Author: नियाज़िया बेगम | Shashi Kapoor Acting Career | दुबला पतला बदन मासूम से चेहरे पर बड़ी बड़ी आंखे और गालों पर डिम्पल लिए नुकीले दांतों की दिलकश हँसी जिसने न केवल अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता को टक्कर दी बल्कि शर्मिला टैगोर जैसी बड़ी एक्ट्रेस के भी अपनी खूबसूरती से होश उड़ा दिए थे।
जी हां ये थे पृथ्वीराज कपूर के बेटे शशि कपूर जिन्हें पृथ्वी जी ने नाम दिया था बलबीर राज कपूर जो उनकी पत्नी को पसंद नहीं आया और उन्होंने ही उनका नाम बदलकर शशि कर दिया क्योंकि मां को उनका चेहरा चांद सा सुंदर लगता था, वे राज कपूर और शम्मी कपूर के सबसे छोटे भाई थे, वो बचपन से ही अपने पिता के पृथ्वी थिएटर से जुड़कर अभिनय के गुर सीखने लगे थे और पृथ्वीराज कपूर द्वारा निर्देशित और निर्मित कई नाटकों में अपने अभिनय का जादू भी बिखेरा और ये सिलसिला शुरू हुआ था,
जब शशिराज के नाम से बतौर बाल कलाकार वो महज़ चार – पांच साल की उम्र से फिल्मों में भी अभिनय करने लगे थे, शशि के साथ राज इसलिए लगाया गया क्योंकि शशि नाम से पहले से एक बाल कलाकार था जो पौराणिक फिल्मों में अभिनय करता था ,इस दौरान उनकी फिल्में आईं (1948) की आग और (1951) की आवारा , जिसमें उन्होंने अपने बड़े भाई राज कपूर द्वारा निभाए गए पात्रों के बचपन का किरदार निभाया था ,(1950) की संग्राम में, उन्होंने अशोक कुमार के युवा संस्करण की भूमिका निभाई और 1953 की फिल्म दाना पानी ,में भारत भूषण के साथ अभिनय किया और 1948 से 1954 तक चार हिंदी फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम किया।
50 के दशक मे पिता की सलाह पर वे गोद्फ्रे कैंडल के थियेटर ग्रुप ‘शेक्स्पियाराना’ में शामिल हो गए थे और उसके साथ दुनिया भर में यात्राये करते रहते, इसी दोरान गोद्फ्रे की बेटी और ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर से उनकी मुलाक़ात हुई और उन्हें ,उनसे प्यार हो गया जिनसे सिर्फ 20 साल की उम्र में आपने शादी कर ली ,इतनी हसीनाएं उनपर फिदा थीं लेकिन उनकी मोहब्बत सिर्फ जेनिफर रहीं ता ज़िंदगी।
फिल्म ‘श्रीमान सत्यवादी’ और ‘दूल्हा दुल्हन’ में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर भी अपने काम किया । साल 1961 में बतौर हीरो शशि कपूर की एंट्री हुई फिल्म ‘धर्मपुत्र’. से ।
लेकिन अपने गै़र रवायती क़िस्म की भूमिकाओ के साथ सिनेमा के परदे पर आग़ाज़ किया था , जिनमें सांप्रदायिक दंगो पर आधारित धर्मपुत्र रही उसके बाद चार दीवारी और प्रेमपत्र जैसी ऑफ बीट फ़िल्मो में भी नज़र आये।
वे हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने हाउसहोल्डर और शेक्सपियर वाला जैसी अंग्रेजी फ़िल्मो में भी मुख्य भूमिकाये निभाई साल १९६५ उनके लिए एक महत्वपूर्ण साल था। इसी साल उनकी पहली जुबली फ़िल्म ‘जब जब फूल खिले’ रिलीज़ हुई और यश चोपड़ा ने उन्हें भारत की पहली बहुल अभिनेताओ वाली हिंदी फ़िल्म ‘वक्त’ के लिए कास्ट किया।
बॉक्स ऑफिस पर लगातार दो बड़ी हिट फ़िल्मो के बाद व्यावहारिकता का तकाज़ा ये था की शशि कपूर अब रवायती और ट्रेडिंग रोल करते पर उनके अन्दर का अभिनेता इसके लिए तैयार नहीं था वो बहोत कुछ करना चाहते थे इसलिए इसके बाद उन्होंने ‘ए मत्तेर ऑफ़ इन्नोसेंस’ और ‘प्रीटी परली ६७’ जसी फ़िल्मे की.
तो वहीँ हसीना मान जाएगी और प्यार का मौसम जैसी फिल्मों ने उन्हें एक चाँकलेटी हीरो के रूप में स्थापित किया। वर्ष १९७२ की फ़िल्म सिथार्थ के साथ उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर अपनी मोजुदगी बनाए रखी.
७० के दशक में शशि कपूर सबसे व्यस्त अभिनेताओ में से एक थे। इसी में उनकी ‘चोर मचाये शोर’, दीवार, कभी – कभी, दूसरा आदमी और ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम’ जैसी हिट फ़िल्मे रिलीज़ हुयी. और वर्ष १९७१ में पिता पृथ्वीराज के गुज़र जाने बाद शशि कपूर ने जेनिफर के साथ मिलकर पिता के सपने को पूरा करने के लिए मुंबई में पृथ्वी थियेटर का पुनरूत्थान किया। अ
मिताभ बच्चन के साथ आई उनकी फ़िल्मो दीवार, कभी – कभी, त्रिशूल, सिलसिला, नमक हलाल, दो और दो पंच, शान ने भी उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलवाई।
१९७७ में इन्होने अपनी होम प्रोडक्सन क. ‘फ़िल्म्वालाज’ लॉन्च की। साल २०११ में उनको भारत सरकार ने पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया और साल २०१५ में उन्हें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जिसके बाद वे अपने पिता पृथ्वीराज कपूर और बड़े भाई राजकपूर के बाद ये सम्मान पाने वाले कपूर परिवार के तीसरे सदस्य बन गये।
ज़िंदगी बहुत बेरंग है और छोटी भी इसलिए इसमें रंग भरने के लिए उन्होंने इसमें बहुत पक्के और गहरे रंग ,रंगे जिनकी रंगीली छठा में वो हमेशा कला प्रेमियों के बीच, उनकी यादों में जावेदाँ रहेंगे।