Singer Veena Sahasrabuddhe ने ख्याल और भजन गायिकी से दुनियाभर के लोगों को बनाया अपना मुरीद

Singer Veena Sahasrabuddhe

नाज़िया बेग़म

Singer Veena Sahasrabuddhe: अगर आप संगीत प्रेमी हैं तो ख्याल गायन भी आपको आकर्षित कर लेगा फिर चाहे आप छोटे बच्चे हों या जवान या फिर थोड़ा बहोत ही संगीत का ज्ञान रखते हों बस आप ज़रा सुन के देखिए वीणा सहस्रबुद्धे को, वो कानपुर से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक भारतीय गायिका और संगीतकार थीं। उनकी गायन शैली की जड़ें ग्वालियर घराने में थीं, लेकिन उन्होंने जयपुर और किराना घरानों से भी प्रेरणा ली थी सहस्रबुद्धे ख्याल और भजन गायिका के रूप में भी जानी जाती थीं ।

संगीतकार परिवार में हुआ जन्म
वीणा सहस्रबुद्धे का जन्म 14 सितंबर 1948 को एक संगीतकार परिवार में हुआ था। आपके पिता शंकर श्रीपाद बोडस गायक विष्णु दिगंबर पलुस्कर के शिष्य थे। उन्होंने अपने पिता और फिर अपने भाई काशीनाथ शंकर बोडस के अधीन अपनी प्रारंभिक संगीत शिक्षा शुरू की। उन्होंने बचपन में कथक नृत्य भी सीखा । आपके संगीत गुरुओं में बलवंतराय भट्ट, वसंत ठाकर और गजाननराव जोशी शामिल थे। बाद में उन्होंने गानसरस्वती किशोरी अमोनकर से भी कुछ समय के लिए प्रशिक्षण लिया। वो (1972) में ऑल इंडिया रेडियो द्वारा आयोजित 25 वर्ष से कम आयु के कलाकारों के लिए राष्ट्रीय प्रतियोगिता में वोकल क्लासिकल श्रेणी में विजेता बनीं । उन्होंने (1968)को कानपुर विश्वविद्यालय से गायन, संस्कृत साहित्य और अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री ली फिर (1969) में एबीजीएमवी मंडल से गायन में मास्टर डिग्री ( संगीत अलंकार ) और (1979) को कानपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत में भी मास्टर डिग्री प्राप्त की यहीं से उन्होंने 1988 में गायन ( संगीत प्रवीण ) में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। कुछ वर्षों तक वो एसएनडीटी पुणे परिसर में संगीत विभाग की प्रमुख रहीं।

कई देशों में अपने गायन का किया प्रदर्शन
उन्होंने पूरे भारत और दुनिया भर के कई देशों में अपने गायन का प्रदर्शन किया। उनके पिता शंकर श्रीपाद बोडस, ओंकारनाथ ठाकुर और विनायकराव पटवर्धन के समकालीन थे और विष्णु दिगंबर पलुस्कर के शुरुआती छात्रों में से एक थे, जिन्होंने प्रसिद्ध गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना की थी आपने ही एक संगीत समाज की स्थापना भी की, वैसे तो पलुस्कर परंपरा ग्वालियर घराने की शैली और गायन के स्वभाव में थी परंतु कानपुर बिना किसी उल्लेखनीय सांस्कृतिक जीवन के, शास्त्रीय संगीत का एक औद्योगिक शहर बन गया था जबकि उस समय तक, उत्तर प्रदेश में बनारस और इलाहाबाद जैसे अन्य स्थान ख़ास थे जहाँ संगीत फला-फूला। महान संगीतकारों के सानिध्य से संगीत में परिपक्व होती चली गईं वीणा और अपनी गायकी से हम सबका मन मोहती रहीं , उनके गायन की अनूठी शैली थी जिसमें उन्होंने 40 से अधिक बार प्रदर्शन किया शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों का रुझान बढ़े इसलिए इसे सिखाती भी रहीं और अपने छात्रों की प्रिय शिक्षिका रहीं , जीवन के आखरी पड़ाव पर आकर वीणा सहस्रबुद्धे ने अपना अंतिम संगीत कार्यक्रम 2 दिसंबर 2012 को दिया ,आपने (1993) में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, (2013) में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया और अपना सारा जीवन इन सुर लहरियों को समर्पित करते हुए , 29 जून 2016 को वो चिर निद्रा में लीन हो गईं पर अपनी संगीत साधना से ,हमारे लिए संगीत का वो एक ऐसा अध्याय छोड़ कर गईं हैं जो इस राह पर चलने वाले हर संगीत प्रेमी का मार्गदर्शन करेगा , आपको (2019) में अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय मंडल ने मरणोपरांत मानद उपाधि “संगीत महामहोपाध्याय” से सम्मानित किया गया ।

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