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संचार साथी ऐप विवाद: जासूसी का आरोप, प्रियंका गांधी भड़कीं – सरकार ने लिया U-टर्न, जानें पूरी सच्चाई

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संचार साथी ऐप विवाद: जासूसी के आरोपों पर प्रियंका गांधी का हमला

साइबर फ्रॉड के खिलाफ लाए गए ‘संचार साथी’ ऐप ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। विपक्ष ने इसे जासूसी का हथियार बताकर हंगामा मचा दिया, तो सरकार ने पलटी मारते हुए अनिवार्य इंस्टॉलेशन का आदेश वापस ले लिया। (Sanchar Saathi App Controversy) दूरसंचार विभाग (DoT) का 28 नवंबर 2023 का ऑर्डर, जिसमें नए मोबाइल्स पर ऐप प्री-इंस्टॉल करने और पुराने पर अपडेट से डालने का फरमान था, अब रद्द। कंपनियों को 90 दिन का समय दिया गया था, लेकिन जनता की चीख-पुकार और वॉलंटरी डाउनलोड्स में 10 गुना उछाल के बाद केंद्र झुक गया। संसद में भरोसा दिलाया गया कि इससे जासूसी मुमकिन नहीं। लेकिन सवाल बाकी हैं – क्या ये डिजिटल सुरक्षा का हथियार है या प्राइवेसी पर सेंध?

ऐप 17 जनवरी 2025 को लॉन्च हुआ था, जिसका मकसद साइबर क्राइम रोकना है। भारत के 1.2 अरब से ज्यादा मोबाइल यूजर्स के बीच फर्जी IMEI, चोरी के फोन और फेक SIM की मार झेलनी पड़ रही है। DoT के डेटा से सितंबर तक 7 लाख चोरी के मोबाइल रिकवर हो चुके हैं और 22.76 लाख डिवाइस ट्रेस। (Cyber Fraud Prevention) लेकिन विपक्ष को शक है कि ये ऐप मैसेज पढ़ेगा, कैमरा चुराएगा या OTP से घुसपैठ करेगा।

ऐप की खासियतें: फ्रॉड से बचाव का ‘सुपरहीरो’ या ‘बिग ब्रदर’? (App Features Explained)संचार साथी ऐप सरकारी साइबर सिक्योरिटी टूल है, जो यूजर्स को फर्जी कॉल, SMS या WhatsApp चैट रिपोर्ट करने की सुविधा देता है।

विवाद की जड़: जासूसी का डर या राजनीतिक ड्रामा?

28 नवंबर को DoT का ऑर्डर जारी होते ही बवाल मच गया। कांग्रेस ने इसे ‘तानाशाही’ करार दिया। प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कहा, “यह कदम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। यह एक जासूसी एप है। सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है।” (Priyanka Gandhi Statement) राज्यसभा में कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने 2 दिसंबर को स्थगन प्रस्ताव लाया, लेकिन चर्चा नहीं हुई। डर ये कि ऐप पर्सनल मैसेज, कॉल रिकॉर्डिंग या कैमरा एक्सेस कर सकता है। इंडस्ट्री सोर्सेज ने बताया, Apple जैसी कंपनियों की पॉलिसी प्री-इंस्टॉलेशन की इजाजत नहीं देती, जिससे टकराव बढ़ा। (Privacy Invasion Fears) एक्सपर्ट्स का कहना: AI-बेस्ड फ्रॉड डिटेक्शन जैसे फ्यूचर फीचर्स प्राइवेसी को और खतरे में डाल सकते हैं।

नेताओं के तीर-कमान: सिंधिया का बचाव, BJP का पलटवार (

लोकसभा में कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के सवाल पर संचार मंत्री ज्योतिरादitya सिंधिया ने सफाई दी। उन्होंने कहा, “यह एप वैकल्पिक है। आप जब चाहें इसे अपने फोन से हटा सकते हैं। अगर इस्तेमाल न करना चाहें तो एप पर रजिस्ट्रेशन न करें। रजिस्टर नहीं करेंगे तो एप इनएक्टिव रहेगा। यह एप केवल वही नंबर या SMS लेता है जिसे यूजर खुद फ्रॉड या स्पैम रिपोर्ट करता है, इससे बाहर कुछ नहीं लेता।” (Jyotiraditya Scindia Response) सिंधिया ने जोर देकर कहा कि ये फ्रॉड रोकने और नेटवर्क मिसयूज से बचाव के लिए है, निगरानी के लिए नहीं।

BJP सांसद संबित पात्रा ने काउंटर दिया, “यह एप व्यक्तिगत डेटा और मैसेज नहीं पढ़ता और न कॉल सुनता है। यह फ्रॉड रोकने, चोरी के मोबाइल ट्रैक करने और फर्जी सिम पहचानने के लिए है। यह निगरानी नहीं, लोगों की डिजिटल सुरक्षा का टूल है।” (Sambit Patra Defence) कांग्रेस ने इसे ‘व्यक्तिगत जिंदगी में दखल’ बताया, भले ही साइबर सेफ्टी के नाम पर हो। एक सीनियर अधिकारी ने भास्कर को बताया, “फर्जी IMEI से क्रिमिनल फोन क्लोन कर स्कैम करते हैं, ऐप इसी को रोकता है।”

असर और आगे की राह: सिक्योरिटी vs प्राइवेसी का बैलेंस

सरकार का U-टर्न दिखाता है कि फीडबैक पर अमल होता है। सिंधिया ने कहा कि इंस्टॉलेशन डायरेक्टिव में बदलाव के लिए तैयार हैं। लेकिन ये विवाद डिजिटल इंडिया में सिक्योरिटी और प्राइवेसी के बीच जंग को तेज कर रहा है। (Digital Surveillance Debate) प्राइवेसी ग्रुप्स डेटा एक्सेस पर सवाल उठा रहे हैं, जबकि इंडस्ट्री Apple संग बातचीत से वॉलंटरी प्रॉम्प्ट्स पर शिफ्ट हो सकती है। ये टेलीकॉम रेगुलेशन्स के लिए नया प्रेसिडेंट सेट कर सकता है। विपक्ष का मानना: ये साइबर क्राइम रोकने से ज्यादा, नागरिकों पर नजर रखने का बहाना है।

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