Sankashti Ganesh Chaturthi 2025 : संकटों को हरने वाली पवित्र तिथि और व्रत-हिंदू पंचांग में प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि संकष्टी चतुर्थी के नाम से जानी जाती है। यह दिन विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता और संकटों को हरने वाले भगवान श्री गणेश को समर्पित है। ‘संकष्टी’ का अर्थ है-संकटों से मुक्ति और ‘चतुर्थी’ का अर्थ है-चंद्र मास का चौथा दिन। प्राचीन मान्यता है कि इस व्रत से जीवन के सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे चंद्र उदय के बाद कथा सुनकर ही पूर्ण किया जाता है। पूरे दिन संयम, भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जाने वाला यह व्रत घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का संचार करता है।संकष्टी चतुर्थी या संकटहारा चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित विशेष व्रत है। इसके महत्व, पूजन-विधि,अंगारकी संकष्टी, व्रत कथा और लाभों को जानें। चंद्र दर्शन के बाद पूरा होने वाला यह व्रत जीवन से बाधाएं दूर करता है।
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ और आध्यात्मिक महत्व
“संकष्टी” का वास्तविक अर्थ-संकटों से मुक्ति-संकष्टी शब्द संस्कृत के ‘संकट’ (कष्ट) और ‘हारा’ (दूर करने वाला) शब्दों से मिलकर बना है। अतः यह तिथि भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त करने का अवसर मानी जाती है। जीवन में आने वाली रुकावटें, मानसिक तनाव, आर्थिक बाधाएं और पारिवारिक कलह को दूर करने के लिए यह व्रत अत्यंत प्रभावी माना गया है। यह व्रत साधक में धैर्य, अनुशासन और आस्था का विकास करता है। व्रत का आध्यात्मिक धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि चतुर्थी के देवता गणेशजी बुद्धि, विवेक और सफलता का आशीर्वाद देते हैं,नियमित रूप से संकष्टी चतुर्थी का पालन करने से व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी सही निर्णय ले पाता है। यह व्रत मन और शरीर को शुद्ध करता है और साधना की शक्ति में वृद्धि करता है।
अंगारकी संकष्टी चतुर्थी : विशेष और अत्यंत शुभ
जब संकष्टी चतुर्थी मंगलवार के दिन आती है, तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। ‘अंगारकी’ नाम मंगल ग्रह से उत्पन्न है, और मंगल का दिन मंगलवार माना जाता है। इस दिन किया गया व्रत अत्यंत फलदायी, शुभ और मनोकामना-पूर्ति करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि अंगारकी संकष्टी के दिन व्रत करने से अनेक जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और भक्त को विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
संकष्टी चतुर्थी की विधि-विधान-शुभ समय, सामग्री और पूजा चरण
दिन की शुरुआत-भक्ति और पवित्रता-व्रत रखने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए। लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है, क्योंकि ये रंग गणेशजी को प्रिय हैं। गणेश पूजा की प्रक्रिया पूजा स्थल को स्वच्छ कर गणेशजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। रोली, अक्षत, दूर्वा, लाल फूल, जल और दीपक आदि से संपूर्ण विधि से पूजा करें। भगवान गणेश को तिल के लड्डू, मोदक या गुड़-चने का भोग अर्पित करें। धूप-दीप जलाकर गणपति अथर्वशीर्ष, गणेश स्तोत्र या संकष्ट नाशन स्तोत्र का पाठ करें।

संध्या में व्रत कथा का महत्व-संध्या के समय गणेशजी की संकष्टी व्रत कथा सुनी जाती है। कथा में वर्णित प्रसंग बताते हैं कि कैसे गणेशजी ने भक्तों के विभिन्न संकट दूर किए। कथा सुनने के बाद भक्त चंद्रमा के उदय का इंतजार करते हैं। चंद्र दर्शन के बाद -व्रत पूर्ण चंद्रमा को जल अर्पित करके प्रणाम किया जाता है,इसके बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोला जाता है। यह व्रत चंद्र ऊर्जा और गणेश भक्ति दोनों का अद्भुत संगम माना गया है।
- संकष्टी चतुर्थी के लाभ-जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक प्रभाव-जीवन की बाधाएं दूर होती हैं
- इस व्रत को करने से मार्ग में आने वाले रुकावटें कम होती हैं और कार्य सफलतापूर्वक पूरे होते हैं।
- संतान प्राप्ति और परिवारिक सुख का आशीर्वाद-मान्यता है कि यह व्रत संतान प्राप्ति में सहायक है और बच्चों की सेहत-सुरक्षा के लिए भी लाभकारी होता है।
- आर्थिक स्थिरता और उन्नति-गणपति को ‘धन-संपदा के दाता’ कहा गया है, अतः व्रत से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।
- मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा-यह व्रत ध्यान, संयम और आध्यात्मिक साधना से मन को शांत करता है और घर-परिवार में सौहार्द बढ़ाता है।
निष्कर्ष-संकष्टी चतुर्थी केवल व्रत नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास का ऐसा पर्व है जो व्यक्ति को संकटों से उबारकर सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। चाहे जीवनमूल्य हों, परिवार की खुशहाली, स्वास्थ्य की कामना या आर्थिक समृद्धि-यह व्रत हर क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। इतना ही नहीं नियमित रूप से संकष्टी चतुर्थी का पालन करने वाला भक्त न केवल भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में आने वाली हर चुनौती का समर्पित भाव से सामना करने की शक्ति भी प्राप्त करता है।
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