Shantanu Deshpande Viral Post : भारत में 99% लोग नौकरी से खुश नहीं, देशपांडे के पोस्ट पर बवाल

Shantanu Deshpande Viral Post : हाल ही में बॉम्बे शेविंग कंपनी (Bombay Shaving Company) के CEO शांतनु देशपांडे का एक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, जिसमें उन्होंने भारत में नौकरी के प्रति लोगों की असंतुष्टि और कार्य जीवन में हो रहे बदलावों के बारे में महत्वपूर्ण विचार साझा किए हैं। उनके इस पोस्ट ने एक गंभीर चर्चा को जन्म दिया है और बहुत से लोग इसपर अपनी राय रख रहे हैं। शांतनु देशपांडे का कहना है कि भारत में 99% लोग अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं, और यह एक गहरी समस्या है जो समाज के विकास और खुशहाली के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है। आइए जानते हैं उनके विचारों का सार और उनके पीछे छुपे कारणों को:

देश में लोग नौकरी से असंतुष्टि

शांतनु देशपांडे के अनुसार, अधिकांश भारतीय कर्मचारी अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं हैं। वे महसूस करते हैं कि उनका काम और योगदान किसी बड़े उद्देश्य से जुड़ा हुआ नहीं है। यह असंतोष मुख्यतः कार्यस्थल पर तनाव, रचनात्मकता की कमी, और व्यक्तिगत विकास के अवसरों के अभाव से उत्पन्न होता है। अधिकांश लोग इस बात को महसूस करते हैं कि वे अपने कार्यों में खुद को व्यक्त करने का अवसर नहीं पा रहे हैं और उनके लिए काम सिर्फ एक पैसे का स्रोत बनकर रह जाता है, न कि एक आत्मसंतोषजनक अनुभव।

कोरोना महामारी ने नौकरी को किया प्रभावित

कोरोना महामारी ने कार्य जीवन में काफी बदलाव किए हैं। लॉकडाउन के दौरान, जब लोग घर से काम कर रहे थे, तो वे अपनी कार्यशैली और कार्यस्थल के प्रति अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने लगे। बहुत से लोग यह महसूस करने लगे कि वे शारीरिक रूप से कार्यालय में न जाकर भी प्रभावी रूप से काम कर सकते हैं। हालांकि, महामारी के बाद जब अधिकांश कंपनियों ने कर्मचारियों को फिर से ऑफिस आने को कहा, तो कई लोग इसके खिलाफ हो गए। यह बदलाव नौकरी से असंतुष्टि का एक प्रमुख कारण बन गया है, क्योंकि लोग अब अपनी व्यक्तिगत और कार्य जीवन के बीच बेहतर संतुलन की तलाश में हैं।

मशीनी रूप से काम नहीं करना चाहते लोग

आजकल के युवा कर्मचारी अपने व्यक्तिगत उद्देश्य और नौकरी के बीच तालमेल चाहते हैं। वे अब केवल वेतन और पदोन्नति के बजाय अपने काम में सच्चे उद्देश्य की तलाश करते हैं। वे चाहते हैं कि उनका काम समाज में बदलाव लाने में योगदान दे, न कि सिर्फ मशीनी रूप से काम करते जाएं। कंपनियां जो अपने कर्मचारियों को व्यक्तिगत विकास और सामाजिक प्रभाव के अवसर प्रदान करती हैं, वे ज्यादा आकर्षक बनती हैं। ऐसे कार्यस्थल की संस्कृति, जो सहयोगात्मक, समावेशी, और कर्मचारी की भलाई पर केंद्रित होती है, उसे लोग ज्यादा पसंद करते हैं।

HR प्रैक्टिसेज में आया बड़ा बदलाव

भारत में पहले की तुलना में अब HR प्रैक्टिसेज में भी बड़ा बदलाव आया है। कर्मचारी अब पुराने प्रकार की ‘9-5’ नौकरी की बजाय लचीलापन, कार्य जीवन संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य की चिंता करते हैं। इसके अलावा, वे अपनी नौकरी में चुनौतियां और विकास के अवसर भी चाहते हैं। शांतनु देशपांडे का मानना है कि यह बदलाव मानव संसाधन प्रबंधन की रणनीतियों को प्रभावित कर रहा है, और कंपनियां जो इन नई जरूरतों का जवाब देती हैं, वे कर्मचारियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखा पाती हैं।

नौकरी छोड़ दूसरे विकल तलाश रहें लोग

आजकल के युवा डिजिटल और वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण ज्यादा स्वतंत्र और व्यवसायिक अवसरों के प्रति जागरूक हैं। वे आत्मनिर्भर होने के लिए विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन करते हैं, जैसे कि स्टार्टअप्स, फ्रीलांसिंग, या ऑनलाइन व्यवसाय। इस कारण, पारंपरिक नौकरियों के प्रति असंतोष और इनोवेटिव काम की तलाश बढ़ी है। शांतनु देशपांडे का कहना है कि यदि कंपनियां अपनी कार्य संस्कृति में परिवर्तन नहीं करतीं, तो वे अपने सबसे प्रतिभाशाली कर्मचारियों को खो सकती हैं, जो अन्य अवसरों की तलाश में हैं।

शांतनु देशपांडे का यह भी मानना है कि संस्थागत नेतृत्व का बड़ा योगदान है। यदि नेतृत्व प्रेरक, स्पष्ट और कर्मचारियों के कल्याण के प्रति समर्पित नहीं होता, तो कर्मचारियों की प्रेरणा और मनोबल में गिरावट आ सकती है। अच्छा नेतृत्व कर्मचारी के व्यक्तिगत और पेशेवर विकास को प्राथमिकता देता है, जिससे वे अपनी नौकरी में संतुष्ट रहते हैं और बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

कर्मचारियों की मानसिकता में आया बदलाव

शांतनु देशपांडे का यह पोस्ट केवल बॉम्बे शेविंग कंपनी या किसी एक उद्योग की स्थिति पर आधारित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारत में कार्यस्थल पर हो रहे बदलावों और कर्मचारियों की बदलती प्राथमिकताओं को दर्शाता है। भारत में नौकरी की असंतुष्टि का बढ़ता प्रतिशत एक संकेत है कि कार्य जीवन में अब केवल वेतन और पदोन्नति से अधिक कुछ चाहिए। कर्मचारियों की मानसिकता में बदलाव आ चुका है, और अब वे अपनी नौकरी में उद्देश्य, रचनात्मकता, और संतुलन की तलाश करते हैं। कंपनियों के लिए यह एक चुनौती हो सकती है, लेकिन यह उनके लिए एक अवसर भी है, यदि वे अपने कार्यस्थल को अधिक समावेशी, लचीला और कर्मचारी के हितों के अनुकूल बना सकें।

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