Site icon SHABD SANCHI

कर्नाटक शैली के शास्त्रीय गायक और किराना घराना के उस्ताद थे रामचंद्र कुंदगोलकर सौंशी

sawai gandharva death anniversary

sawai gandharva death anniversary

sawai gandharva death anniversary: एक ऐसा गायक जिसने भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी को सिखाया और वो खुद उस्ताद अब्दुल करीम खान के पहले और सबसे बड़े शिष्य रहे जी हां ये थे रामचंद्र कुंदगोलकर सौंशी , जिन्हें सवाई गंधर्व और राम-भाऊ के नाम से जाना जाता था जो कर्नाटक शैली के शास्त्रीय गायक और किराना घराना के उस्ताद थे जिन्होंने पूरा जीवन इस शैली के प्रसार में लगाया और अपने शिष्यों के ज़रिए भी इसे लोकप्रिय बनाने के अथक प्रयास करते रहे। देशस्थ ब्राह्मण परिवार में 19 जनवरी 1886 को, वर्तमान कर्नाटक के धारवाड़ से 19 किलोमीटर दूर कुंदगोल में ,पैदा हुए सवाई कुछ दिनों बाद ही रामभाऊ के नाम से जाने , जाने लगे थे । उनके पिता, गणेश सौंशी, एक स्थानीय क्लर्क थे ,पर सवाई का मन पढ़ाई से ज़्यादा कविताओं में लगता था जिसे सुनकर उनके शिक्षक उन्हें आगे बढाते थे पर जल्द ही रामभाऊ के पिता के लिए उन्हें पढ़ाना मुश्किल हो गया और आखिरकार उनकी पढ़ाई छुट गई पर पिता जी ने उनकी कविताओं की मधुरता को याद रखते हुए , उनके सुरों को और तराशने के बारे में सोचा
और उन्हें बलवंतराव कोल्हटकर को सौंप दिया जिनसे हमारे सवाई यानी तब के रामभाऊ जी ने 75 ध्रुपद रचनाएँ, 25 तराना रचनाएँ और क़रीब सौ अन्य रचनाएँ सीखीं ,कुछ तालों में भी महारत हासिल किया पर ​​1898 में कोल्हटकर की मृत्यु हो गई, जिससे रामभाऊ की शिक्षा अधूरी रह गई।
लेकिन अब तक सवाई गंधर्व हुबली में होने वाले दैनिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुतियां देने लगे थे, यह वह समय था जब किराना घराने के संस्थापक उस्ताद अब्दुल करीम खान कर्नाटक के दौरे पर थे । वे अक्सर नादिगर परिवार के साथ कई दिनों तक रहते थे। ऐसी ही एक यात्रा पर, सवाई अब्दुल करीम खान के इर्द-गिर्द मंडराते हुए, उस्ताद की भैरवी रचना ,” जमुना के तीर “गुनगुना रहे थे जो अब्दुल करीम खान के कानों में पड़ी, और उन्होंने पूछा, “कौन है ये लड़का? जिसका गला इतना अच्छा है” बस फिर क्या था रंगनागौड़ा नादिगर ने इस अवसर का फायदा उठाते हुए उन्हें बताया कि “उस्ताद जी, वो हमारे क्लर्क का बेटा है और आपसे संगीत भी सीखना चाहता है ये सुनकर अब्दुल करीम खान ने कहा ठीक है मैं उसे कम से कम 8 साल तक उन्हें सिखाऊंगा।
पर जल्दी ही सवाई अपने शिक्षक की इच्छा के खिलाफ़ नाटक कंपनी में शामिल हो गए और मराठी रंगमंच में गायक के रूप में लोकप्रिय हो गए यहां उन्हें फिर से अभिनय ने आकर्षित किया और महिला भूमिकाएँ निभाने के लिए प्रशंसा मिलने लगी और तब ही रामभाउ जी को मराठी रंगमंच के अग्रणी, भूमिका निभाने वाले बाल गंधर्व के नाम पर, सवाई गंधर्व की उपाधि मिली और वो कुछ वक्त बाद वो महिला भूमिकाएँ निभाने के लिए प्रसिद्ध हो गए पर उनका ये पसंदीदा दौर ज़्यादा लंबा न चल सका,
1942 में, 56 वर्ष की आयु में ही , वो लकवा का शिकार हो गए और उनका संगीत कार्यक्रम कैरियर अचानक खत्म हो गया और इसी बीमारी के चलते 12 सितंबर 1952 को वो इस जहां को अलविदा कह गए लेकिन अपनी आखरी सांस तक इस कला को सिखाते रहे।
उनके शिष्यों में गंगूबाई हंगल , भीमसेन जोशी , बसवराज राजगुरु और फिरोज दस्तूर जैसे गायक शामिल रहे और पंडित भीमसेन जोशी ने सवाई गंधर्व की याद में ही पुणे में वार्षिक सवाई गंधर्व संगीत समारोह की शुरुआत की ये उत्सव पहले दो दशकों तक तो मामूली पैमाने पर आयोजित किया गया था, लेकिन 1970 और 1980 के दशक में लोकप्रिय हो गया।

Exit mobile version