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Singer Hemlata Birthday: हेमलता की दिलकश आवाज़ में पिरोये गीत, गुनगुनाने को कर देते हैं मजबूर

Singer Hemlata Birthday

Singer Hemlata Birthday

Singer Hemlata Birthday: साल 1978 में अंखियों के झरोखों से फिल्म का शीर्षक गीत कुछ अलग ही अंदाज़ में संगीत प्रेमियों को सदा देता है फिर इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कुछ और गीत भी इतने ही पुर कशिश लगते हैं जैसे कौन दिशा में लेके , लेते आए हो हमें सपनों के गांव में, बबुआ ओ बबुआ ,ओ बेकरार दिल ठहर, होली आई होली आई । तो ज़रा अंदाज़ लगाइए, इन गीतों को किसने इतनी खूबसूरती से अपनी दिलकश आवाज़ में पिरोया की वो हमारे दिल में उतर गए और गाने में दिलचस्पी रखने वालों को भी इतने सरल लगते हैं कि वो उन्हें गाने की कोशिश ज़रूर करते हैं । जी हां ये है 16 अगस्त 1954 को हैदराबाद के मारवाड़ी ब्राह्मण परिवार में जन्मी हेमलता जिनका बचपन कलकत्ता में बीता 1966 में, उनका परिवार बॉम्बे चला गया, जहाँ वे भारत के दक्षिणी बॉम्बे के गिरगाँव में रहने लगे। एक बार उन्हें एक गैर-फिल्मी रचना गाते हुए नौशाद साहब ने सुना और उनकी आवाज़ के साथ ऊंचे स्वरों को भी सजजता से गा लेने के हुनर से इतना मुतासिर हुए कि उन्होंने हेमलता से वादा किया कि वो उन्हें अपनी फ़िल्मों में गाने का मौका देंगे और उन्हें ये सलाह भी दी कि वो अपने रियाज़ को थोड़ा और बढ़ाए फिर उन्हें 1967 में संगीत निर्देशक रोशन का निमंत्रण मिला पर संजोग से उसी हफ्ते में, रूप रूपैया के लिए उषा खन्ना के संगीत निर्देशन में गाने का मौका मिला और उनका पहला रिकॉर्ड गीत “तू खामोश मैं पुरजोश” बन गया लेकिन पहले रिलीज़ हुआ गीत “दस पैसे में राम ले लो” (1968) की फिल्म एक फूल एक भूल से था।


1970 के दशक की शुरुआत में, रवीन्द्र जैन अपनी किस्मत आजमाने के लिए बम्बई आए और अपनी पहली फिल्म कांच और हीरा (1972) के लिए उनकी आवाज़ का इस्तेमाल किया, फिर राख और चिंगारी (1974), गीत गाता चल (1975), सलाखें (1975) और तपस्या, में भी हेमलता ने उनके गाने गाए हालाँकि, हेमलता को पहचान तब मिली जब रवीन्द्र जैन ने उन्हें फिल्म फकीरा (1976) के गाने ‘सुन के तेरी पुकार’ के लिए मौका दिया।

उसी वर्ष, रवीन्द्र जैन ने राजश्री बैनर की फिल्म चितचोर ’के लिए उनकी आवाज का इस्तेमाल किया, जिसके लिए उन्होंने फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। इसके बाद, हेमलता 1980 और 1990 के दशक में मानों राजश्री प्रोडक्शन्स के गीतों की आवाज़ बन गईं उनकी पहली शादी 1973 में भारतीय फिल्म अभिनेत्री योगिता बाली के भाई योगेश बाली से और उनके देहांत के बाद दिलीप जी से हुई थी। इन्हें 1977-81 की अवधि में पांच बार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्वगायक पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया और 1977 में फिल्म चितचोर के गाने तू जो मेरे सुर से सुर मिला ले के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला प्रश्वगायिका पुरस्कार दिया गया ,रवींद्र जैन ने संगीत निर्देशन में इस गीत को गाने में आपका साथ दिया था येसुदास ने 1990 के दशक में दूरदर्शन के ज़रिए आपकी आवाज़ घर घर पहुंची और दिलों में बस गई गीत के बोल थे “तिस्ता नदी सी तू चंचला” गाने में उनका साथ दिया था येसुदास ने , फिर उन्होंने रामानंद सागर के महाकाव्य टीवी सीरियल रामायण में पारंपरिक मीरा भजन ,पायो जी मैंने राम रतन धन पायो गया और पर्दे पर दिखाई भी दीं साथ ही (लव कुश) और श्री कृष्ण के लिए भी अपनी आवाज़ दी।

चलते चलते हम आपको उनके बारे में ये भी बता दें कि वो इकलौती बॉलीवुड गायिका हैं, जिन्हें सिखों के विश्व समुदाय और पंजाब सरकार के साथ-साथ पवित्र अकाल तख्त द्वारा 13 अप्रैल 1999 को श्री आनंदपुर साहिब अकाल तख्त पर सिख खालसा पंथ के 300 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में मूल रागों में रचित गुरमत संगीत के लाइव प्रदर्शन के लिए चुना गया । 2015 में उन्होंने भारत सरकार के अभियान ‘ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ‘ में ‘ मां मुझे आने दो ‘ गीत गाया है वो क़रीब 38 भाषाओं में 5 हज़ार से ज़्यादा गाने गा चुकी हैं।

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