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Siyaram Baba Passed Away: मोक्षदा एकादशी पर 110 वर्षीय संत सियाराम बाबा ने त्यागी देह, ऐसे पड़ा था यह नाम

Siyaram Baba Passed Away: बुधवार की सुबह 110 वर्षीय संत सियाराम बाबा ने गीता जयंती व मोक्षदा एकादशी शुभ योग पर अपनी देह त्याग दी। संत सियाराम मध्य प्रदेश के खरगोन में निवास कर रहे थे। आज बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। बताया गया है कि उनका इलाज चल रहा था और उस दौरान भी वह अविरल रामायण का पाठ कर रहे थे। उनके निधन के बाद बड़ी संख्या में उनके भक्त अंतिम दर्शन के लिए खरगोन पहुंच रहे हैं।

आज होगा सियाराम बाबा का अंतिम संस्कार

बुधवार को खरगोन में नर्मदा तट स्थित भट्टयान बुजुर्ग में संत सियाराम बाबा ने 95 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह 6.10 मिनट पर उन्होंने अपनी देह त्यागी और प्रभु में लीन हो गए। आज गीता जयंती के दिन उनके पार्थिव शरीर का शाम 4 बजे आश्रम के पास ही अंतिम संस्कार होगा। 

10 सालों से बीमार चल रहें थे संत सियाराम

संत सियाराम बाबा पिछले दस सालों से बीमार चल रहें थे। इंदौर में डॉक्टरों से उनका इलाज चल रहा था। कुछ दिनों पहले बाबा को निमोनिया की शिकायत पर सनावद के निजी अस्पताल में भर्ती किया था। इसके बाद बाबा की इच्छानुसार उनका आश्रम में ही जिला चिकित्सालय और कसरावद के डॉक्टर इलाज कर रहे थे। 

आश्रम में अंतिम दर्शनों की लगी भीड़

बुधवार की सुबह से ही संत सियाराम बाबा के दर्शन के लिए उनके आश्रम में भक्तों की लंबी भीड़ लगी हुई है। उनका पार्थिव शरीर उनके आश्रम में ही रखा गया है। जानकारी के अनुसार, आश्रम के पास की भूमि में ही उनकी देह को अग्नि दी जाएगी। इसके बाद उस पावन स्थान पर उनकी समाधि का निर्माण कराया जाएगा। 

सालों से नर्मदा की भक्ति में लीन थे

दिवंगत संत सियारामा गुजरात के बाबा कहे जाते हैं। कई सालों से गुजरात में नर्मदा नदी की भक्ति कर रहें थे। 95 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। निधन के कुछ समय तक वह रामायण का निरंतर पाठ कर रहें थे। जब उनका निधन हुआ तब वह भगवान श्रीराम के सानिध्य में थे।

ऐसे पड़ा था बाबा का नाम ‘सियाराम’

संत सियाराम बाबा गुजरात के भावनगर में 1933 में जन्मे थे। महज 17 साल की उम्र में ही वह आध्यात्मिक राह पर चल पड़े थे। कई सालों तक उन्होंने गुरु के साथ पढ़ाई की थी और फिर तीर्थ भ्रमण के लिए पड़े थे। इस ददौरान वह 1962 में भट्याण आए थे। जहां उन्होंने एक पेड़ के नीचे मौन बठकर तपस्या की थी। तपस्या कितने वर्षों तक की थी, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। लेकिन कहा गया है कि जब उनकी तपस्या पूरी हुई थी तो उन्होंने सियाराम का उच्चारण किया था। इसी के बाद उनका नाम संत सियाराम पड़ गया। 

बड़े दानवीर थे बाबा सियाराम

बाबा के आश्रम पर मौजूद सेवादार बताते हैं कि संत सियाराम की दिनचर्या भगवान राम और मां नर्मदा की भक्ति से शुरू होती थी और उनकी भक्ति पर ही खत्म होती थी। बाबा प्रतिदिन रामायण पाठ का पाठ करते थे और आश्रम पर आने वाले श्रद्धालुओं को खुद अपने हाथों से बनी चाय प्रसादी के रूप में पीने को देते थें। उनके लिए गांव के 6 घरों से भोजन का टिफिन आता था। इस भोजन को बाबा एक पात्र में रख कर खाते थे।

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