देवतालाब का शिवमंदिर: जिसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था

Shiva Temple Of Devtalab: देश के ह्रदयप्रदेश में स्थित विंध्य क्षेत्र में भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं, जो भक्तों की आस्था के केंद्र हैं, उन्हीं में से एक प्रसिद्ध मंदिर, रीवा शहर से करीब 55 किलोमीटर दूर मऊगंज जिले में स्थित देवतालाब का है। देवतालाब जो भगवान शिव की भूमि और ऋषियों की साधनास्थली है। इसका नाम दो शब्दों देव और तालाब के संयोजन से बना है, देव का तात्पर्य स्वयं महादेव से है और चूंकि इस पूरे क्षेत्र में तालाबों की अधिकता है, इसीलिए यह स्थान देवतालाब के नाम से प्रसिद्ध है। यह माना जाता है, यहाँ स्थित इस मंदिर का निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने, स्वयं भगवान शिव के आदेश पर, एक ही रात में और एक विशालकाय पत्थर को काटकर किया था, इसीलिए इस मंदिर के गर्भगृह में कोई भी जोड़ नहीं दिखता है, मान्यता है इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग दिन में कई बार रंग बदलता है।

महर्षि मार्कण्डेय से जुडी है निर्माण की कथा

मंदिर के निर्माण से जुड़ी कई कथाएँ इस क्षेत्र में प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा महर्षि मार्कन्डेय से संबंधित है। कहा जाता है, त्रेतायुग में एक बार भगवान शिव के परमभक्त, महर्षि मार्कन्डेय का आगमन इस क्षेत्र में हुआ, वह भ्रमण करते हुए इस स्थान पर पहुंचे, तभी उनके मन में शिवदर्शन की उत्कट अभिलाषा उत्पन्न हो गई, उन्होंने अपने आराध्य से प्रार्थना की उन्हें दर्शन दें, चाहे किसी भी स्वरूप में, लेकिन भगवान शिव प्रकट नहीं हुए। तब महर्षि ने कठोर तप का प्रण लेते हुए कहा- “जब तक भगवान शिव दर्शन नहीं देंगे, तब तक वह तप करते ही रहेंगे।” महर्षि कई दिनों इसी स्थान पर कठोर तप करते रहे, आखिरकार उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान ने, उन्हें शिवलिंग रूप में दर्शन देने का निश्चय किया और देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी को यहाँ पर एक मंदिर बनाने का आदेश दिया।

भगवान शिव के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया मंदिर

महादेव का आदेश प्राप्त होते ही विश्वकर्मा इस स्थान पर आए और यहाँ स्थित एक विशालकाय पत्थर को काटकर रातोंरात मंदिर का निर्माण कर दिया और भगवान शिव, लिंग स्वरूप में यहाँ प्रकट हो गए। घोर तपस्या में लीन महर्षि को भगवान की इस लीला का आभाष नहीं हुआ, लेकिन भगवत प्रेरणा से जब महर्षि ने अपनी आँखें खोली, तो अपने समक्ष एक अद्भुत मंदिर और उसमें स्थित स्वयंभू शिवलिंग को देखा, यह देख, भाव विभोर हो महर्षि दौड़कर मूर्ति के समक्ष नतमस्तक हो गए और भगवान शिव की आराधना और पूजा करने लगे, उन्होंने निकट ही स्थित जलाशय से जल ले आकर भगवान शिव का अभिषेक किया।

यहाँ है जल चढाने का महत्व

तभी से यहाँ पर अभिषेक की परंपरा चल निकली, जो आज तक जारी है। इस पूरे विंध्यक्षेत्र में यह मान्यता है, चारों धाम की तीर्थयात्रा तभी सफल होती है, जब गंगोत्री का जल रामेश्वरम के साथ-साथ यहाँ पर भी चढ़ाया जाए, इसीलिए तीर्थयात्री, यात्रा से लौटकर यहाँ आते हैं और भगवान शिव को परम-पावन गंगोत्री का जल अर्पित करते हैं और इसके साथ ही, उनकी चारोंधाम यात्रा पूर्ण मानी जाती है।

शृंगी ऋषि से भी संबंधित है मंदिर | Shiva Temple Of Devtalab

महर्षि मार्कन्डेय के साथ ही, इस मंदिर के निर्माण की एक कथा शृंगी ऋषि से भी संबंधित है, देवतालाब को शृंगी ऋषि की तपोस्थली माना जाता है, मान्यता है उन्होंने कई वर्षों तक इस स्थान पर रहकर, यहाँ भगवान शिव की आराधना की थी, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे और शृंगी ऋषि द्वारा ही भगवान विश्वकर्मा से यहाँ मंदिर निर्माण का आग्रह किया था। जिसके बाद देवशिल्पी विश्वकर्मा ने यहाँ मंदिर का निर्माण किया था, शृंगी ऋषि द्वारा प्रतिष्ठित होने के कारण ही यहाँ स्थित शिवलिंग को श्रृंगेश्वर नाथ भी कहा जाता है।

साधारण लेकिन बेहद खूबसूरत है मंदिर का स्थापत्य

मंदिर का स्थापत्य बेहद सुंदर और अद्भुत है, एक विशालकाय पत्थर से निर्मित, इस मंदिर में, कहीं भी कोई जोड़ प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि इसके निर्माण में किसी भी पत्थर, ईंट, रेत और सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया था। मंदिर की बाहरी संरचना में कोई भी कलाकृतियाँ निर्मित नहीं है, लेकिन साधारण होने के बाद भी मंदिर बहुत मनमोहक है।

गर्भगृह में स्थापित हैं पांच शिवलिंग

गर्भगृह में पांच पवित्र शिवलिंग स्थापित हैं, मान्यता है यह पांच शिवलिंग भगवान शिव के पांच स्वरूप हैं, जो मनुष्य जीवन के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत के अन्य शिवमंदिरों की तरह ही, गर्भगृह के ठीक सामने भगवान शिव के प्रमुख गण नंदी की प्रतिमा स्थापित है, यह माना जाता है नंदी के दर्शन के बिना, भगवान शिव का दर्शन अधूरा ही रहता है।

शिव-पार्वती मंदिर के गठबंधन की है रस्म

यहाँ स्थित एक प्रमुख मंदिर के अलावा चार और भी मंदिर हैं, बताया जाता है इनका निर्माण रीवा रियासत के राजाओं द्वारा करवाया गया था। उन्हीं में से एक मंदिर, शिवमंदिर के ठीक सामने है। यह मंदिर भगवान शिव की, शक्तिस्वरूपा अर्धांगिनी, देवी पार्वती को समर्पित है। सावन के पवित्र महीने में, जब प्रकृति हरियाली से शृंगार करती है, उसी समय भगवान शिव के मंदिर और देवी पार्वती के मंदिर का गठबंधन, यहाँ सूत के धागों और कपड़ों से किया जाता है। क्योंकि माना जाता है, यह पवित्र महीना शिव और पार्वती के मिलन का होता है, देवी द्वारा शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए, की गई वर्षों की तपस्या के बाद ही, भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे और उनसे विवाह हेतु अपनी स्वीकृति दी थी। इस गठबंधन के अवसर पर माता पार्वती को लाल चुनरी और भगवान शिव को छोटी सी मौरी चढ़ाई जाती है, जो विवाह के समय दूल्हा और दुल्हन द्वारा पहना जाता है। इसीलिए भक्त यहाँ पर आकर अपनी मन्नतों के लिए भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर का गठबंधन करते हैं और इच्छापूर्ति के बाद यहाँ आकर भगवान के दर्शन करते हैं। यहाँ भक्तों द्वारा अपने नवजात बच्चों का मुंडन और कर्णभेदन संस्कार किया जाता है, कथा और पूजन किया जाता है। नवविवाहित जोड़े भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन के लिए आते हैं। यहाँ स्थित बाकि दूसरे मंदिर भी शिव परिवार को ही समर्पित हैं और भक्तों की आस्था के केंद्र हैं।

मंदिर के पास हैं अनेकों जलाशय

मंदिर के पूजन इत्यादि के लिए यहाँ स्थित प्राचीन कुंड का जल चढ़ाया जाता है, जिसे शिवकुंड कहते हैं, माना जाता है यहाँ के बाकि जलाशय भले ही सूख जाएँ, पर शिवकुंड का जल कभी नहीं सूखता है, यह भगवद महिमा ही है। भक्त अपने भगवान के जलाभिषेक के लिए इसी गहरे कुंड में उतरकर जल लाते हैं और भगवान को समर्पित करते हैं। कुंड तक सुगमता से पहुँचने के लिए शासन द्वारा सीढ़ियों का निर्माण करवाया गया है, मध्यप्रदेश शासन द्वारा यहाँ कुंड में सौंदर्यीकरण का कार्य भी करवाया गया है, जिसके कारण यह बेहद खूबसूरत लगता है। स्थानीय लोगों द्वारा बताया जाता है, यहाँ पहले आस-पास कई जलाशय स्थित थे, लेकिन अब समय के साथ ज्यादातर क्षीण हो चुके हैं, हालांकि रियासत काल में, रीवा के नगर सेठ, बैजनाथ रामसहाय ने एक तालाब का गहरीकरण करवाया था, जो आज भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।

मुग़ल सेना द्वारा आक्रमण की किवदंती

स्थानीय लोगों द्वारा बताया जाता है, देश के अन्य मंदिरों की तरह ही यह मंदिर भी एक समय आक्रमण का शिकार हुआ, माना जाता है- औरंगजेब के समय, किसी मुग़ल टुकड़ी ने, इस मंदिर को नष्ट करने के लिए, यहाँ आक्रमण किया था, लेकिन भगवान भोलेनाथ की महिमा से उन्हें लौट जाना पड़ा, क्योंकि मंदिर से बहुत सारे सांप-बिच्छू और मधुमक्खियों के झुंड निकलने लगे और मुग़ल सेना पड़ टूट पड़े। कई लोककथाओं के अनुसार किसी समय, एक स्थानीय राजा ने भी, इस मंदिर को ध्वस्त करने का निश्चय किया था, लेकिन जैसे ही वह मंदिर के पास पहुंचा, उसे खबर लगी, उसका परिवार ही नष्ट हो गया।

मंदिर के गर्भगृह में मणि होने की बात | | Shiva Temple Of Devtalab

माना जाता है मंदिर के गर्भगृह के ठीक नीचे, एक और मंदिर स्थित है, जिस तक जाने के लिए, मंदिर के सामने से ही रास्ता था। स्थानीय लोगों द्वारा बताया जाता है, उस मंदिर में बहुत बड़ा खजाने के साथ ही एक दिव्यमणि भी है, जिसकी सुरक्षा जहरीले नाग करते हैं। मणि को पाने की लालसा में कई लोगों द्वारा यहाँ प्रयास किए जाते थे, लेकिन तब यहाँ तहखाने से बहुत जहरीले सर्प निकलने लगते थे, जिसके बाद उस रास्ते को बंद कर दिया गया।

इतिहासकारों की मान्यता

ऐतिहासिक दृष्टि से अगर देखा जाए, तो इतिहासकारों की यह मान्यता है, यह मंदिर कल्चुरि कालीन हो सकता है, क्योंकि कल्चुरियों के समय में, इस पूरे विंध्यक्षेत्र में शैव्य धर्म का बड़ा जोर था, उसी काल में यहाँ कई भव्य शिवमंदिर और मठों का निर्माण करवाया गया था। जो भी हो लेकिन यह मंदिर धार्मिक के साथ-साथ ही, बहुत ज्यादा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है और लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां वर्ष भर लाखों श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए यहाँ आते हैं और भगवान भोलेनाथ से सुख-समृद्धि और शांति की कामना करते हैं।

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