न्याजिया बेग़म
Singer Amit Kumar Birthday: जब भी कभी हम गीत बड़े अच्छे लगते हैं सुनते हैं तो एक खुशहाल ज़िंदगी के सुकून का एहसास होता है और इस गीत में अमित कुमार की आवाज़ हमें हर दफा उन्हें सुनने को बेक़रार कर देती है फिर हम उनके गाए कुछ और गानों पर ग़ौर करते हैं जैसे :- “याद आ रही है तेरी याद आ रही है..” ,”ये ज़मीं गा रही है आसमां गा रहा है…”,”कैसा लगता है…”,” न बोले तुम न मैने कुछ कहा…” या” फिर तिरछी टोपी वाले …”,तो यूं लगता है कि वो हर जज़्बात को बड़ी सादगी से गा कर बयां करते हैं जिससे उनकी आवाज़ और पुरकशिश लगती है । लेकिन वो न केवल पार्श्व गायक और संगीतकार हैं,बल्कि अभिनेता भी हैं ,अमित कुमार ने कुमार ब्रदर्स म्यूज़िक नाम से अपनी खुद की संगीत निर्माण कंपनी भी बनाई है। उन्होंने 1970 के दशक से मुख्य रूप से बॉलीवुड और क्षेत्रीय फ़िल्म गीतों में काम किया, जिसमें आरडी बर्मन की 150 हिंदी और बंगाली रचनाएँ शामिल हैं । पर 1994 में बर्मन की मृत्यु के बाद, गुणवत्ता पूर्ण संगीत रचना की कमी का हवाला देते हुए, कुमार ने पार्श्व गायन से थोड़ी दूरी बना ली और लाइव शो पर ध्यान देने लगे। हिंदी के अलावा, उन्होंने बंगाली , भोजपुरी , ओडिया , असमिया , मराठी और कोंकणी में भी गाने गाए इतने प्रतिभा शाली और बहुआयामी होने की एक वजह ये भी है कि वो गायक-अभिनेता किशोर कुमार और बंगाली गायिका और अभिनेत्री रूमा गुहा ठाकुरता के बेटे हैं।
कम उम्र से ही गाना शुरू कर दिया
अपने पिता की तरह, अमित ने भी कम उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था और वो अक्सर कलकत्ता में दुर्गा पूजा समारोहों में गाते थे एक बार बंगाली अभिनेता “महानायक” उत्तम कुमार द्वारा आयोजित एक ऐसे ही समारोह में वो गा रहे थे तो दर्शकों ने उन्हें रुकने ही नहीं दिया और वन्स मोर कहकर बार बार फिर से गाने का अनुरोध करते रहे ये देखकर किशोर दा ने उन्हें बॉम्बे लाने का फैसला कर लिया, बचपन में अभिनय से जोड़ने का श्रेय भी उनके पिता को ही जाता है क्योंकि किशोर कुमार ने अपनी बनाई फिल्मों में अमित को अपने बेटे के रूप में लिया जिसमें पहली फिल्म थी, दूर गगन की छाँव में , इसमें उन्होंने अपने ग्यारह वर्षीय बेटे यानी अमित के लिए आ चलके तुझे, मैं लेके चलूँ गाया था। किशोर कुमार की फिल्मों के अलावा भी अमित कुमार ने गाना शुरू किया सन 1973 में ,जब वो 21 बरस के थे और ये गीत था “होश में हम कहाँ”, जिसे सपन जगमोहन ने फिल्म दरवाज़ा के लिए संगीतबद्ध किया था , जो 1978 में रिलीज़ हुई थी। इसी साल फिल्म ,देस परदेस में बाप बेटे का गया युगल गीत “नज़र लगे ना साथियों” बेहद लोकप्रिय हुआ हालंकि इसके पहले 1976 की फ़िल्म बालिका बधू में , उन्होंने संगीतकार आर.डी. बर्मन का गीत “बड़े अच्छे लगते हैं” गाया , जिससे उन्हें राष्ट्रीय ख्याति मिली और इस गीत को रेडियो शो बिनाका गीतमाला द्वारा 1977 का 26वां सबसे लोकप्रिय फ़िल्मी गीत नामित किया गया था अमित कुमार ने आर.डी. बर्मन के संगीतबद्ध किए 170 हिंदी गाने गाए, अभिनेता रणधीर कपूर के लिए उन्होंने फ़िल्म ‘ कस्मे वादे’ में ‘आती रहेंगी बहारें’ गाया फिर’ चोर के घर चोर ‘ और ‘ ढोंगी ‘ में भी पार्श्व गायन किया । आपके गाए गीतों से सजी कुछ ख़ास फिल्में हैं :- आंधी , आप के दीवाने , खट्टा मीठा , गोलमाल , देस परदेस , गंगा की सौगंध , दीवानगी (1976), दुनिया मेरी जेब में , परवरिश , हमारे तुम्हारे (1979) और बातों बातों में शामिल हैं ।
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता
लता मंगेशकर के साथ आपका युगल गीत ” का जानू मैं सजनिया” और मोहम्मद रफ़ी साहब के साथ “राम करे अल्लाह करे” और “हमतो आप के दीवाने हैं”गीत बेहद पसंद किए गए फिर अमित ने 1981 की फ़िल्म लव स्टोरी के सभी गाने गाए और मंगेशकर के साथ ,युगल गीत “याद आ रही है” के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता इस सफलता के बाद , राजेश खन्ना ने अमित कुमार को फिल्म फिफ्टी फिफ्टी और फिर आखिर क्यों? में गाने के लिए चुना इसके बाद आपने, घर का चिराग , जय शिव शंकर , स्वर्ग और सौतेला भाई फिल्मों में लगातार गाने गाए। 1980 में अमित कुमार ने कुर्बानी फिल्म के लिए ” लैला ओ लैला ” गाया जिसे अब भी पसंद किया जाता है फिर 1981 में श्रद्धांजलि फिल्म में आशा-कुमार का युगल गीत “यूं तो हसीन हजार” बहोत हिट हुआ। 1982 और 1983 में उनके कई “चार्ट-बस्टर्स” और युगल गीत “तू रूठा तो मैं रो दूंगी सनम”, “गली गली ढूंढा तुझे” और एकल गीत “हल्ला गुल्ला मज़ा” और “माना अभी तू कमसिन” फ़िल्म जवानी (1984) से, 1984 में ही ,’ मैं कातिल हूँ’ के लिए बासुदेव द्वारा रचित “आओ नये सपने बुने” 1985 में, आखिर क्यों का युगल गीत “दुश्मन ना करे” बहोत लोकप्रिय हुए 1986 में फिर फिल्म अनोखा रिश्ता का गाना “मेरी तू होजा मेरी” और जीवा का युगल गीत “रोज़ रोज़ आँखें” बहोत लोकप्रिय हुए कुमार ने 1980 के दशक में लगभग सभी संगीत निर्देशकों और अभिनेताओं के लिए गीत गाए , छोटे पर्दे पर चुनौती और कैम्पस के लिए भी गीत गाए और अपने पिता किशोर कुमार के बाद हिंदी फिल्मों में दूसरे सबसे पसंदीदा पुरुष पार्श्वगायक बने ,संगीत निर्देशकों में, अमित कुमार की आवाज़ का बखूबी इस्तेमाल ,पंचम दा ने 1975 से 1994 तक और बप्पी लाहिड़ी ने 1983 से 1995 तक किया , 1980 के दशक में वो अभिनेता कुमार गौरव की आवाज़ बन गए और उनके लिए आपने रोमांस (1983), तेरी कसम , लवर्स (1983), हरफनमौला और टेलीफिल्म-जनम जैसी फिल्मों के कई हिट गाने दिए फिर जवानी , अनोखा रिश्ता , अपने अपने और चोर पे मोर जैसी फिल्मों में नवागंतुक करण शाह अभिनित गाने गाए 1980 के दशक के अंत में कुमार ने अनिल कपूर के लिए तेज़ाब , युद्ध और आग से खेलेंगे ,जैसी फिल्मों में गाने गाए ।
90 के दशक में भी गए बेहद लोकप्रिय गीत
90 के दशक में भी आपके कुछ गीत बेहद लोकप्रिय हुए जैसे फिल्म हम का गाना “सनम मेरे सनम” ,बागी: ए रिबेल फॉर लव का गाना “कैसा लगता है” ,फिल्म घायल का गाना ” प्यार तुम मुझसे ” । इस दशक में कुमार ने सैलाब , पुलिस पब्लिक , आज का अर्जुन , 100 डेज , अव्वल नंबर , चालबाज , खेल, विश्वात्मा , हनीमून , आज का गुंडा राज , गुरुदेव , बड़े मियां छोटे मियां और जुदाई जैसी फिल्मों में यादगार गीत गाए । आनंद-मिलिंद उस दौर के उन नए संगीतकारों में से एक रहे जिनके संगीत संयोजन में वो गाने गाते जिनमें फिल्म अफसाना प्यार का में आशा भोसले के साथ कुमार के युगल गीत “नजरें मिलीं” और “टिप टिप बारिश” बहोत हिट हुए । सैलाब में उनके “पलकों के तले” और “मुझको ये जिंदगी लगती है” जैसे युगल गीत भी हिट रहे। अमित कुमार ऐसे गायक है जिनके गाने फिल्म के फ्लॉप होने पर भी हिट होते थे। कुमार ने राम लक्ष्मण के साथ भी काम किया और 1990 में पुलिस पब्लिक में लता-अमित कुमार युगल गीत “मैं जिस दिन भुला दूं” और 1991 में 100 डेज़ में “ले ले दिल” जैसे गाने बेहद पसंद किए गए इस दशक के बाद वो फिल्मों से ज़्यादा दुनिया भर में लाइव स्टेज शो करने लगे।
नए संगीतकारों में आपने जतिन ललित के साथ भी काम किया जिन्होंने आपको फिल्म पांडव ,कभी हां कभी न, सिलसिला है प्यार का ,और कभी खुशी कभी ग़म में गाने पर मजबूर कर दिया । फिर आपने राजू चाचा , अपना सपना मनी मनी (2006), कंधार (2010), दूल्हा मिल गया , हिम्मतवाला (2013) के लिए भी गाने गाए और ऐसे गायक माने जाने लगे जो न केवल पुराने संगीत प्रेमियों बल्कि युवा पीढ़ी के भी दिल के क़रीब हैं।
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