और फिर माँ-बेटी का रिश्ता भी इस नये रिश्ते की वजह से खराब हो गया।
आख़री ख्वाहिश हुई पूरी :-
एक बार स्मिता पाटिल ने राज कुमार को एक फिल्म में लेटकर मेकअप कराते हुए देखा और मेकअप आर्टिस्ट दीपक सावंत से कहने लगीं कि दीपक जब मैं मर जाऊँगी तो मुझे सुहागन की तरह तैयार करना और उनके मूँ से निकली बात जल्द ही सच हो गई उनके इस दुनिया से जाने के बाद दीपक ने ही उनके शव को उनकी इच्छानुसार तैयार किया था।
वो अपने किरदार में बख़ूबी ढल जाती थीं :-
फिल्म ‘मंथन’ की शूटिंग राजकोट से कहीं बाहर हो रही थी इसी दौरान स्मिता पाटिल गांव की औरतों के साथ उन्हीं जैसे कपड़े पहने अपने रोल के मुताबिक बैठी हुई थीं, तभी वहाँ कॉलेज के कुछ स्टूडेंट्स शूटिंग देखने के लिए आए और उन्होंने किसी से पूछा कि इस फिल्म की हीरोइन कहाँ हैं? तो किसी ने स्मिता की तरफ इशारा करते हुए कहा ये हैं पर स्टूडेंट यक़ीन ही नहीं कर सके और मज़ाक ही समझते रहे क्योंकि स्मिता पाटिल अपने किरदार में इस तरह ढल चुकी थीं कि बिल्कुल गाँव की आम औरत सी ही दिख रही थीं।
केतन मेहता अपनी फिल्म ‘मिर्च मसाला’ में स्मिता के अभिनय से बहोत प्रभावित हुए और इसका ज़िक्र भी कई बार किया क्योंकि इस फिल्म में कुछ ऐसे सीन थे जो किसी भी इंसान को परेशान कर सकते थे फिर वो तो इतनी बड़ी अभिनेत्री थीं ,पर उन्होंने तेज़ गर्मी में मिर्च फैक्ट्री में ऐसे काम किया कि सबको आश्चर्यचकित कर दिया।
स्मिता पाटिल ने ‘मंथन’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अर्थ’, ‘मंडी’ और ‘निशांत’ जैसी कलात्मक फिल्में कीं तो दूसरी तरफ ‘नमक हलाल’और ‘शक्ति’ जैसी व्यावसायिक फिल्में भी कीं। 1985 में उन्हें “पद्मश्री” से सम्मानित किया गया था।
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