SHARDEY NAVRATRI 2025 : कालीदास रचित कालिका स्तुति, महत्व-पाठ व लाभ – भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में देवी महाकाली का विशेष स्थान है। मां काली केवल विनाश की देवी नहीं हैं, बल्कि न्याय, धर्म और शक्ति की अधिष्ठात्री भी हैं। उनकी स्तुति का स्मरण मनुष्य को भयमुक्त, साहसी और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। इन्हीं स्तुतियों में सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली है-“अयि गिरि नन्दिनी”जिसे महान कवि कालिदास ने रचा। इस स्तुति को महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र भी कहा जाता है। यह स्तुति इतनी प्रभावशाली है कि इसे पढ़ने या गाने से मन में ऊर्जा का संचार होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में सफलता के द्वार खुलते हैं। इस स्तुति से देवी की शक्ति, करुणा और साहस का गहन वर्णन है। यह स्तुति भक्त को याद दिलाती है कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, देवी का स्मरण करने से साहस और समाधान मिलते हैं।
कालिका स्तुति का परिचय – “अयि गिरि नन्दिनी”- महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का प्रारंभिक श्लोक है। यह स्तोत्र देवी के विभिन्न रूपों का स्मरण कर उनकी शक्ति, सौंदर्य, करुणा और वीरता का गुणगान करता है। यह केवल धार्मिक पाठ नहीं बल्कि एक अद्भुत काव्य रचना भी है। इस स्तुति में मां काली को महिषासुरमर्दिनी यानी महिषासुर का वध करने वाली के रूप में पूजा गया है। श्लोकों में देवी के शौर्य, दैत्य दलन की शक्ति और भक्तों के भय हरने की क्षमता का वर्णन है।
महा कवि कालीदास रचित – कालिका स्तुति (पाठ)
अयि गिरि नन्दिनी नन्दिती मेदिनि,विश्व विनोदिनी नन्दिनुते।गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी,विष्णु विलासिनीजिष्णुनुते।।
भगवति हे शितिकण्ठ कुटुम्बिनी,भूरि कुटुम्बिनी भूत कृते।जय जय हे महिषासुर मर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
अयि जगदम्ब कदम्ब वनप्रिय,वासिनी वासिनी वासरते।
शिखर शिरोमणी तुंग हिमालय,श्रृंगनिजालय मध्यगते।।
मधुमधुरे मधुरे मधुरे,मधुकैटभ भंजनि रासरते।जय जय हे महिषासुर मर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
सुर वर वर्षिणी दुर्धरधर्षिणी,दुर्मुखमर्षिणी घोषरते।
दनुजन रोषिणी दुर्मदशोषिणी,भवभयमोचिनी सिन्धुसुते।।
त्रिभुवन पोषिणी शंकर तोषिणी,किल्विषमोचिणी हर्षरते।जय जय हे महिषासुर मर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड,वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते।
रिपुगजदण्डविदारण खण्ड पराक्रम,चण्ड निपाति मुण्ड मठाधिपते।।जय जय हे महिषासुरमर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
अयि सुमन: सुमन: सुमन:,सुमन: सुमनोरम कान्तियुते।
श्रुति रजनी रजनी रजनी,रजनी रजनीकर चारुयुते।।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर, भ्रमराधिपते।जय जय हे महिषासुरमर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
सुरललना प्रतिथे वितथे,वितथेनियमोत्तर नृत्यरते।
धुधुकुट धुंगड़ धुंगड़दायक,दानकूतूहल गानरते।।
धुंकट धुंकट धिद्धिमितिध्वनि,धीर मृदंग निनादरते।जय जय हे महिषासुरमर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
जय जय जाप्यजये जयशब्द,परस्तुति तत्पर विश्वनुते।
झिणिझिणिझिणिझिणिझिंकृत नूपुर,झिंजिंत मोहित भूतरते।।
धुनटित नटार्द्धनटी नट नायक,नायक नाटितनुपुरुते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
महित महाहवमल्लिम तल्लिम,दल्लित वल्लज भल्लरते।
विरचित पल्लिक पुल्लिक मल्लिक,झल्लिकमल्लिक वर्गयुते।।
कृत कृत कुल्ल समुल्लस तारण,तल्लिज वल्लज साललते।जय जय हे महिषासुरमर्दिनी,रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।
स्तुति के पश्चात यह श्लोक अवश्य पढ़ें
यामाता मधुकैटभ प्रमथिनी या महिषोन्मलूनी।
या धूम्रेक्षण चण्डमुण्ड मथिनी या रक्तबीजाशनी।।
शक्ति: शुम्भ निशुम्भ दैत्य दलिनी या सिद्धि लक्ष्मी परा।
सा चण्डी नवकोटि शक्ति सहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
।।इति श्रीकालिदास विरंचित् कालिक स्तुति।।

इन श्लोकों में देवी की शक्ति, करुणा और साहस का गहन वर्णन है। यह स्तुति भक्त को याद दिलाती है कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, देवी का स्मरण करने से साहस और समाधान मिलते हैं।
कालिका स्तुति के लाभ
साहस और आत्मबल में वृद्धि – यह स्तुति भय, निराशा और आलस्य को दूर करती है।
नकारात्मकता का नाश – घर और मन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
सफलता के मार्ग खुलना – नई अवसरों और प्रगति के रास्ते बनते हैं।
आध्यात्मिक जागृति – मन में भक्ति, श्रद्धा और आत्मिक शांति बढ़ती है।
रोग-शोक से मुक्ति – नियमित पाठ से मानसिक संतुलन और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
पाठ की विधि – स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें,लाल कपड़े पर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें उस के सामने दीपक जलाएं।
इसके बाद लाल पुष्प, अक्षत, फल और प्रसाद अर्पित करें,एकाग्र होकर स्तुति का पाठ करें, यदि संभव हो तो तंत्रोक्त स्वर में गाएं।
विशेष – “अयि गिरि नन्दिनी” केवल एक प्रार्थना नहीं है, यह एक शक्ति-साधना है। इसके पाठ से मनुष्य अपने भीतर छिपी ऊर्जा को जाग्रत कर सकता है। यह स्तुति हमें सिखाती है कि धर्म की रक्षा के लिए साहस आवश्यक है और देवी हमारी रक्षक हैं। यदि आप अपने जीवन में सकारात्मकता, साहस और सफलता चाहते हैं, तो इस स्तुति का नियमित पाठ अवश्य करें।
