Santan Saptami 2025-दुबड़ी माता की कथा,संतान सप्तमी का चमत्कारी व्रत और उसका रहस्य-भारतीय संस्कृति में संतान कीसुख – समृद्धि और उसकी रक्षा हेतु कई व्रत-उपवासों का विधान है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है संतान सप्तमी का व्रत , जिसे कई स्थानों पर दुबड़ी साते भी कहा जाता है। यह व्रत मुख्यतः माताएं अपने संतान की दीर्घायु और सुखद भविष्य के लिए करती हैं। इस व्रत की जड़ें एक प्राचीन लोककथा में छिपी हैं, जिसमें दुबड़ी माता की चमत्कारी शक्ति और एक बुआ की निष्ठा से जुड़े प्रसंग हैं। आइए जानते हैं इस अद्भुत कथा और व्रत की महिमा को विस्तार से।
कथा की शुरुआत – बुढ़िया जो स्वयं दुबड़ी माता थी
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी, जो वास्तव में कोई साधारण स्त्री नहीं, बल्कि दुबड़ी माता के रूप में पूजनीय थी।गांव वालों को यह ज्ञात नहीं था कि वह बुढ़िया ही एक दिव्य शक्ति की स्वरूपा है,लेकिन एक घटना से गांव वालों को ऐसा सबक मिला की न सिर्फ उस बूढी मां को मन – सम्मान मिला बल्कि उसे सब देवी मानकर पूजने लगे और तभी से महिलाऐं संतान सप्तमी का व्रत भी करने लगीं।
भतीजी का विवाह और संकट की आहट
बुढ़िया की एक भतीजी का विवाह निश्चित हुआ था। लेकिन बुढ़िया को पूर्वाभास हो गया कि बारात के रास्ते में एक नाग उसके भतीजी के दूल्हे को डस लेगा,जैसे पहले उसके छह भतीजों के साथ हुआ था। इस संकट से बचने के लिए उसने अपनी भतीजी से विवाह सम्बन्धी कुछ विशेष निर्देश दिए ,जैसे

दुबड़ी माता के निर्देश – संकट से मुक्ति का रहस्य बुढ़िया ने भतीजी को जो उपाय बताए
बारात दरवाज़े से नहीं बल्कि दीवार फोड़कर निकालनी है।
रास्ते में किसी पेड़ के नीचे बारात नहीं रोकनी है।
ससुराल पहुंचने पर भी प्रवेश , दरवाजे से नहीं बल्कि दीवार फोड़कर ही करना है।
भांवरों के समय एक नाग दूध पीने आएगा , उसे तांत की फांस में फंसा लेना है।
फिर जब नागिन अपने नाग को वापस मांगे, तो बदले में अपने पहले के मृत छहों भतीजे मांग लेना है।
इन सब बातों को किसी को न बताना, वरना सुनने वाला जीवित नहीं रहेगा।
चमत्कार की साक्षी बनी बुआ
भतीजी ने बुढ़िया की सभी बातों का पालन किया। घटनाएं बिलकुल उसी प्रकार घटीं जैसे दुबड़ी माता ने बताया था। नाग दूध पीने आया, तांत में फंसा, और नागिन से बदले में छह भतीजे मांगने पर वे सभी भी जीवित हो उठे। इस प्रकार सातों भतीजों की रक्षा हो गई।
दुबड़ी माता की पूजा और व्रत की परंपरा
बारात सकुशल लौटने पर बुआ ने सप्तमी के दिन दुबड़ी माता की विधिवत पूजा की। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और यह दिन “संतान सप्तमी” के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और संतान की रक्षा व प्राप्ति की कामना से दुबड़ी माता की पूजा करती हैं।
विशेष – आस्था, निष्ठा और मातृत्व की शक्ति
दुबड़ी माता की यह कथा केवल चमत्कार नहीं, बल्कि एक गूढ़ संदेश भी देती है, जब आस्था और प्रेम के साथ कोई नारी संकल्प करती है, तो प्रकृति भी उसके मार्ग में सहयोग देती है। जबकि संतान की ही नहीं बल्कि ,ऐसे कहानी का मूल उद्देश्य यही है की परिवार की एकता और बड़ों के मांसमं करने ,उनकी बात मैंने से सब अच्छा होता है सबकी रक्षा होती है और तब से सुखद जीवन के लिए माताओं का यह व्रत भारतीय लोक परंपराओं का एक गौरवशाली प्रतीक है।