Sainik School Foundation Day 2025 | Author: Jayram Shukla | सफेद बाघ के बाद रीवा को विशिष्ट पहचान मिली है यहां के सैनिक स्कूल से। 20 जुलाई 1962 वह शुभ दिन था जब इस स्कूल की स्थापना हुई।
आजादी के बाद जहाँ राजे-रजवाड़ों ने अपनी मिल्कियत को मुर्गी के अंडे भी भाँति सेवना शुरू किया और महल-कोठियों को होटलों में बदलना शुरू किया वहीं दूसरी ओर रीमा राज्य के आखिरी नरेश महाराजा मार्तण्ड सिंह ने रीवा के विकास के लिए अपनी संपत्तियों को भामाशाह की भाँति मुक्तहस्त दान किया।
न सिर्फ सैनिक स्कूल के लिए आलीशान युवराज भवन व तीन सौ एकड़ भूमि दी अपितु जहाँ भी जब भी जरूरत पड़ी वे आगे आए। फलकनुमा कोठी में आईटीआई है तो भव्य व्येंकट भवन में पुरातत्व संग्रहालय। कम लोगों को ही पता होगा कि रीवा के औद्योगिकीकरण के लिए सौ एकड़ जमीन बिडला घराने के मैनेजर को लगभग फोकट में देदी। हाँ टमस फैक्ट्री वहीं स्थापित हुई थी.. बाद में जिसकी जमीन बेंचकर मैनेजर साहब ने अरबों कमा लिया।
बहरहाल हम बात करेंगे सैनिक स्कूल की जिसका देशभर में गौरवमयी स्थान रहा है। आज देश की थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी, नौसेनाध्यक्ष एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी इसी स्कूल से पढ़कर निकले हैं, इससे बढ़कर गौरव की बात भला और क्या हो सकती है।
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1961 में रक्षामंत्रालय ने एनडीए के लिये छात्र तैय्यार करने की मंशा से सैनिक स्कूल्स की परिकल्पना की। आरंभिक जरूरत थी भूमि की। महाराज मार्तण्ड सिंह ने इस संस्थान की महत्ता समझते हुए न सिर्फ भूमि उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा वरन तीन सौ एकड़ की हरीतिमा के बीच स्थिति युवराज भवन को देने का प्रस्ताव दिया।
केंद्र सरकार ने बिना वक्त गंवाए महाराज रीवा के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हुए रीवा में सौनिक स्कूल की स्थापना कर दी। कर्नल आर आर नारंग पहले प्राचार्य हुए। कर्नल नारंग की कड़ी मेहनत, अनुशासन व शिक्षा की उच्च गुणवत्ता की बदौलत सैनिक स्कूल रीवा देश का श्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थान बनकर उभरा।
एक समय हर अभिभावक का स्वप्न था कि उसका बेटा यहां पढे़। सैनिक स्कूल रीवा देश की भौगोलिक एकता का प्रतीक भी बना। कश्मीर से कन्याकुमारी, कलकत्ता से कच्छ तक के बच्चे देश का सिपाही बनने का जज्बा पाले यहां आने लगे।
इस स्कूल से निकले कैडेट्स की एनडीए में धूम रही। सन् 71 के युद्ध में पहलीबार शौर्य दिखाने का अवसर आया। इसके बाद हर युद्ध और आतंकी मोर्चे में निपटने यहीं से निकले सैनय अधिकारी अग्रणी रहे।
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सैन्य प्रमुखों के बाद जितने भी शीर्ष पद हैं रीवा सैनिक स्कूल के कैडेट्स अधिकारी बनकर वहां पहुंचे।यहां के छात्र जो सैन्य अधिकारी बने उनकी आज भी विशिष्ठ छाप है। तीन वीर चक्र, तीन शौर्यचक्र के साथ दर्जनों गैलंटी अवार्ड का सम्मान मिला। प्रशासनिक व अन्य क्षेत्र यहां तक कि पत्रकारिता व साहित्य में भी इनकी धाक कायम है।
आज स्थापना दिवस पर उन जांबाजों को नमन जिन्होंने देश के लिए प्राणोत्सर्ग किया। स्व.महाराज मार्तण्ड सिंह को कोटिशः प्रणाम्।। कर्नल नारंग को सैल्यूट।
*छायाचित्र में महाराज मार्तण्ड सिंह के साथ कर्नल नारंग।
चित्र में: स्कूल परिसर में भ्रमण करते महाराज रीवा मार्तण्ड सिंह, प्रथम प्राचार्य कर्नल नारंग व अध्यापकगण।