Author: डॉ अभिषेक त्रिपाठी | आज शिव कुमार शर्मा की पुण्य तिथि है। मेरे पसंदीदा संगीतकार। शास्त्रीय संगीत में भी और फिल्म संगीत में भी, सुगम संगीत में भी। बरसों पहले अपने आप को देखता हूँ- एक दस-बारह सालों का लड़का अपने टेप रिकॉर्डर पर राग सोहनी सुन रहा है- लगातार कई दिनों तक। शिव कुमार शर्मा की संतूर पर बजायी हुई राग सोहनी। सम्मोहन इतना जबरदस्त है कि फिर संतूर यानी शिव कुमार शर्मा। उसके बाद राग भूपाली, राग किरवानी, राग भूपाल तोड़ी और भी बहुत कुछ। फिर उनका परिचय शिव-हरि के रूप में। एक महान संगीतकार जोड़ी जिसने बस कुछ फिल्मों में संगीत देकर अपना लोहा मनवा लिया फिल्म जगत में भी।
फिर अपने पसंदीदा संगीतकार से एक मुलाक़ात छोटी सी। हुआ कुछ यूँ कि मैं दिल्ली में अपने गुरु ज्वाला प्रसाद से सीखने जाता था और बाद में मुंबई भी रहने लगा काम के सिलसिले में। तब गुरुजी ने कहा कि सुरेश वाडकर से मिलना मेरा नाम बता कर। उनके आदेश पर मैं पहुँच गया मिलने उनसे। उनके ऊपर वाले क्लास रूम में बैठा था। सब सीख रहे थे। अचानक दरवाज़े पर दस्तक। दरवाज़े पर खड़े थे शिव कुमार शर्मा बिल्कुल दिव्य स्वरूप में। खुले फैले हुए धुंए के रंग के बाल। मनमोहक छवि। फिर वो अंदर आ गए, सबने आशीर्वाद लिया और बातें कीं। मैं तो जी भर के देखता रहा और सुनता रहा। फिर उन्हें सुनने के मौका मिला एक कार्यक्रम में दिल्ली में। सौ तारों को संभालना और उन्हें अपनी उँगलियों के जादू और कलम (संतूर बजाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्टिक) के माध्यम से उन्हें झंकृत करते हुए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करना उन्हें बखूबी आता था। मैं तो आजीवन उनके सम्मोहन में हूँ।
पहले गायन, फिर तबला, और अंततः संतूर जिसका पर्याय बन गए शिव कुमार शर्मा। जैसा उन्होंने संतूर बजाया वैसा ही उनका स्वभाव था- मृदु और निश्छल। उन्होंने अपने पिता का सपना पूरा किया और कश्मीर के लोकवाद्य को दुनिया भर में पहचान ही नहीं दिलाई वरन उसे एक विशिष्ट स्थान दिलाया और जी भर के मान दिलाया। उन्होंने अपने जीवन में शास्त्रीय संगीत का खूब प्रचार प्रसार किया संतूर के माध्यम से। उन्होंने कई म्यूजिक एल्बम भी रिकॉर्ड किए जिनमें अलग अलग भावों के धरातलों पर जाकर संगीत रचनाएँ की गई हैं। एक एल्बम है- ‘पैराबेल्स ऑफ़ पैशन’ यानि कहा जाये तो ‘अनुराग के दृष्टान्त’, वाक़ई इसे सुनेंगे तो आपको इसमें अनेक दृष्टान्त मिल जायेंगे। इसी एल्बम की एक कम्पोज़ीशन है- ‘ड्राइविंग थ्रू माउंटेन्स’। सुनने पर आपको पहाड़ों के दृश्य अपनी खिड़की से होते हुए गुज़रते दिखाई देंगे। यूँ तो झप ताल में यह कम्पोजीशन बनाई गई है। लेकिन सुनने पर आपको 5/8 के वाल्ट्ज़ का मज़ा भी भरपूर मिलेगा। गिटार की स्ट्रमिंग्स के साथ बास गिटार के ग्रूव्स आपको पहाड़ों के आगोश में जाने को मजबूर कर सकते हैं।
ऐसे अनेक एल्बम शिव कुमार शर्मा ने हम सब के लिए विरासत में छोड़े हैं। बस सुनते रहें और गुनते रहें। फिल्मों में शिव-हरि के रूप में उनकी उपस्थिति भी जबरदस्त रही है। शिव-हरि भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो महान गुरु संगीतकारों की जोड़ी है। संतूर वादक शिव कुमार शर्मा और बांसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया ने ज्यादातर यश चोपड़ा प्रोडक्शन के लिए अपना नाम जोड़ा और उनकी फिल्मों के लिए सुमधुर संगीत तैयार किया। उनका संगीत व्यावसायिक दृष्टि से भी काफी सफल रहा है। । उन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय और पाश्चात्य संगीत के तत्वों के अनेक रूप इस्तेमाल किए हैं। उन्होंने 1993 में यश चोपड़ा के लिए फिल्म ‘डर’ में शानदार गाना ‘तू मेरे सामने, मैं तेरे सामने, तुझको देखूं कि प्यार करूं’ बनाया था। यह फिल्म के एक जुनूनी किरदार का फंतासी गाना है। मुखड़ा पुरुष गायक के लिए माइनर कॉर्ड प्रोग्रेशन से शुरू होता है, महिला गायक के लिए मेजर कॉर्ड प्रोग्रेशन की ओर बढ़ता है और पुरुष गायक के लिए फिर से माइनर कॉर्ड प्रोग्रेशन पर वापस आता है। यह सुनने में अद्भुत लगता है। संगीत संयोजन प्रसिद्ध म्यूजिक अरेंजर किशोर शर्मा द्वारा किया गया है। इस गाने का रूप एक एपिक सीक्वेंस की तरह बनाया गया है और पूरा गाना सिम्फोनिक ऑर्केस्ट्रा के पश्चिमी तत्वों पर आधारित है। यह सृजनशीलता भी शिव कुमार शर्मा के संगीत निर्देशन का अद्भुत स्वरुप प्रदर्शित करती है। सिलसिला, चांदनी, लम्हे, उनकी प्रमुख फ़िल्में कही जा सकती हैं जिनमें उनका संगीत निर्देशन सुनने मिला।
शिव कुमार शर्मा के पिता बनारस घराने के बेहतरीन गायक थे। बनारस घराना यानि रस बना रहे। तो भाई संगीत का रस इनके संगीत में बहुत असरदार रहा है। बनारस के संगीत के रस की रवानी शिव कुमार जी के हर संगीत में बनी रही है। शिव कुमार शर्मा के संगीत में प्रयोग भी हमेशा होते रहे और नित नूतनता उन्हें प्रिय थी। तालों और मात्राओं पर उनकी पकड़ और प्रयोगशीलता के बारे में विख्यात मोहनवीणा वादक विश्वमोहन भट्ट ने कहा था कि मात्राओं के बटवारे और मुश्किल लयकारियाँ- तीन ताल में झप ताल, रूपक ताल, एक ताल, जो शिव कुमार शर्मा ने की हैं उन्हें बिरले कलाकार ही सोच पाते हैं। उन्होंने एक लोकवाद्य संतूर को ख़ालिस शास्त्रीय संगीत का वाद्य बना दिया, उसे पहचान दिलाई, उस साज़ में अनेक परिवर्तन किये और नयी पीढ़ी के लिए एक रास्ता तैयार किया जो अतुलनीय है। यह सब उनकी गहरी सृजनशीलता और प्रयोगशीलता के बूते ही संभव हुआ है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका अविस्मरणीय योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।