Sanskrit Inscription Found in POK: हाल ही में, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में गिलगित के पास चौथी शताब्दी ई. का एक संस्कृत शिलालेख मिला है, जो कि ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ है। यह शिलालेख पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित में एक चट्टान से प्राप्त हुआ है। इस शिलालेख में “पुष्पसिम्ह” द्वारा अपने गुरु के लिए महेश्वरलिंग की स्थापना का उल्लेख है।
संस्कृत भाषा के इस प्राचीन शिलालेख को एएसआई के एपीग्राफ डिवीजन ने डिकोड किया है। ब्राह्मी लिपि में लिखा गया यह शिलालेख लगभग चौथी शताब्दी का है। एएसआई एपीग्राफी निदेशक के मुनिरत्नम रेड्डी के अनुसार, शिलालेख में लिखा है: “पुष्पसिंह ने अपने गुरु के लिए महेश्वरलिंग की स्थापना की।” गुरु जिनका नाम अभिलेख में आंशिक रूप से लुप्त हो गया है। राजस्थान के शिव प्रताप सिंह ने एएसआई के साथ शिलालेख की एक तस्वीर साझा की थी, जिसके बाद एएसआई ने इसे डिकोड किया।
महेश्वर भगवान शिव के आठ नामों में से एक हैं और इनका उल्लेख शिवपुराण में वैदिक अनुष्ठानों के अनुसार मिट्टी की लिंग प्रतिमा अर्थात पार्थिव-लिंग को बनाकर उनकी पूजा करने की विधि बताते हुए किया गया है। इसके अलावा माहेश्वर शब्द का प्रयोग भगवान शिव के भक्तों के लिए भी किया जाता है। कश्मीर जो एक समय शैव्य धर्म के अनुयायियों का प्रमुख केंद्र था। यह अभिलेख बताता है, शिव उपासना यहाँ अत्यंत प्राचीन समय से ही प्रचलित थी।
विद्वानों का कहना है, पहले भी पाकिस्तान में ऐसे ही अभिलेख मिलते रहे हैं, पांच महीने पहले भी पाकिस्तान के पेशावर से 10वीं शताब्दी का एक अभिलेख मिला है, यह अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसकी लिपि शारदा है। लेखन के लिए शारदा लिपि का प्रयोग भारत के पश्चिमोत्तर प्रान्त और कश्मीर में बहुतायत में होता था। इस लिपि का अभ्युदय ब्राम्ही से हुआ था। और इसका का प्रयोग सम्भवतः आठवीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ था। पेशावर के पास एक पत्थर के टुकड़े में उत्कीर्ण यह शिलालेख खंडित अवस्था में मिला था। क्षतिग्रस्त और खंडित होने के कारण, यह बहुत स्पष्ट तो नहीं है, लेकिन प्रतीत होता यह लेख बौद्ध धारिणी अर्थात मंत्रों को संदर्भित करता प्रतीत होता है। क्योंकि एएसआई के अनुसार छठी पंक्ति में, इसमें दा (धा) रिनी का उल्लेख है। बौद्ध धारिणी एक तरह से पवित्र मंत्र हैं, बौद्ध धर्म में इनका प्रयोग सुरक्षा, शुद्धिकरण और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता था।
ये प्राचीन अभिलेख बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनके माध्यम से हमें तात्कालीन समय के धर्म, राजनीति और समाज की जानकारी मिलती है। पाकिस्तान से प्राप्त इनअभिलेखों से हमें भारतीय उपमहाद्वीप के धार्मिक स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है।