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Shujaat Khan Birthday | गायिकी के उस्ताद हैं शुजात खान

About Shujaat Khan In Hindi | न्याज़िया बेगम: “नैना लगाइके मै पछताई” शुजात खान और आशा भोसले का ये गाना आपको याद है? दो उस्तादों की मुख्तलिफ गायकी का वो मखमली अंदाज़, वो भी शास्त्रीयता की रवायतों के साथ कहीं किसी सुर से ऐसी छेड़खानी नहीं है कि परंपरा से अलग हो इसके बावजूद सटीक और सधे हुए सुरों का जादू दिल में उतर जाता है उस पर भी सरगम कमाल करती है।
शुजात खान शास्त्रीय गायन और सितारवादन तो करते ही हैं, वो कई लेजेंडरी आर्टिस्टों के साथ जुगलबंदी भी करते नज़र आते हैं, ये माहिर फनकार इमदादखानी घराने से ताल्लुक रखते हैं, जिसे इटावा घराना संगीत विद्यालय भी कहा जाता है। आप इनकी सातवीं पीढ़ी हैं।

100 से ज्यादा एल्बम किए रिकॉर्ड

उन्होंने 100 से ज़्यादा एल्बम रिकॉर्ड किए हैं जिनमें ईरानी संगीतकार काहान कलहोर के साथ उनकी ग़ज़लों को खास तौर पर याद किया जाता है। उनके एल्बम, “द रेन” को 2004 में सर्वश्रेष्ठ विश्व संगीत एल्बम के लिए ग्रैमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था।

वालिद के साथ की संगीत कार्यक्रम की शुरुआत

उनकी सितार को आप ग़ौर से सुनके देखिए यूं लगता है मानो वो केवल सुरों को नहीं पकड़ती बल्कि अपनी अलग छाप छोड़ते हुए गाती है ये उनकी सितार बजाने की विशिष्ट शैली या ‘गायक अंग’ है। उनकी कला कुछ खास है, क्योंकि ये एक तपस्या है जो महज़ तीन साल से शुरू हुई, जब वो ख़ासतौर पर उनके लिए बनाए गए छोटे से सितार से रियाज़ किया करते थे। दरअसल
1960 में कोलकाता में जन्मे शुजात खान महान सितार वादक उस्ताद विलायत खान और मोनिशा हाजरा के बेटे हैं।
जिसकी वजह से वो छोटी सी उम्र से अपने अब्बा के साथ प्रोग्राम्स में जाने लगे थे और बड़े बड़े कलाकारों जैसे उस्ताद अमीर खान, पंडित भीमसेन जोशी, विदुषी किशोरी अमोनकर जैसे बड़े कलाकारों की संगत मिलने से कुछ गुर भी सीखने लगे थे।

संगीत घराने से संबंध

उनके घराने की संगीत वंशावली सात पीढ़ियों तक फैल चुकी है- उनके दादा उस्ताद इनायत खान, उनके परदादा उस्ताद इमदाद खान, और उनके परदादा उस्ताद साहेबदाद खान, इमदादखानी घराने के पथप्रदर्शक थे। जिसकी जड़ें भारत के उत्तर प्रदेश के नौगांव से हैं।
उनके पूर्वज सहारनपुर, आगरा, इटावा, वाराणसी, इंदौर, कोलकाता, गौरीपुर- बांग्लादेश, दिल्ली, लखनऊ, मुंबई, शिमला और देहरादून में भी रहते थे। आपके एक भाई सितार वादक हिदायत खान और दो बहनें सूफी गायिका ज़िला खान और यमन खान हैं।

6 वर्ष की उम्र में पहला कार्यक्रम

शुजात साहब ने अपना पहला संगीत कार्यक्रम 6 साल की उम्र में ही जहांगीर आर्ट गैलरी मुंबई में दिया था। उनकी लय सुनने में बड़ी सादा लगती है जो ताज़गी से भरपूर होती है और उनके वालिद विलायत खान की तरह बीच बीच में करिश्मे के मानिंद हैरान भी कर देती है। क्योंकि ये संगीत की समझ रखने वालों को पता है कि वो जितनी आसान लग रही होती ही उतनी होती नहीं है।

आवाज में है रूमानियत

उनकी आवाज़ लोकगीतों में भी अलग खनक और अपनापन पैदा करती है जिसे आप उनके 1995 के एल्बम लाजो लाजो में सुन सकते हैं। तो दूसरी तरफ मिर्ज़ा ग़ालिब का कलाम हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी भी, उनकी आवाज़ में ज़रूर सुनिएगा जिससे आपको उनकी आवाज़ में छुपे गायकी के पोशीदा मुख्तलिफ राज़ खुलते सुनाई देंगे। उनके खुसूसी अंदाज़ में जिसमें अलाप, तानों और मुर्कियों का बेजोड़ संगम होता है।

उस्ताद राशिद खान से जुगलबंदी

उस्ताद राशिद खान के साथ आपकी ‘जुगलबंदी’ भी लाजवाब है, जिसमें आपकी सितार ने बहुत कमाल का साथ दिया है। सीधे हाथ का ज़्यादा काम होता है इनकी सितार में लेकिन जो गायकी अंग है, वो इतना मधुर है कि आप कहीं अकेले नहीं पाते खुदको अंतरे के बाद की फिलिंग या हुं हुं हुं …कि कोमल धुनें आपको बड़ी मधुरता से फिर मुखड़े तक पहुंचा देती हैं।

फारसी एल्बम की शानदार प्रस्तुति

उन्होंने 2014 में फ़ारसी पारंपरिक संगीत एल्बम बियॉन्ड एनी फ़ॉर्म पर भी लाजवाब प्रस्तुति दी है। खानदान भी उनका एक मुख्तलिफ वीडियो एल्बम है जो आपको बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। आपका हर प्रस्तुति संगीत का एक नया अध्याय खोलती है हमारे लिए, इसलिए इनमें आपको कोई न कोई एक दूजे से जुदा ख़ासियत मिल जाएगी।

गायकी के उस्ताद

सुन के देखिए ग़ज़ल- ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं…, सूफियाना कलाम, छाप तिलक सब …, ठुमरी- रंग सारी… , हमारी अटारिया पे…, कबीर दोहे, मोका कहां ढूंढे रे…, एक तरफ राग हैं तो वहीं ग़ज़ल- ये दौलत भी ले लो …. है। जिसमें उन्होंने बतौर श्रद्धांजलि पुराने तरानों को भी नए कलेवर में ढाला है, संगीत का हर रंग आपको उनकी आवाज़ और सितार की जुगलबंदी में सुनाई देता है।

वालिद से नहीं बनी

उन्हें ख़ामोशी से सुनने में एक अलग ही सुकून मिलता है, मानो हम संगीत के अथाह सागर में डुबकी लगा रहे हों।
चलते चलते आपको ये भी बता दें कि, आपकी वालिद साहब से ज़्यादा नहीं बनी बस इस बात पर कि उन्होंने कभी दिल खोलकर आपकी तारीफ नहीं की। शाबाशी नहीं दी और ये पूछते रह गए कि अब्बा आप आख़िर क्या चाहते हैं मुझसे, लेकिन इसके बावजूद सितार को उनकी दी हुई जागीर, दौलत और वो नेमत मानते हैं जिसके बाद उन्हें उनसे और कुछ नहीं चाहिए था।

बेटा बढ़ा रहे परिवार की विरासत

शुजात साहब का एक बेटा है अज़ान जो उन्हीं के नक्श ए क़दम पर चल कर मौसिकी की नई धुनें तलाश रहा है। आज उनको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए ,चलिए सुनते उनके अंदाज़ में ,ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं ….।

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