Singer Suraiya Birthday: अपने नाम की तरह सुंदर चमकदार और किसी ज़ेवर की तरह फिल्म जगत को समृद्धि करने उसका श्रृंगार करने के लिए वो महज़ 12 साल की उम्र में सिनेमा में दाखिल हुई और फिल्म नई दुनिया के लिए गाना गाया फिर मैडम फैशन में बतौर बाल कलाकार पर्दे पर आईं ये जलवा बरक़रार ही था कि बतौर अभिनेत्री 1941 को, फिल्म ताजमहल में मुमताज महल की भूमिका में अपने शानदार अभिनय के साथ नज़र आईं, और इस क़दर लोगों के दिलों में बस गईं की कभी उन्हें मलिका ए तरन्नुम कहा गया ,कभी हुस्न तो कभी मलिका ए अदाकारी । उनके तीनों रूप बेमिसाल हैं जी हां तीनों क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाने वाली ये हर दिल अज़ीज़ अभिनेत्री थी सुरैया जमाल शेख़, जिन्होंने 1936 से 1964 तक के करियर में, 70 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया और 338 गाने गाए।
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फिल्मों में उनका आना एक इत्तेफ़ाक़ था
15 जून 1929 को लाहौर में जन्मी सुरैया 1 वर्ष की उम्र में अपने परिवार के साथ बॉम्बे (अब के मुंबई) आ गईं। फिल्मों में उनका आना एक इत्तेफ़ाक़ था, हुआ यूं कि उनके मामू एम. ज़हूर , 1930 के दशक के बॉम्बे फ़िल्म उद्योग में एक प्रसिद्ध खलनायक थे जिनके साथ वो ताजमहल की शूटिंग देखने गईं , जिसका निर्देशन नानूभाई वकील कर रहे थे। वकील साहब ने युवा सुरैया के आकर्षण और मासूमियत को देखा और उन्हें मुमताज महल की भूमिका निभाने के लिए चुन लिया बस यहीं से उनका फिल्मों में पदार्पण हो गया ।
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उर्दू साहित्य का बहुत शौक था
सुरैया के बचपन के दोस्तों में राज कपूर और मदन मोहन शामिल थे, जिन्होंने उनका आकाशवाणी से परिचय कराया और जिनके साथ वो ऑल इंडिया रेडियो पर बच्चों के रेडियो कार्यक्रमों में गाती थीं , ये दोनों आगे के सफर में भी उनके साथ रहे राज कपूर नायक बनके और मदन मोहन उनके संगीत निर्देशक बनके । हालंकि सुरैया ने संगीत की तालीम नहीं ली थी, अज़ीज़ जमाल शेख और मुमताज़ शेख के घर जन्मी सुरैया बहुत धार्मिक थीं और इस्लाम के सारे फर्ज़ अदा करती थीं ,सुरैया को साहित्य, खासकर उर्दू साहित्य का बहुत शौक था और वो खूब सारा साहित्य पढ़ती थीं।
ज़्यादातर अपने लिए गाती थीं
एक बेहतरीन अभिनेत्री होने के अलावा, सुरैया एक प्रसिद्ध पार्श्व गायिका भी थीं, जो ज़्यादातर अपने लिए गाती थीं। सुरैया ने इशारा (1943), तदबीर (1943), फूल (1945), अनमोल घड़ी (1946), उमर खैय्याम (1946), परवाना (1947) , दर्द (1947), शायर (1949), दास्तान (1950), अफसर (1950), दीवाना (1952), और मिस्टर लंबू (1956) जैसी फिल्मों के साथ खुद को हिंदी सिनेमा की अग्रणी अभिनेत्रियों में से एक के रूप में स्थापित किया। सुरैया के करियर ने 1948-1949 में साल की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्मों – विद्या ( 1948 ), प्यार की जीत (1948), दिल्लगी (1949) और बड़ी बहन (1949) के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया तो (1954) की फिल्म मिर्ज़ा ग़ालिब में तवायफ़, मोती बेगम का किरदार उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ जिसने उन्हें आलोचकों की प्रशंसा दिलाई ।
अभिनेत्री और गायिका दोनों रूपों में चमकीं
फिल्म मिर्ज़ा ग़ालिब ने जब 1954 के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में दो पुरस्कार जीते तो ग़ालिब की प्रेमिका चौदहवीं की भूमिका में सुरैया एक अभिनेत्री और गायिका दोनों रूपों में सितारे सी चमकीं। जवाहरलाल नेहरू ने फिल्म देखने पर टिप्पणी की, “तुमने मिर्ज़ा ग़ालिब की रूह को ज़िंदा कर दिया, ये उनके लिए किसी अवॉर्ड से कम नहीं था। जब भी वो रुपहले पर्दे पर जलवा अफ़रोज़ होती तो उनकी खूबसूरती और उम्दा अदाकारी आंखों को बांध लेती आवाज़ कानों को बांसुरी सी भाती यूं लगता मानो उन्हें किसी और चीज़ की दरकार ही नहीं है ,उनकी यादगार भूमिकाएं दर्शक आंखों में क़ैद कर के दिल में बसा लेते । वो पुरुष अभिनेताओं से कहीं ज़्यादा फीस लेती थी उनके स्टारडम का ये आलम था कि लोग उनकी एक झलक पाने को बेकरार हो जाते, और इसी लिए उन्होंने बाहर निकलना बहोत हद तक कम कर दिया था।
बढ़ती गई लोकप्रियता
सुरैया के हिट गानों में “वो पास रहें या दूर रहें”, “तेरे नैनों ने चोरी किया”, “तू मेरा चांद, मैं तेरी चांदनी”, “मन मोर हुआ मतवाला” और “नैन दीवाने इक नहीं माने” जैसे गाने शामिल हैं। खुर्शीद अनवर सुरैया की तीन फिल्मों में संगीत निर्देशक थे। इशारा (1943), परवाना (1947) और सिंगार (1949) सुरैया ने इन फिल्मों में 13 गाने गाए। मन लेता है अंगड़ाई’ पूरे देश में वायरल हुआ। कारदार के निर्देशन में नौशाद के संगीत के साथ संगीतमय फिल्म दिल्लगी (1949) सिल्वर जुबली हिट रही, जिसमें सुरैया अपने गीतों और अभिनय से पूरे देश में मशहूर हो गईं। उन्होंने नौशाद के लिए करीब 51 गाने गाए। 1946 में, सुरैया की फिल्म अनमोल घड़ी ने बॉम्बे और भारत के अन्य शहरों में सिल्वर जुबली मनाई । पचास के दशक की शुरुआत में, उनके गायन ने लोगों के जीवन पर भारत और पाकिस्तान दोनों में एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ी, इतना कि फल विक्रेताओं ने उनके नाम पर तरबूज भी बेचे, कहते थे “ले लो बाबूजी बड़े मीठे हैं, सुरैया के खेत के हैं।” (ये तरबूज सुरैया की आवाज़ की तरह मीठे हैं)। तो अभिनेता धर्मेंद्र ने कहा कि वो उनके बहोत बड़े प्रशंसक हैं, उन्हें सुरैया की दिल्लगी को 40 बार देखने के लिए मीलों पैदल चलना याद है।
अधूरी रह गई प्रेम कहानी…. ताउम्र नहीं की शादी
उस वक्त सुरैया और देव आनंद की जोड़ी पर्दे पर खूब पसंद की जाती लेकिन वो रियल लाइफ में भी कई सालों तक एक साथ काम करते हुए वो एक दूसरे को पसंद करने लगे थे हालांकि देव जी उस समय नए अभिनेता थे। देव साहब ने उन्हें फिल्म अफ़सर की शूटिंग के दौरान प्रपोज भी किया पर सुरैया की दादी इस शादी के खिलाफ़ थी और उन्होंने दोनों का साथ में काम करना भी बंद करवा दिया और दोनों की प्रेम कहानी अधूरी रह गई जिसका ज़िम्मेदार सुरैया ने खुद को माना ये कहते हुए की मैं ही अपने प्यार का हाथ थामने की हिम्मत नहीं कर पाई इस अफसोस पर उन्होंने ज़िंदगी भर शादी नहीं की।
कैसे गुज़रती हूँ कोई नहीं पूछता…
सुरैया की आखरी रिलीज़ फिल्म रुस्तम सोहराब (1963) थी, जिसके बाद वो बीमार रहने लगी थी दिसंबर 1998 में, 68 वर्ष से अधिक की सुरैया, मिर्ज़ा ग़ालिब की द्वि-शताब्दी समारोह के दौरान साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए नई दिल्ली में थीं, उन्होंने धीमी आवाज़ में बात की और गाने की फरमाइश पर ये कहते हुए गाने से इनकार कर दिया कि उन्होंने “सालों पहले अपना मस्जिद यानी संगीत छोड़ दिया “। सुरैया के साथ काम करने वाली तबस्सुम ने कहा, “यह दुखद है कि उन्होंने अपने अंतिम दिनों में दुनिया के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए थे। लेकिन वो मुझसे फोन पर आराम से बात करती थीं। मुझे हमारी आखिरी बातचीत याद है। मैंने उनसे पूछा: “आप कैसी हैं?” उन्होंने पद्य में उत्तर दिया: “कैसी गुज़र रही है सभी पूछते हैं मुझसे, कैसे गुज़रती हूँ कोई नहीं पूछता। 31 जनवरी 2004 को वो हमें छोड़ कर चली गईं।
सर्वश्रेष्ठ ऑन-स्क्रीन सुंदरता
सुरैया 1944 से 1950 तक सात बार बॉक्स ऑफिस इंडिया की “शीर्ष अभिनेत्रियों” की सूची में दिखाई रहीं और तीन साल (1948-1950) तक सूची में शीर्ष पर ही बनी रहीं। बॉक्स ऑफिस इंडिया ने उन्हें 1940-1949 की अवधि की “सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री” का भी नाम दिया। 2022 में, वह आउटलुक इंडिया की “75 सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड अभिनेत्रियों” की सूची में शीर्ष पर रहीं। 2013 में, भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर, सुरैया के फ़िल्मी लुक को “सर्वश्रेष्ठ ऑन-स्क्रीन सुंदरता” के रूप में वोट दिया गया था। सुरैया ने फैशन के ऐसे ट्रेंड सेट किए, जो आज भी प्रासंगिक हैं और उनकी साड़ियाँ 1940 और 1950 के दशक की प्रमुख स्टाइल स्टेटमेंट हैं। लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार और बिमल रॉय मेमोरियल पुरस्कार के अलावा भी कई अन्य पुरस्कार आपके नाम रहे। वो ऐसी शख्सियत थीं जिनसे हमारे सदाबहार हीरो ,देव आनंद प्यार करते थे और स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर प्रेरणा लेती थी इज्ज़त करती थी ,एक बहुत ही परिष्कृत अभिनेत्री मानती थीं ।