आत्म मंथन: दुख की बदरी

Aatm Manthan

आत्म मंथन : रात गहरी है जब तक खुद को शांत रखें और खुद को देखें , खुद को बदलें दुनियां को नहीं। ख़ुद को देखने का मतलब है अपनी ग़लतियों को समझें हमने ऐसा क्या किया है कि हम दुखी हैं , दुनिया भी हमें दुखी कर रही है तो आख़िर हमारी किस कमज़ोरी का फायदा उठा रही है, ये जानने की कोशिश करें ,खुद से सवाल करें और खुद ही जवाब ढूंढें।अपनी कसौटी खुद बनाएं और अगर आप उसमें खरे उतरते हैं तो दुनियां की परवाह न करें क्योंकि दुनियां की ताक़त कुछ और है और आपकी ताक़त कुछ और ,पर वो ताक़त क्या है ये आप ही जान सकते हैं।

ग़लतियों पर पर्दा डालने की ताक़त सही या ग़लत:-

दुनिया में ताक़त और रसूख़ हासिल कर लेना ही सबकुछ नहीं होता ,या ये सबकी ख्वाहिश नहीं हो सकती ,क्योंकि इससे आप अपनी ग़लतियां, दुनिया से छुपा सकते हैं ,खुद से नहीं ,और न उनपर पर्दा डालकर ख़ुद को संवार सकते हैं न ख़ुश रह सकते हैं,अपनी भूल स्वीकारने से हम आगे दोबारा वो भूल नहीं दोहराते ,अनुभव का पिटारा हमारे हांथ लगता है,आगे के लिए मज़बूती मिलती है पर फिर भी ये हमारी सोच पर ही निर्भर करता है कि हम क्या चाहते हैं ,दिन ब दिन बेहतर होती ज़िंदगी या दलदल में धंसती ज़िंदगी क्योंकि आप वो हासिल करके ही खुश हो सकते हैं जो आप हासिल करना चाहते हैं और आपका या हमारा नज़रिया कोई बदल नहीं सकता सिवाए हमारे ,ये नज़रिया ही हमें कमज़ोर या फिर मज़बूत बनाता है, हमारी मुश्किलें बढ़ाता या फिर घटाता है ।

हमारी ही चाहतों पे टिका है हमारा कल :-

अगर हम किसी समस्या का हल ढूंढेंगे तभी हल मिलेगा, नहीं ढूंढेंगे तो नहीं मिलेगा और ये हमारे दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है कि हम किसी मुश्किल को हल होने लायक समझते भी हैं या नहीं, उसका डटकर मुक़ाबला करते हैं या उसके आगे घुटने टेक देते हैं।
मुश्किल की घड़ी, हमारा वो इम्तहान है ,जो हमें बना भी सकता है और मिटा भी सकता है इसलिए इस आज़माइश में किसी भी हाल में अपनी तरफदारी न करें अगर हम ग़लत हैं तो मानें, शर्मिंदा भी हों और सही हैं तो किसी को अपनी बेइज़्ज़ती न करने दें ताकि आगे भी उस सही रास्ते पर आप यक़ीन के साथ चल सकें ,इससे पहले कि कोई और हमें जज करे हमें हमारी ग़लतियां गिनाए हमें खुद उसका इल्म होना चाहिए ।
सोचिएगा ज़रूर इस बारे में फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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