सतना। एमपी के सतना जिला निवासी पर्वतारोही रत्नेश पाण्डेय ने लद्दाख क्षेत्र में मात्र तीन दिनों में 20,000 फीट से ऊँची चार पर्वत चोटियों को चढ़ने में सफलता पाई है। उन्होंने हर चोटी पर भारत और सतना का ध्वज गर्व से फहराते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।
इन चोटियों पर लगाया ध्वज
पर्वतारोही रत्नेश पाण्डेय ने जिन पर्वतों को चढ़ने में सफल रहे है। उनमें ग्यामा कांगरी ईस्ट (6,108 मी.), कीगर री (6,100 मी.), यालुंग नोंग 1 (6,050 मी.) और यालुंग नोंग 2 (6,080 मी.) हैं।
चुनौती पूर्ण सफर
अत्यधिक बारिश और भारी बर्फ़बारी जैसी कठोर परिस्थितियों में टीम के लिए यह पर्वतारोहण अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। एक भीषण हिम तूफान ने उनके तंबू को तेज़ हवाओं और बर्फबारी के कारण ढहा दिया। ऐसी विकट परिस्थितियों में भी डटे रहने और पुनः आरोहण करने के जज़्बे का श्रेय रत्नेश अपने माउंट एवरेस्ट के अनुभव और अपनी टीम को देते हैं।
संयम के साथ बढ़ती रही टीम
पर्वतारोही रत्नेश पाण्डेय ने स्टेंजिन लापु, दावा शेर्पा और अब्दुल कयूम के अद्भुत सहयोग को इस सफलता का आधार बताया। उन्होंने बताया कि पूरी टीम ने संयम बनाए रखा, जीपीएस की मदद से एक निचले गाँव तक टीम सुरक्षित पहुँची और मौसम साफ़ होने के बाद पुनः चढ़ाई शुरू की। यह अभियान पूरी तरह आत्मनिर्भर अल्पाइन शैली में पूरा किया गया कृ जो दृढ़ता, टीमवर्क और कार्य कौशल को दर्शाता है। रत्नेश के अनुसार, जुलाई महीने में इतनी भारी बारिश और बर्फबारी असामान्य है, जो स्पष्ट रूप से ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक प्रभावों को दर्शाती है। एक हल्के अंदाज़ में उन्होंने कहा, “मंगल या चाँद पर जाकर जीवन ढूँढना तकनीकी उपलब्धि हो सकती है, लेकिन धरती माँ पर रहकर इसे बचाना हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता और नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।”
गर्व, प्रेम और गहरी श्रद्धा के प्रतीक का ध्वज
रत्नेश ने हर चोटी पर भारतीय ध्वज और सतना ध्वज को गर्व, प्रेम और गहरी श्रद्धा के प्रतीक के रूप में फहराया। 20000 फीट से आई लव सतना और जय हिन्द का जयघोष किया। रत्नेश के लिए यह चढ़ाई केवल शिखर तक पहुँचने का अभियान नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य स्थानीय और सामान्य पर्यटन को बढ़ावा देना और लोगों को यह याद दिलाना था कि पर्वत हमें न केवल प्रकृति से बल्कि अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से भी जोड़ते हैं।
विक्रम अवार्ड से सम्मानित है रत्नेश
पर्वतों पर चढ़ने की सफलता मिलने के बाद रत्नेश ने कहा कि पर्वतारोहण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखने के सर्वाेत्तम तरीकों में से एक है। उन्होंने कहा, “एक बार जब आप प्रकृति में होते हैं, तो यह कई तरह से लाभ पहुँचाती है। यह तनाव कम करती है, शांत वातावरण चिंता घटाता है और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी और स्ट्रेस दूर करने का सबसे अच्छा माध्यम प्रकृति है, और जब आप ऊँचे पर्वतों पर चढ़ते हैं, तो सारे विकार स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। ऊँचाई पर चढ़ाई से हृदय और फेफड़ों की क्षमता भी बढ़ती है। आजकल डिजिटल डिटॉक्स बेहद ज़रूरी है और पर्वतारोहण तथा ऊँचाई पर प्रशिक्षण इसके लिए सर्वाेत्तम साधन हैं। गौरतलब है कि सतना, मध्य प्रदेश के निवासी रत्नेश पाण्डेय को राज्य का सर्वाेच्च खेल सम्मान विक्रम पुरस्कार प्रदान किया गया था, जो पहली बार साहसिक खेलों की श्रेणी में दिया गया। वे एक सर्टिफाइड मास्टर इंस्ट्रक्टर और रेस्क्यू एक्सपर्ट भी हैं।