Sant Sen Ji Story In Hindi: “भगत के वश में हैं भगवान” यह भजन तो आप सब ने जरूर सुना होगा, लेकिन सचमुच भगवान अपने भक्त के वश में होते हैं, बस श्रद्धा सच्ची होनी चाहिए। भगवान और भक्त की कई सारी कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में प्राप्त होती हैं, जैसे भगवान विष्णु और उनके परम भक्त प्रह्लाद की, यह कथा तो हम सबने सुन ही रखी है, लेकिन आज हम एक भक्त और उसके भगवान की कहानी सुनाएंगे, जिसका सम्बन्ध हमारे विंध्य और बघेलखंड से, लेकिन हम लोगों को ही नहीं पता है। तो आइये जानते हैं उस कहानी के बारे में।
Sant Sen Ji
भक्तिकाल का युग
भारतीय इतिहास में भक्ति आंदोलन ने बहुत सारे सामाजिक परिवर्तन लाए थे, इस दौर में रामानंद के प्रभाव से बहुत सारे गैर ब्राह्मण संतों का उदय हुआ, जिनमें कबीर, नानक, रैदास, पीपा, मीरा इत्यादि प्रमुख हैं, जिन्होंने समाज को बहुत ही ज्यादा प्रभावित किया।
कौन थे संत सेन भगत | Who was Sant Sen Ji
ऐसे ही एक संत थे “सेन जी”, जो नाई जाति से आते थे, भक्तमाल की टीका के अनुसार वह रीवा तब बांधवगढ़ के बघेला राजा रामचंद्र की सेवा किया करते थे। संत सेन ने कई सारा पद्य साहित्य लिखा, जो गुरू ग्रंथ साहिब समेत अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में शामिल है। संत सेन की कथा प्रियदास की भक्तमाल के टीका में आती है। जिसके अनुसार सेन जी का जन्म विक्रम संवत 1557 को चैत्र माह कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि को हुआ था, उनका मूल नाम नंदा था, लेकिन कालांतर में वह संत सेन जी के नाम से विख्यात हुए।
भागवत भक्ति में लीन रहते थे संत सेन भगत | Bhagwat Bhakti Of Sant Sen Ji
कथा के अनुसार नंदा नाम का नाई बांधवगढ़ के राजा रामचंद्र के यहाँ काम करता था, जो राजा का क्षौर कर्म अर्थात दाढ़ी, बाल तथा नाखून इत्यादि को काटना, तेल मालिश इत्यादि नित्य-प्रतिदिन किया करता था। नंदा बेहद सीधा, सच्चा, भोला और संत स्वाभाव का था। वह उस समय के धार्मिक आंदोलन से बेहद प्रभावित थे, जिसके कारण वह भागवत भक्ति भी किया करते थे। एक दिन नगर में कुछ साधु संतों का आगमन हुआ। सेन जी भी साधु संतों के दर्शन के लिए पहुंचे और उनके साथ सेन जी भगवान के भजन-कीर्तन और भगवद भक्ति में लीन हो गए। उन्हें इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि अभी राजा के यहाँ जाना है। इधर अब समय ज्यादा हो रहा था, राजा भी अकारण और बिना बताए सेन के आने से नाराज हो रहे थे, और अपने कुछ सैनिकों को सेन जी को बुलाने के लिए भेजा। इधर सेन जी तो भजन-कीर्तन में डूबे हुए हैं, अब देखिए उनके भक्त को कष्ट ना हो राजा उन पर क्रोधित ना हो, इसीलिए करुणानिधि भगवन स्वयं ही नाई का वेश धर कर सेन जी का थैला लेकर महल पहुँच गए और राजा की हजामत और तेल-मालिश इत्यादि करने लगे, उस दिन राजा सेन जी के कार्य से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें एक सोने का सिक्का दे दिया, भगवान बने सेन जी राजमहल से चलकर वहाँ फिर से वापस आए, जहां भजन-कीर्तन हो रहा था, भगवान थैला सेन जी के पास रख कर अंतर्ध्यान हो गए।
इधर बहुत देर तक भजन कीर्तन कर रहे सेन जी को जब ध्यान आया, आज तो राजा के पास जाने में बहुत देर हो गई, वह डरते-डरते राजमहल की तरफ बढ़े। सेन जी राजा के समक्ष उपस्थित हुए, राजा ने सें जी को देख कर पूछा कुछ भूल गए हो क्या। सेन जी ने कुछ डरते हुए और चकित होकर कहा- महाराज आज आने में थोड़ा देर हो गया है, उसके लिए क्षमा चाहता हूँ, अब आश्चर्यचकित होने की बार राजा की थी, उन्होंने कहा- क्या बात करते हो सेन, अभी तो तुम कुछ देर पहले ही आए थे मेरे पास, मैंने आपके कार्य से प्रसन्न होकर एक सोने का सिक्का भी दिया था, वह सिक्का तुमने अपने थैली में डाला था। सेन जी ने अपनी थैली में देखा तो, सोने का सिक्का उनको मिल गया, अब राजा और सेन दोनों आश्चर्यचकित थे। सेन जी समझ गए, भगवान स्वयं उनका वेशधर कर आए थे, वह भावुक होकर रोने लगे और पूरी बात राजा को बताई, राजा जी भी भावुक हो गए और प्रेम से सेन जी को गले से लगा लिया। पूरे नगर भर में यह बात फैल गई, आज एक भक्त के रक्षा लिए भगवान स्वयं आए थे, यह बात पुराणों में तो पढ़ी गई है, लेकिन आज भी प्रत्यक्ष दिख भी गई। उसके बाद राजा जी ने, सेन जी को भागवत भक्ति के लिए अपनी सेवा से मुक्त कर दिया और उनके परिवार के भरण-पोषण का भरोसा भी दिया, नंदा नाई अब संत सेन जी के नाम से जाने जाने लगे, और पूरे देश भर में घूम-घूम कर भगवान का भजन कीर्तन करने लगे, भक्ति ग्रंथों के अनुसार अंत में वह काशी प्रवास पर चले गए और वहीं उनकी मृत्यु हो गई।
रीवा महाराज रघुराज सिंह के किताब संत सेन जी की कथा | Mention of Sant Sen ji in Rewa Maharaj’s book
इस कहानी का कोई ऐतिहासिक आधार तो नहीं है, पर प्रियदास जी की भक्तिमाल टीका में यह कथा प्राप्त होती है। इस कथा की पुष्टि रीवा के महाराज रघुराज सिंह द्वारा रचित भक्तमाला-सीताराम चरित से भी होती है। जिसके अनुसार-
बान्धवगढ़ पूरब जो गायों
सेन नाम नापित तहाँ पायो
ताकि रहे सदा यह रीति
करत रहो साधुन से प्रीति
तह को राजा राम बघेला
बरन्यो जेहि रामानंद को चेला
करे सदा तिनकी सेवकाई
मुकर दिखावे तेल लगाई
संत सेन जी के समय पर विद्वानों में मतभेद | time of Sant Sen Ji
हालांकि ऐतिहासिक आधार पर कुछ विद्वान सेन जी की कथाओं के बांधवगढ़ का राजा रामचन्द्र की जगह, उनके दादा वीरसिंह को मानते हैं, चूंकि बांधवगढ़ के बघेला राजा बेहद धार्मिक स्वाभाव के थे और साधु-संतों को प्रश्रय दिया करते थे, इसीलिए बांधवगढ़ में खूब साधु-संत आते थे। कहतें हैं नानक और कबीर भी बाँधवगढ़ आए थे, बाँधवगढ़ का नगरसेठ धर्मदास कबीर का भक्त और शिष्य था, उसी के प्रभाव से बघेला राजा कबीर के परंपरा से प्रभावित थे। उनके युग के साथ ही उनका जन्मस्थान इत्यादि भी विवादित है, कई विद्वान उनका कार्यक्षेत्र पंजाब को मानते हैं। लेकिन प्रियदास रचित भक्तिमाल की टीका बांधवगढ़ से उनके संबंध की पुष्टि करता है।