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रीवा में मौजूद है 1001 छिद्रों वाला शिवलिंग, अलौकिक शिवधाम भी, महाशिवरात्रि पर पहुचते है हजारों शिव भक्त

रीवा। महाशिवरात्रि पर्व पर भवगवान शिव और माता पार्वती का शिव भक्त पूजन करते है। हिन्दु धर्म में इस पर्व को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी बुधवार को मनाया जा रहा है। जहां हर-हर महादेवा से शिवायल गूंज रहे है। रीवा में महाशिवरात्रि पर्व पर ऐतिहासिक महामृत्यजंय भगवान किला एवं प्रसिद्ध देवतालाब शिव मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त भोलेबाबा एवं माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर रहे है। दोनों ही मंदिरों में भव्य मेला भी आयोजित है।
1001 छिद्रों वाले महामृत्यजंय भगवान की ऐसी है महिमा
रीवा शहर के किला में विराजमान महामृत्यजंय भगवान की अपार महिमा है। रीवा ही ऐसा स्थान है जंहा महामृत्यजंय भगवान विराजमान है। ऐसी मान्यता है कि यहां यदि कोई भक्त सच्चे मन से भगवान से कुछ मांगता है तो उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है और तो और यह भी कहा जाता है कि यहां केवल दर्शन मात्र से सारे रोग दूर हो जाते हैं एवं शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार, 1001 छेदों वाला यह सफेद शिवलिंग अकाल मृत्यु से अपने भक्तों की रक्षा करता है। कहते हैं कि भोलेनाथ के इस मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है।
पत्थर की शिला से तैयार देवतालाब का अलौकिक शिवधाम
नव गठित मउगंज जिले का देवतालाब अलौकिक शिवधाम के रूप में पहचान जाता है। ऐसा बताया जाता है कि इस अलौकिक धाम का निर्माण त्रेयतायुग से जुड़ा हुआ है। यहां पर शिलाओं से निर्मीत भोले नाथ का मंदिर होने के साथ ही माता पार्वती की मंदिर भी है। शिव भक्त मंदिर में पूजा करने के साथ ही शिव और पार्वती मंदिर में गठजोड़ अवश्य करवाते है। सावन मास में एक माह का यहां मेला लगता है तो महाशिवरात्रि समेत अन्य पर्व पर देवतालाब के आसपास के सैकड़ों गांव से शिव भक्त हजारों की सख्या में पूजा-अर्चना के लिए पहुचते है। इतना ही नही चारोधाम की यात्रा तभी पूरी मानी जाती है जब यात्रा करने वाले लोग सबसे अंत में देवतालाब के शिव को जल चढ़ाते है।
एक रात में भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं किया था इस मंदिर का निर्माण
इस मंदिर में श्रृंगेश्वर नाथ रूपी शिवलिंग स्थापित है. जिसे सोमनाथ के रूप में भी जाना जाता है. बडी संख्या में देश विदेश से श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने देवतालाब मंदिर आते हैं. श्रावण, अगहन और फाल्गुन मास में बड़ी संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन करने देवतालब पहुंचते हैं।
किवदंतियां हैं कि, देवतालाब का यह शिव धाम त्रेता युग के समय का है. त्रेयता युग के समय में भगवान भोलेनाथ के परम भक्त श्रृंगीऋषि इस क्षेत्र में आए थे, तब इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था. उन्होंने यहीं पर रूककर भगवान शिव की अराधना की और तस्पया में लीन हो गए। इसके बाद स्वयं भगवान शिव ने श्रृंगीऋषि को साक्षात दर्शन दिए, तभी एक शिवलिंग प्रकट हुई. जिसके बाद भगवान शिव ने श्रृंगीऋषि को इसी स्थान पर मंदिर बनवाने के लिए निर्देशित किया। श्रृंगीऋषि ने भगवानों के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा को अमंत्रित किया. जिसके बाद स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक विशाल चट्टान को तराश कर एक ही रात में बेजोड़ भव्य मंदिर का निर्माण किया था. उसी दौरान भगवान विश्वकर्मा ने मंदिर के चारों ओर तालाबों का निर्माण किया, ताकि भक्त मंदिर में आकार भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकें. इन्हीं तलाबों की वजह से शिव के इस नगरी का नाम देवतालाब पड़ा।

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