Savitribai Phule Jayanti : एक समय था जब लड़कियों को समाज में शिक्षा का अधिकार नहीं था। किताबों से प्रेम करना भी महिलाओं के लिए किसी अपराध से कम नहीं माना जाता था। कुछ ऐसे ही समाजिक दंश को भोगने के बाद महाराष्ट्र की सावित्रीबाई फुले ने समाज में लड़कियोें को शिक्षा दिलाने का न सिर्फ बीणा उठाया बल्कि भारत की पहली महिला अध्यापिक भी बनी। उन्होेंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए एक विद्यालय भी खोला जहां लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य शुरू किया। इसके अलावा बेसहारा महिलाओं के आश्रय स्थल की भी स्थापना की। लेकिन समाज में लड़कियों के लिए शिक्षा की लड़ाई लड़ने वाली सावित्रीबाई फुले का इतिहास दब कर रह गया। आज सावित्रीबाई फुले की जयंती है। इस मौके पर पीएम मोदी ने देश की पहली महिला शिक्षक को याद कर नमन किया।
सावित्रीबाई फुले का हुआ था बाल-विवाह | Savitribai Phule Jayanti
भारत की पहली महिला अध्यापिका सावित्रीबाई फुले एक छोटे गांव से आती थी। उनका जन्म महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था। वह बचपन से ही जिज्ञासु और महत्वाकांक्षी थी। उस समय समाज में लड़कियों को पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं होता था। कम उम्र में ही लड़कियोें का विवाह कर दिया जाता था। सावित्रीबाई फुले की शादी भी महज नौ साल में ही हो गई थी। साल 1840 में सावित्रीबाई फुले का विवाह ज्योतिराव फुले के साथ हुआ था। शादी के बाद वह पति के साथ पुणे चली गई थी।
सावित्रीबाई फुले बनी देश की पहली शिक्षिका
महाराष्ट्र में सावित्रीबाई फुले ने समाज में लड़कियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। वह साल 1848 में देश की पहली महिला अध्यापिका बनी थी। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर एक विद्यालय भी खोला था, जिसमें लड़कियोें को पढ़ाया जाता था। सावित्रीबाई फुले को भारतीय नारी आंदोलन की जननी के रूप में जाना जाता है। यहीं नहीं उनके जीवन को भारत में स्त्रियों के अधिकारों का प्रकाश स्तंभ माना जाता है।
सावित्रीबाई फुले को शिक्षा के मार्ग में मिलें काटें
सावित्रीबाई फुले की पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत इतनी आसान नहीं थी। उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें शिक्षा के लिए समाज के लोगों से बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी। जब वह पढ़ाई के लिए विद्यालय जाती थीं तो लोग उन्हें गालियां देते थे। घर से जब वह स्कूल के लिए निकलती थीं तो लोग उन पर गोबर और कचरा फेक देते थे। जिससे वह स्कूल जाना बंद कर दें। लेकिन वह कमजोर नहीं पड़ी। सावित्रीबाई फुले लोगों को जवाब देने के लिए अपने साथ रोज एक एक्स्ट्रा साड़ी लेकर जाती थी और लोगों के फेंके गए कचरे के बाद साड़ी बदल लेती थीं।
सावित्रीबाई फुले ने गांव में खुदवाया था कुआं | Savitribai Phule Education
सावित्रीबाई फुले ने दलित वर्ग के लिए भी काफी संघर्ष किया। 1868 में जब गांव में सार्वजनिक कुएं से दलितों के लिए पानी पीने की मनाही थी तो उन्होंने घर के पीछे ही कुआं खुदवा दिया था। उनके इस कदम से लोगों में आक्रोश उत्पन्न हो गया था। जिससे फुले को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। साल 1897 में जब पूरे महाराष्ट्र में मल्टी प्लैग फैल गया था। तब सावित्रीबाई फुले ने खुद जाकर लोगों की सेवा करने लगी। उन्होंने 10 वर्षीय प्लेग से पीड़ित बच्चे को गोद में लेकर अस्पताल पहुंचाया था जिससे वह प्लेग से पीड़ित हो गई थी। 10 मार्च 1897 में उनका निधन हो गया था।
पीएम मोदी ने किया सावित्रिबाई को नमन
देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की जयंती पर उन्हें याद करते हुए नमन किया। पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, “सावित्रीबाई फुले को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि। वे महिला सशक्तिकरण की प्रेरणास्रोत तथा शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अग्रणी हैं। उनके प्रयास हमें प्रेरित करते रहते हैं, क्योंकि हम लोगों के लिए बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं।”