Wrandavan/ sapt divsiy bhatwat ktha – वृंदावन – की पावन भूमि वह दिव्य धरा है, जहां राग और द्वेष का कोई स्थान नहीं- पं. बाला व्यंकटेश शास्त्री ,वृन्दावन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर श्रीधाम वृन्दावन स्थित फोगला आश्रम में सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव का भव्य एवं दिव्य शुभारंभ बुधवार, 13 अगस्त 2025 को हुआ। यह आयोजन 19 अगस्त तक प्रतिदिन भक्तिभाव और आध्यात्मिक वातावरण में सम्पन्न होगा। कथा का आयोजन श्रद्धालुओं के आध्यात्मिक उत्थान, धर्म-जागरण और सामाजिक सद्भाव के उद्देश्य से किया जा रहा है। कथा व्यास पं. बाला व्यंकटेश शास्त्री जी कथा के प्रारंभ में कहा कि वृंदावन की आध्यात्मिक महिमा को रेखांकित करता है।
सौम्य वातावरण मनुष्य के हृदय से अहंकार, ईर्ष्या और वैरभाव को दूर कर, आत्मा को शांति और प्रेम के मार्ग पर अग्रसर करता है
‘राग’ और ‘द्वेष’ मानव जीवन के दो ऐसे भाव हैं जो मोह और वैमनस्य को जन्म देते हैं, जबकि वृंदावन का वातावरण भक्ति, प्रेम और करुणा की शुद्ध तरंगों से अनुप्राणित है। यह वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर रास महोत्सव तक, प्रत्येक कण में दिव्यता का संचार है। यहाँ का सौम्य वातावरण मनुष्य के हृदय से अहंकार, ईर्ष्या और वैरभाव को दूर कर, आत्मा को शांति और प्रेम के मार्ग पर अग्रसर करता है। इसीलिए वृंदावन को राग-द्वेष से रहित, पूर्णतः निर्मल और ईश्वरमय धरा कहा जाता है।कथा का वाचन एवं व्याख्यान सुप्रसिद्ध कथा व्यास पं. बाला व्यंकटेश शास्त्री जी द्वारा किया जा रहा है। अपनी भावपूर्ण वाणी, मधुर शैली और गहन आध्यात्मिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध आचार्य श्री ने प्रथम दिवस की कथा में भक्तों को भागवत महिमा से परिचित कराया।
पाण्डव-चरित्र का संक्षेप तथा महाभारत के पश्चात की घटनाओं का वर्णन
प्रथम दिन के शुभारंभ में मंगलाचरण और आचार्य वंदना के साथ भगवान, गुरुजन एवं श्रीमद् भागवत ग्रंथ की वंदना की गई। इसके पश्चात आचार्य परिचय और कथा के उद्देश्यों का विस्तार से वर्णन हुआ। पं. शास्त्री जी ने भागवत महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए इसे कलियुग में मोक्षदायक अमृत स्वरूप बताया तथा इसके श्रवण के फल की विस्तृत व्याख्या की। कथा में आगे सूतजी और शौनकादि ऋषियों का नैमिषारण्य प्रसंग, मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य और साधन पर आधारित परम प्रश्न, परीक्षित जन्म एवं पाण्डव-चरित्र का संक्षेप तथा महाभारत के पश्चात की घटनाओं का वर्णन किया गया। कथा के अंत में परीक्षित पर शृंगी ऋषिपुत्र का श्राप प्रसंग को अत्यंत मार्मिक एवं भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया गया, जिससे उपस्थित श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे।
श्रीमती अवधेश शुक्ल, डॉ. संध्या शुक्ला, श्रीमती साधना – डॉ. देवेश शुक्ल, डॉ. वंदना – प्रो. राजनिवास शर्मा, डॉ. गायत्री – प्रो. अखिलेश शुक्ल, डॉ. आरती – इंजी. संतोष तिवारी ने सभी श्रद्धालुओं के प्रति आभार व्यक्त किया ।