Sahara India Scam : सहारा समूह लंबे समय से अपने निवेशकों को धन वापसी की जिम्मेदारी पूरी करने के लिए अपनी विभिन्न संपत्तियों को बेचने की अनुमति मांग रहा है। इससे पहले, कंपनी ने महाराष्ट्र स्थित एम्बी वैली और लखनऊ स्थित सहारा शहर जैसी प्रमुख संपत्तियों को अदाणी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को बेचने की अनुमति भी मांगी थी। लेकिन इस मामले में आज सुनवाई करते हुए कहा कि सहारा इंडिया की कंपनी की सम्पत्ति किसे और कैसे बेचनी है ये कोर्ट तय करेगा। इसके साथ ही अदालत ने सहारा कंपनी को अडानी ग्रुप को बेचने की अनुमति पर केंद्र और सेबी से जवाब माँगा है।
क्या अडानी ग्रुप खरीदेगा सहारा कंपनी?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, सेबी और अन्य हितधारकों को सहारा की याचिका पर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। अदालत ने साथ ही, सहारा समूह से उन कर्मचारियों के बकाया वेतन का भी पता लगाने को कहा है, जिन्हें कई वर्षों से वेतन नहीं मिला है। मुख्य न्यायधीश ने सुनवाई के दौरान कहा, “हम तय करेंगे कि संपत्तियों की बिक्री टुकड़ों में होनी चाहिए या एक साथ।” अब यह मामला 17 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, जब अदालत केंद्र और अन्य पक्षों के जवाबों पर विचार कर आगे की कार्रवाई तय करेगी।
1978 में बनी सहारा कैसे बनी स्कैम
सहारा समूह की स्थापना 1978 में सुब्रत रॉय ने की थी। इस कंपनी ने तेजी से तरक्की की और भारत में जमीन बनाने, मीडिया, होटल और निवेश सेवाओं में अपनी पहचान बनाई। लेकिन सवाल है कि यह भरोसा कैसे टूटा और करोड़ों लोग क्यों परेशान हो गए? सहारा ने दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल एस्टेट और सहारा हाउसिंग के जरिए निवेश जुटाए, जो खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और आसपास के इलाकों के मध्यम और गरीब वर्ग को आकर्षित करते थे। लाखों किसान, मजदूर और छोटे व्यापारी ने अपनी बचत इसमें लगाई, क्योंकि एजेंट्स अच्छा लाभ का भरोसा देते थे।
क्या सहारा को सेबी ने किया बर्बाद?
सहारा की योजनाएं चिट फंड जैसी थीं, जिसमें अधिक मुनाफे का वादा किया जाता था, साथ ही जमीन और निवेश के विकल्प भी थे। कंपनी ने बड़े-बड़े आयोजन, मशहूर हस्तियों की मदद और समाज के लोगों से जुड़ाव दिखाकर अपने नाम को मजबूत किया। लेकिन 2010 में सेबी (SEBI) ने इन योजनाओं में अनियमितताएं पकड़ लीं। 2008 से 2011 के बीच, सहारा की दोनों कंपनियों ने लगभग 24,000 करोड़ रुपये, 3 करोड़ से अधिक निवेशकों से जमा किए।
2010 में शुरू हई सहारा की कानूनी लड़ाई
सहारा ने एक नया निवेश उत्पाद, OFCD (ऑफशोर फंड्स और कॉरपोरेट डेवेलपमेंट) निकाला, जो लंबी अवधि का बॉन्ड था, जिसमें निवेशक बाद में अपने पैसे कंपनी के शेयर में बदल सकते थे। भारत के कानून के मुताबिक, यदि किसी कंपनी ने 50 से अधिक लोगों से पैसा लिया हो, तो उसे पंजीकरण कराना जरूरी है। लेकिन सहारा का कहना था कि ये योजनाएं केवल अपने सदस्यों के लिए थीं, इसलिए पंजीकरण आवश्यक नहीं है। इस पर अदालत ने कहा कि कंपनी ने गलत किया है।
कानूनी लड़ाई 2010 में शुरू हुई। सेबी ने कंपनी पर रोक लगाई और कहा कि पैसे तुरंत वापस करो। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सहारा को 24,000 करोड़ रुपये निवेशकों को लौटाने होंगे। 2014 में सुब्रत रॉय को जेल भी हुई, हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। उनका निधन हो चुका है।
2025 तक सहारा ने लौटाए हैं 2,300 करोड़ रुपये
सरकार ने अभी तक 2025 तक करीब 2,300 करोड़ रुपये वापस किए हैं, लेकिन अभी भी बहुत से निवेशक अपने पैसे का इंतजार कर रहे हैं। सवाल है कि इस घोटाले में असली लाभ किसका हुआ, सिस्टम में क्या कमी थी, और इतने बड़े घोटाले के बाद भी क्यों अभी तक पूरा पैसा नहीं मिला? सहारा घोटाले की सच्चाई बहुत दुखद है। यह हमें सिखाता है कि अपने पैसे की सुरक्षा के लिए मजबूत नियम और तत्काल न्याय जरूरी हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।