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शब्बीर कुमार जिनके लिए रेडियो पर मोहम्मद रफी साहब के गाने सुनना ऐसा था जैसे सांस लेना…

singer Shabbir Kumar

singer Shabbir Kumar

न्याजिया बेग़म

Shabbir Kumar: जिन्हें गुरु मानते थे उन्होंने सामने बैठ कर नहीं सिखाया क्योंकि उनके गुरु थे मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर और किशोर कुमार जो हम सबके लिए गाते थे उन्हें खबर ही नहीं थी कि कोई उनके गाने सुनकर उनसे यूं सीख रहा है जैसे वो उनके सामने बैठे हों, और बखूबी उनके गाने के उतार चढ़ाव को हुबहू गाकर अपनी पेंटिंग में रंग भी भर रहा है जी हां ये थे शब्बीर कुमार जिनके लिए रेडियो पर मोहम्मद रफी साहब के गाने सुनना ऐसा था जैसे सांस लेना ,और मो .रफी जी ने कभी उन्हें देखा भी नहीं था पर इस शिष्य के मन में उन्हें देखने की इच्छा तो ऐसी थी मानों कोई बरसों से प्यासा हो और जब शब्बीर दोस्तों के कहने पर आर्केस्ट्रा में गाने लगे तो उन्हें उस स्टूडियो का पता चला जहां सभी गायक और संगीतकार गाने रिकॉर्ड करने जाते थे तो शब्बीर जी वहां अक्सर बाहर खड़े रहते थे इस इंतज़ार में कि कभी मो. रफी भी यहां आयेंगे और उनसे मुलाक़ात हो जाएगी और एक दिन स्टूडियो के बाहर पान वाले से उन्हें पता चला कि आज मो. रफी आए हैं तो वो घंटों खड़े रहे और किसी तरह जब उन्हें मोहम्मद रफी साहब से मिलने का मौका मिला तो पहले तो वो उन्हें देखते ही रह गए फिर उनके हाथ कागज़ पर मन में उभरी अपने गुरु की छवि को हक़ीक़त से मिलाते हुए कागज़ पे उतारने लगे और वो तस्वीर जब मो. रफी साहब को सौंपी तो उनकी आंखों से आंसुओं की धार रोके नहीं रुक रही थी ,फिर मो. रफी साहब ने अपने दिलकश लहजे में उनसे कहा आप बहोत अच्छा गाते हैं सब कहते हैं और तस्वीर देखकर बहोत खुश हुए फिर ऑटो ग्राफ दे दिया ।
26 अक्टूबर 1954 को गुजरात के वडोदरा में पैदा हुए शब्बीर कुमार की आवाज़ में एक अलग जोश दिल को छू लेना का माद्दा है जिसे सबसे पहले उनके दोस्तों ने महसूस किया और उन्हें आर्केस्ट्रा तक ले आए इसके बाद वो ,”एक शाम रफी के नाम” शो में गाने लगे जहां उन्हें संगीतकार ऊषा खन्ना जी ने सुना और फिल्म तजुर्बा में गाने का मौका दिया ,फिर क्या था जैसे ही वो बतौर पार्श्व गायक पहली बार आए उनकी दमदार और दिलनशीं आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया , फिर कुछ ऐसी फिल्में आईं जो शब्बीर कुमार के गीतों की वजह से हमारे मानसपटल पर अलग दौर रेखांकित करती हैं उनकी आवाज़ कुदरती तौर पर इतनी मुख्तलिफ और पुर असर है कि बहुत ही कम वक्त में उन्होंने अपना नाम भारतीय सिनेमा पर स्वर्णिम अक्षरों में लिख दिया उनके गाए गीतों से सजी कुछ सुपर हिट फिल्मों को हम आपको याद दिलाए देते हैं जिसमें
सबसे पहला नाम आता है ‘ कुली ‘ का फिर ‘ बेताब ‘,’ तेरी मेहरबानियां ‘ ‘ प्यार झुकता नहीं ‘ और ‘ मर्द ‘ जैसी सुपरहिट फिल्में ।
पर ये सब ऐसे ही नहीं हुआ ,उनकी नज़र से ये मोहम्मद रफी साहब की दुआ का असर था वो बताते हैं कि सन 1980 में जब रफी साहब का इंतकाल हुआ था तब वो बड़ोदा में थे और जैसे ही उन्हें रफी साहब के गुज़रने की खबर मिली वो उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंच गए और जब रफी साहब को ख़ाक ए सुपुर्द किया जा रहा था, तब जाने कैसे उनकी घड़ी और क़लम में धक्का लगा और वो रफी साहब के साथ ही दफ्न हो गए और बस उसके बाद जैसे मेरे वक्त और तक़दीर को रफी साहब ने अपनी दुआओं से संंवार दिया इसके बाद ही मुझे ‘ एक शाम रफी के नाम ‘ शो में गाने का मौका मिला और ऊषा खन्ना जी ने मुझे अपने संगीत निर्देशन में आए गीतों को गाने के काबिल समझा,बस तब से मेरे गानों का जो सिलसिला चला वो आज तक जारी है ।
जी हां वो अब भी देश विदेश में अपने शोज़ करते रहते हैं
उनके आखिरी हिट गाने हैं ,आज का अर्जुन (1990) से गोरी है कलाइयां और घायल (1990) से सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा ।
इसके बाद शब्बीर जी ने स्टेज शो और निजी एल्बमों पर ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया।
उन्होंने हिंदी, उर्दू, मराठी, बंगाली, भोजपुरी, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, हरियाणवी, उड़िया, मलयालम और अंग्रेजी जैसी कई भाषाओं में गाने गाए हैं इस तरह आपने 1500 से अधिक फिल्मों में 6 हज़ार से अधिक गाने गए हैं
इनमें कुछ गीत तो ऐसे हैं जिन्हें आप ज़रा सा गुनगुनाएंगे तो
उनकी दिलनशीं आवाज़ में खोए बिना नहीं रहेंगे क्योंकि ये हमारे नायक के हर जज़्बात को हम तक बखूबी पहुंचाने का माद्दा रखते हैं ,यक़ीन न आए तो गुनगुना के देख लीजिए
जवाब हम देंगे फिल्म से “हैरान हूं मैं” , ( अनुराधा पौडवाल के साथ युगल गीत )
फिल्म डकैत का “मेरे यार को मेरे अल्लाह” ,
लता मंगेशकर के साथ कुदरत का कानून से “तुझे इतना प्यार करे”
आग ही आग फिल्म से “साजन आजाओ वादा ये”
तेज़ाब फिल्म से “सो गया ये जहाँ” , नितिन मुकेश के साथ, फिल्म ,हमारा खानदान से “मैंने भी एक गीत लिखा है”
फिर फिल्म आज का अर्जुन का “गोरी है कलाइयां” , को हम कैसे भूल सकते हैं , मर्द का ,मदीने वाले से मेरा सलाम
कहना ।
राधा का संगम फिल्म से “ओ राधा तेरे बिना” ,
शोला और शबनम से “तू पागल प्रेमी आवारा” और 2010 में रुपहले पर्दे पर आई
हाउसफुल से “आई डोंट नो व्हाट टू डू” गाने का उनका अलग अंदाज़ आपको उनका दीवाना बना देगा ।
उन्हें
मोहम्मद रफ़ी पुरस्कार”, सहित सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के रूप में “कला रतन पुरस्कार” से भी नवाजा़ गया है ।
उनका ये कारवां यूं ही चलता रहे और वो ऐसे ही अपने नग़्मों से हमें लुत्फ अंदोज़ करते थे आज के दिन की मुबारकबाद के साथ हमारी यही दुआ है।

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