रूस ने दी अफगानिस्तान के तालिबान सरकार को मान्यता, जानें दोनों देशों का संबंधों का इतिहास

Relations Between Russia And Afghanistan: हाल ही में खबर आई है, की रूस ने अफगानिस्तान के तालिबान सरकार को मान्यता प्रदान कर दी है। जिसका तालिबान ने स्वागत किया है। हालांकि कई लोगों ने इसका विरोध भी किया है। रूस और अफगानिस्तान के संबंधों का इतिहास एक लंबे, पेंचीदा और कभी-कभी टकराव से भरे भू-राजनीतिक अध्याय का इतिहास रहा है। यह संबंध 19वीं सदी के “ग्रेट गेम” से शुरू होकर सोवियत आक्रमण, गृहयुद्ध, और आज के कूटनीतिक संबंधों तक फैला है।

“ग्रेट गेम” का युग

19वीं सदी में अफगानिस्तान ब्रिटिश भारत और रूसी साम्राज्य के बीच बफर ज़ोन बन गया। रूस का मकसद था भारत की ओर विस्तार करना, जबकि ब्रिटेन चाहता था अफगानिस्तान पर प्रभाव, ताकि वह रूसी खतरे से भारत को सुरक्षित रख सके। इसीलिए अफगानिस्तान में ब्रिटिशर्स ने कई हस्तक्षेप किए। 1839, 1878 और 1919 दोनों के मध्य युद्ध भी हुए। इन संघर्षों के पीछे रूस का डर प्रमुख कारण था। हालांकि इस दौर में रूस ने प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन लगातार अफगान शासकों के संपर्क में रहा।

सोवियत-अफ़गान संबंध

तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध के बाद अफगानिस्तान को पूर्ण स्वतंत्रता मिली। 1919 अफगानिस्तान को ब्रिटिश नियंत्रण से स्वतंत्रता प्राप्त हुई और अफगानिस्तान में ब्रिटेन का प्रभाव कम कर दिया। इसके बाद अफगान अमीर अमानुल्ला खान ने रूस से समर्थन मांगा और सोवियत रूस ने अफगानिस्तान को औपचारिक मान्यता दी।

अफगानिस्तान को सोवियत सहयोग

इसके बाद 1950 से 1970 के दशक तक, सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में भारी आर्थिक और सैन्य मदद दी। जिसमें कई बांध, कारखाने, स्कूल, सड़कों का निर्माण किया गया। इसके अलावा सोवियत रूस ने अफगान सेना को प्रशिक्षण और हथियार भी दिए। हालांकि अफगानिस्तान गुटनिरपेक्ष नीति पर चल रहा था, लेकिन फिर भी उस पर सोवियत प्रभाव बढ़ता ही गया।

अफगानिस्तान पर सोवियत रूस आक्रमण के कारण

दरसल अफगानिस्तान में अप्रैल 1978 की सौर क्रांति के बाद, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान (PDPA) की सत्ता में आ गई। यह एक कम्युनिस्ट समर्थक पार्टी थी। जिसने रूसी विचारधारा के तहत देश में सुधार लागू किए। जैसे- ज़मींदारी उन्मूलन और महिला अधिकारों का समर्थन इत्यादि। लेकिन यह सब बदलाव देश के कई धार्मिक समूहों को नागवार गुज़र रहा था। जिसके बाद देश में आंतरिक संघर्ष, विपक्ष, इस्लामी विद्रोह और पार्टी के अंदर मतभेद बढ़ने लगे। जिसके बाद PDPA की नीतियों और जबरदस्त दमन ने पूरे देश में असंतोष को जन्म दिया। जिसके बाद मुजाहिदीन नामक इस्लामी विद्रोहियों ने सरकार के खिलाफ हथियार उठा लिए। PDPA सरकार को गिरने का खतरा हो गया।

सोवियत द्वारा अफगानिस्तान पर आक्रमण

24 दिसंबर 1979 को सोवियत सेनाओं ने अफगानिस्तान में आक्रमण कर दिया। तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हाफिज़ुल्लाह अमीन की हत्या कर दी गई और बाबरक कारमल को सत्ता में बैठाया गया, जो मास्को का वफादार था। जिसके बाद मुजाहिदीन और सोवियत सेना के बीच 10 साल का युद्ध छिड़ गया। अमेरिका, पाकिस्तान, सऊदी अरब आदि देशों ने मुजाहिदीन को हथियार, ट्रेनिंग और फंडिंग दी। यह युद्ध सोवियत संघ के लिए एक “वियतनाम जैसा संकट” बन गया।

सोवियत की अफगानिस्तान में असफलता

इस युद्ध के कारण रूस को भारी नुकसान उठाना पड़ा। उसके लगभग 15,000 सैनिक मारे गए और उसके सैकड़ों करोड़ डॉलर खर्च हुए। सोवियत के विरुद्ध घरेलू असंतोष और अंतरराष्ट्रीय आलोचना भी बढ़ी। भारी जनहानि, आर्थिक दबाव और वैश्विक आलोचना के चलते 1989 में सोवियत संघ को अफगानिस्तान से हटना पड़ा। अफ़गान युद्ध के बाद ही 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ। सोवियत के अफगानिस्तान से हटने के बाद अस्थिरता बढ़ी और अफगानिस्तान एक लंबे गृहयुद्ध में चला गया।

आखिर अफगानिस्तान पर रूस ने आक्रमण क्यों किया था

अफगानिस्तान की कम्युनिस्ट PDPA सरकार ने सोवियत संघ से सैन्य मदद मांगी। सोवियत संघ नहीं चाहता था कि उसके प्रभाव क्षेत्र में कोई कम्युनिस्ट सरकार गिर जाए। दूसरा वह अफगानिस्तान को अपने सामरिक प्रभाव क्षेत्र को बनाए रखना चाहता था, क्योंकि अफगानिस्तान, सोवियत संघ की दक्षिणी सीमा से सटा हुआ था। और उस पर यह कि अमेरिका के रास्ते अफगानिस्तान में प्रभाव बढ़ा रहे थे। सोवियत संघ इसे भू-राजनीतिक खतरा मानता था। सोवियत ‘ब्रेज़नेव डॉक्ट्रिन’ का पालन किया करता था, दरसल उस समय तक सोवियत नीति थी कि अगर कोई कम्युनिस्ट देश अस्थिर होता है, तो सोवियत हस्तक्षेप जायज़ है। यह सिद्धांत पहले हंगरी और चेकोस्लोवाकिया में भी लागू हुआ था।

प्रथम तालिबान युग और रूस

1996 में जब तालिबान सत्ता में आया, रूस ने उन्हें मान्यता नहीं दी। रूस को चेचन विद्रोहियों और मध्य एशियाई इस्लामी चरमपंथ से खतरा था, जिन्हें तालिबान और अल-कायदा से समर्थन मिलने की आशंका थी। रूस ने नॉर्दर्न एलायंस को गुप्त रूप से हथियार और सहयोग दिया।

तालिबान के पतन के बाद नई सरकार के साथ संबंध

2001 के बाद तालिबान शासन के पतन के बाद, रूस ने नई अफगान सरकार को मान्यता दी। रूस ने आतंकवाद, ड्रग्स और कट्टरपंथ के खिलाफ अफगानिस्तान को सहायता दी, अफगानिस्तान में आर्थिक निवेश किया भी किया विशेषकर ऊर्जा और बुनियादी ढांचे में।

द्वितीय तालिबान युग और रूस

2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद तालिबान की सत्ता में फिर से वापसी हुई। इस बार रूस ने तालिबान से प्रैगमैटिक संवाद बना कर रखे। कूटनीतिक संबंध बनाए रखे, मास्को में कई अफगान शांति वार्ता आयोजित की। इसके अलावा रूस ने संकट के समय अफगानिस्तान को मानवीय सहायता, खाद्यान्न और तेल इत्यादि भी भेजा है। और अब रूस ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता देने का फैसला किया है।

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