बघेली के पुरखे ‘शंभू काकू’: भाग एक

बघेली बोली के पुरोधा शंभू काकू का पूरा नाम शम्भूप्रसाद द्विवेदी था जिन्हें विंध्य ले लोग प्रायः काकू के नाम से जानते थे। काकू का जन्म 10 नवम्बर 1938 को मध्य प्रदेश के रीवा में खैरी नामक गाँव में एक कृषक परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम पंडित रामप्रताप द्विवेदी एवं माता का नाम श्रीमती गुजरतिया देवी था. जो देवगांव के जमीदार शिवनारायण की पुत्री थी. इनके पिता शिवभक्त एवं संस्कृति के विद्वान तथा कवि थे।इनकी माता जी भी धर्मनिष्ठ एवं शिवभक्त थी. इसीलिए इन्हें बचपन मे शम्भू कहकर बुलाते थे जो बाद में शम्भूप्रसाद के नाम से प्रसिद्ध हुए।

माता पिता की शिवभक्ति एवं धर्माचरण का अमिट प्रभाव बालक शम्भू पर पड़ा जो अनवरत जारी रहा।

शम्भू प्रसाद तीन भाई तथा दो बहन थे. शम्भू भाइयों में सबसे छोटे थे. भाइयों में रामसजीवन द्विवेदी, सियावर शरण द्विवेदी, तथा बहनों में शिववती एवं देववती थीं।

शम्भू प्रसाद की गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही थी परन्तु कुछ समय बाद कठिनाइयों का सामना करना पड़ा इन्ही परेशानियों के चलते पिता राम प्रताप अपना मानसिक संतुलन खो बैठे सन 1961 में विक्षिप्त होकर रीवा की सड़कों पर घूम-घूम कर श्लोक, कविताएं तथा कहानियां सुनाया करते थे और इसी पागलपन की स्थिति में शेषमणि शर्मा की 1971 में मृत्यु हो गयी तथा 1972 में माता गुजरतिया जी का भी देहांत हो गया।

शम्भू प्रसाद बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा छुट-पुट कविताएं लिखा करते जिसकी त्रुटियों को पिता जी सुधार दिया करते थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा प्राथमिक पाठशाला सिकरम खाना रीवा में पूर्ण हुई बाद में मार्तंड हाई स्कूल से सन 1952 में हिंदी मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण किए। 1953 में आपने अंग्रेजी मिडिल परीक्षा भी उत्तीर्ण हुए. 1963 में सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोंत्तर उत्तीर्ण करके प्रयाग विश्वविद्यालय से साहित्यरत्न की उपाधि प्राप्त किया। 

यह कहना समीचीन होगा कि वे विंध्य के कबीर थे,हास्य का पुट लिए उनकी रचनाए वाचकशैली का अनूठा उदाहरण है। 

शब्द साँची ने शंभू काकू की धूमिल हो चुकी यादों को ताजा करने का छोटा सा प्रयास किया है. उम्मीद है बघेली के पुरोधा को लेकर हुई परिचर्चा आपको आनंदित करेगी.

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