Verma Malik Death Anniversary | अनमोल शब्दों का चयन और वर्मा मलिक के गीतों का चलन

Verma Malik Death Anniversary : न्याज़िया बेग़म: वो बॉलीवुड के ऐसे गीतकार थे जिनके मन में देश भक्ति की जोत ऐसी जगी कि आज़ादी की अलख लिए वो स्वतंत्रता सेनानी बन गए और दिल में उठते जज़्बातों के सैलाब को जब कागज़ पे बिखेरते तो कभी देश के लिए लिखते तो कभी भक्ति रस में डूब कर मानव को सत मार्ग पे चलने की राक दिखाते अपने भजनों के ज़रिए, यहीं नहीं हिंदी और पंजाबी फिल्मों के लिए अपने लिखे बोलों को गा के भी देखा, बेशक़ आप हमारा इशारा समझ गए होंगे ये थे वर्मा मलिक।

जन्म और परिवार

वर्मा मलिक का जन्म 13 अप्रैल 1925 को ब्रिटिश भारत के पंजाब के फ़िरोज़पुर जिले में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था, और उनका असली नाम था, बरकतराय मलिक लेकिन जब फिल्म जगत से नाता जुड़ा तो संगीत निर्देशक हंसराज बहल की सलाह पर आपने अपना नाम ,वर्मा मलिक कर लिया, 1953 में उन्होंने कमला जी से विवाह किया था उनके बेटे राजेश मलिक भी बतौर गीतकार फिल्मों से जुड़े हैं ।

पंजाबी फिल्मों से गीत लेखन की शुरुआत


वर्मा जी ने अपने करियर की शुरुआत सन 1949 में आई फिल्म चकोरी में एक गीत लिख के की थी, इसके बाद आपके शब्द संयोजन में फिल्में आईं 1950 की पंजाबी फिल्म पोस्ती, जग्गू, श्री नगद नारायण, मिर्जा़ साहिबान, सीआईडी ​​909, तकदीर और भांगड़ा, जिनमें आपने गीत लिखे। इसके बाद कुछ सालों के लिए आपने फिल्मों से दूरी बना ली और फिर 1967 की फिल्म दिल और मोहब्बत से वापसी की।

हिंदी फिल्मों के गीत


हिंदी फिल्मों में उनको बड़ा ब्रेक मनोज कुमार की 1970 की फिल्म यादगार में मिला। एक तारा बोले गीत लिखने के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। इसी साल फिल्म पहचान में उन्हें बहुत पहचान मिली और वे बॉलीवुड के लिए एक प्रमुख गीतकार बन गए। अपने फिल्मी सफर में उन्होंने करीब 500 फिल्मी गीत लिखे। 1974 की फ़िल्म रोटी कपड़ा और मकान के गाने उनके हिट गानों में से एक हैं, इस फिल्म का गाना बाकी कुछ बचा तो महँगाई मार गई.., बिनाका गीत माला की 1975 की वार्षिक रैंकिंग में यह गाना उस वर्ष नंबर 1 पर रहा। कार्यक्रम में गीत नं. 2 , उस साल इसी फिल्म का गाना ‘हाय है ये मजबूरी’ था, जिन्हें उन्होंने लिखा था।

यादगार गीत और पुरस्कार


उनके लिखे गानों से सजी कुछ खास फिल्मों को याद करें तो हमें याद आ रही हैं- नागिन, आदमी सड़क का,जानी दुश्मन, दो उस्ताद, संजोग, हुकूमत और वारिस। 1971 में आपने फिल्म पहचान के लिए और फिर 1973 में बे-ईमान फ़िल्म के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता।

मृत्यु


15 मार्च 2009 को वो इस दुनियाएं फानी से कूच कर गए, फ़िल्म संगीत निर्देशक प्यारेलाल के वो क़रीबी दोस्त थे, प्यारेलाल ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उन्हें अपने काम पर बहुत गर्व था और वो पारंपरिक पंजाबी लोकगीतों को फ़िल्मी गीतों में बहुत अच्छी तरह से मिला देते थे जिनसे वो और लोकप्रिय हो जाते। अपनी मिट्टी की खुशबू से लबरेज़ ये गीत वर्मा मालिक जी को हमेशा हमारे दिलों में जावेदा रखेंगे।

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