भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) ने 26 जून 2025 को इतिहास रचते हुए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) में प्रवेश किया। वे Axiom-4 मिशन (Axiom-4 Mission) के तहत स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान (SpaceX Dragon Spacecraft) में 28 घंटे की यात्रा के बाद ISS पहुंचे। यह मिशन भारत के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि 41 साल बाद राकेश शर्मा (Rakesh Sharma) के बाद शुभांशु दूसरे भारतीय हैं जो अंतरिक्ष में गए और पहले भारतीय हैं जो ISS पर पहुंचे। इस मिशन के लिए भारत ने 548 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो ISRO के गगनयान मिशन (ISRO’s Gaganyaan Mission) की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है।
Axiom-4 मिशन का महत्व
Axiom-4 मिशन, NASA और ISRO के सहयोग से संचालित, 14 दिनों का एक वैज्ञानिक मिशन है, जिसमें शुभांशु सहित चार अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं। इस मिशन की कमान पूर्व NASA अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन (Peggy Whitson) संभाल रही हैं, जबकि शुभांशु पायलट की भूमिका में हैं। मिशन में पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं। यह मिशन 31 देशों के लिए 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग (Scientific Experiments) और शैक्षिक गतिविधियां करेगा, जिनमें से 7 भारत-केंद्रित प्रयोग (India-Specific Experiments) शुभांशु के नेतृत्व में होंगे।
शुभांशु के 7 भारतीय प्रयोग
शुभांशु ISS पर भारत की ओर से सात महत्वपूर्ण प्रयोग करेंगे, जो गगनयान और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों (Deep-Space Missions) के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये प्रयोग IITs, IISc, और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) जैसे भारतीय संस्थानों द्वारा डिज़ाइन किए गए हैं।
- माइक्रोग्रैविटी में बीज अंकुरण (Microgravity Seed Germination): शुभांशु मूंग और मेथी के बीजों (Moong and Fenugreek Seeds) पर प्रयोग करेंगे, ताकि अंतरिक्ष में फसल उगाने (Space Farming) की संभावनाओं का अध्ययन हो सके। यह भविष्य के लंबे मिशनों के लिए भोजन आपूर्ति (Space Nutrition) को समझने में मदद करेगा।
- मांसपेशियों और कोशिकाओं की उम्र बढ़ने का अध्ययन (Muscle Degeneration and Cellular Aging): माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों और कोशिकाओं पर प्रभाव का अध्ययन, जो अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत (Astronaut Health) के लिए महत्वपूर्ण है।
- साइनोबैक्टीरिया का अध्ययन (Cyanobacteria Study): जीवन समर्थन प्रणालियों (Life Support Systems) के लिए साइनोबैक्टीरिया का उपयोग, जो ऑक्सीजन और अन्य संसाधनों के उत्पादन में सहायक हो सकता है।
- टार्डिग्रेड्स पर शोध (Tardigrade Research): ये सूक्ष्म जीव माइक्रोग्रैविटी में जीवित रहने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं, और इनका अध्ययन दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए उपयोगी है।
- चिकित्सा प्रयोग (Medical Experiments): अंतरिक्ष में मानव शरीर पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव को समझने के लिए जैव-चिकित्सा प्रयोग।
- प्रौद्योगिकी प्रदर्शन (Technology Demonstration): भारतीय संस्थानों द्वारा विकसित उपकरणों का परीक्षण, जो गगनयान के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करेगा।
- शैक्षिक आउटरीच (STEM Outreach): शुभांशु भारत के छात्रों के लिए अंतरिक्ष से शैक्षिक गतिविधियां करेंगे, ताकि युवाओं में विज्ञान और अंतरिक्ष अनुसंधान (Space Research) के प्रति रुचि बढ़े।
गगनयान मिशन के लिए कैसे फायदेमंद?
शुभांशु की यह यात्रा भारत के गगनयान मिशन के लिए महत्वपूर्ण है, जो 2027 में भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन (India’s First Human Spaceflight) होगा। पूर्व ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ (S Somanath) ने कहा कि शुभांशु का अनुभव गगनयान की योजना, जीवन विज्ञान प्रयोगों (Life Science Payloads), और दीर्घकालिक अंतरिक्ष उड़ानों (Long-Duration Spaceflight) के लिए महत्वपूर्ण होगा।
- प्रशिक्षण का लाभ: शुभांशु ने मॉस्को के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर (Yuri Gagarin Cosmonaut Training Center) में एक साल की कठिन ट्रेनिंग ली, जिसमें माइक्रोग्रैविटी अनुकूलन (Microgravity Adaptation), आपातकालीन प्रक्रियाएं (Emergency Procedures), और लॉन्च प्रोटोकॉल शामिल थे। यह अनुभव गगनयान के लिए चुने गए चार अंतरिक्ष यात्रियों (Gaganyaan Astronauts) के प्रशिक्षण को मजबूत करेगा।
- तकनीकी जानकारी: ड्रैगन यान की जीवन समर्थन प्रणाली (Life Support Systems) और डॉकिंग प्रक्रियाओं (Rendezvous and Docking) का अनुभव गगनयान और भविष्य के भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksha Station) के लिए उपयोगी होगा।
- वैज्ञानिक डेटा: शुभांशु के प्रयोगों से प्राप्त डेटा गगनयान के लिए वैज्ञानिक और चिकित्सा चुनौतियों (Scientific and Medical Challenges) को हल करने में मदद करेगा।
39 वर्षीय शुभांशु शुक्ला, लखनऊ के निवासी, भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट (Test Pilot) हैं। वे गगनयान मिशन के लिए चुने गए चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक हैं। 1984 में जन्मे शुभांशु ने उसी साल राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा से प्रेरणा ली थी। उनके माता-पिता ने लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल में लॉन्च का सीधा प्रसारण देखा और तालियां बजाकर इस क्षण का उत्सव मनाया। शुभांशु ने अंतरिक्ष से “नमस्कार फ्रॉम स्पेस” (Namaskar from Space) कहकर भारत को गौरवान्वित किया। उन्होंने एक हंस का सॉफ्ट टॉय (Swan Soft Toy) और आमरस (Aamras) अपने साथ ले गए, जो भारतीय संस्कृति का प्रतीक हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कहा, “शुभांशु शुक्ला ISS पर जाने वाले पहले भारतीय बनने की राह पर हैं। यह भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं (India’s Space Ambitions) के लिए एक गर्व का क्षण है।” केंद्रीय अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह (Jitendra Singh) ने इसे विश्व के लिए भारत की वैज्ञानिक प्रगति (Scientific Progress) का प्रतीक बताया।
भारत की अंतरिक्ष यात्रा में मील का पत्थर
यह मिशन भारत के लिए केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि (Scientific Milestone) ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग (Space Diplomacy) में भी एक बड़ा कदम है। ISRO ने 2020 की अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों (Space Sector Reforms) के तहत निजी निवेश को प्रोत्साहित किया है, और Axiom-4 मिशन इसका एक उदाहरण है। यह मिशन भारत को 2040 तक चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्री भेजने (Moon Landing by 2040) और 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने (Bharatiya Antariksha Station by 2035) के लक्ष्य की ओर ले जाएगा।
शुभांशु का यह मिशन भारत के युवाओं में अंतरिक्ष अनुसंधान (Space Exploration) के प्रति नई प्रेरणा जगा रहा है और गगनयान मिशन को एक मजबूत नींव प्रदान कर रहा है।