लोकगीत। सावन महीना का नाम आते ही यू तो मन और ह्रदय पुलकित हो जाता है। हो भी क्यू न। यह महीना प्रकृतिक रूप से काफी खुशहाल जो होता है। आकाश में काली घटाएं और धरती पर हरियाली का अद्रभुद नजरा, मानों प्रकृति कुछ बयां कर रही है। यही वजह है कि इस संयोग का लोग तरह-तरह से आंनद उठाते है। विंध्य क्षेत्र यानि की बघेलखंड में भी सावन को उत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है। सावन का झूला और उसमें सवार महिलाएं एवं युवतिया कजरी, झूला गीत एवं सावन के गीतों में झूमती नजर आती रही, हांलाकि अब ऐसे उत्सव चंन्द्र लोगो के बीच इवेंट के रूप में सिमटते जा रहे है। उसकी एक वजह व्यस्त जीवन लाइफ स्टाइल भी है। बघेलखंड में गाए जाने वाले कई प्रसिद्ध लोकगीत हैं, जिनमें कजरी, झूला गीत और बघेली सावन गीत भी शामिल है। लोक गीतों में प्रेम-माधुर्य, विरह पर आधारित कजरी का प्रयोग सावन में घिरने वाली काली घटाओं के रूप में किया गया है।
बघेलखंड में कजरी
यह एक लोकप्रिय लोकगीत है जो सावन के महीने में गाया जाता है। कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन तथा राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। कजरी की प्रकृति क्षुद्र है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। आज कजरी के वर्ण्य-विषय काफ़ी विस्तृत हैं, परन्तु कजरी गायन का प्रारम्भ देवी गीत से ही होता है। कुछ लोगों का मानना है कि कान्तित के राजा की लड़की का नाम कजरी था। वो अपने पति से बेहद प्यार करती थी। जिसे उस समय उससे अलग कर दिया गया था। उनकी याद में जो वो प्यार के गीत गाती थी। उसे मिर्जापुर के लोग कजरी के नाम से याद करते हैं। वे उन्हीं की याद में कजरी महोत्सव मनाते हैं।
झूला गीत
सावन के महीने में पेड़ों पर झूले पड़ते हैं और उन पर झूलते हुए झूला गीत गाने की परंपरा है। यह एक पारंपरिक उत्सव है जो पति-पत्नी के प्रेम और सामंजस्य का प्रतीक माना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने भी माता पार्वती के लिए झूला लगाया था, इसलिए सावन में झूला झूलना शुभ माना जाता है। झूला झूलते समय पारंपरिक गीत, जैसे सावन का महीना, पवन करे शोर या झूला झूले राधा, नंद किशोर आदि गाए जाते हैं। सावन में झूला झूलना खुशी और उल्लास का प्रतीक है, जो वातावरण में सकारात्मकता और खुशी लाता है।
बघेली सावन गीत
बघेलखंड क्षेत्र का विशिष्ट सावन गीत है, जिसमें सावन के महीने के प्रेम, उत्साह और प्रकृति का वर्णन होता है। ये गीत बघेलखंड की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और सावन के महीने में खुशी और उत्साह का माहौल बनाते हैं। बघेली भाषा में गाए जाने वाले सावन गीतों की सुमधुरता से हर कोई मंत्र मूग्ध हो जाता है। सावन में हरियाली तीज का त्यौहार मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनकर, मेहंदी लगाकर और झूला झूलकर खुशियां मनाती हैं। इन गीतों में शिव-पार्वती पर आधारित एवं विवाह के गीतों को बघेली लोकगीत के माध्यम से महिलाएं गाती है। बघेलखंड क्षेत्र में सावन के महीने में कुछ प्रमुख रूप से बसदेवा गायन, बिरहा गायन, बिदेसिया गायन, और फाग गायन. इसके अतिरिक्त, सावन के झूलों पर आधारित गीत, जैसे झूला पड़ा कदम की डारी भी लोकप्रिय हैं।