Rishi Panchami 2025: जानिए क्या है व्रत की पौराणिक कथा | Rishi Panchami Vrat Katha

Rishi Panchami Vrat Katha प्राचीन काल में सदाचार, सामाजिकता, नैतिकता सिखाने हमेशा ही आध्यात्मिक-धार्मिक पाठ पढ़ाए गए और उन धार्मिक अध्ययन और अनुष्ठान को फॉलो न करने की हिदायतें पाप और पुण्य से जोड़कर देखीं जातीं थीं।

इसी तरह समृद्ध संस्कृति और विरासत की भूमि भारत ऐसा देश हैं जो अपने क्षेत्र में घटित घटनाओं का जश्न मनाता आया है बल्कि हर ज़श्न या उत्सव ,समृद्ध भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बना और यह आगे चलकर समृद्ध भारतीय धर्म संस्कृति, मान्यता व परंपराओं में शामिल कर लिए जाते हैं।

ऋषि पंचमी का त्योहार भी एक ऐसी ही घटना का परिणाम है। जैसे अच्छे कर्म, जयंती और यहां तक कि ऐसी घटनाएं जो हमें जीवन के सबक सिखाती हैं। अपनी पीढ़ियों को संस्कृति से जुड़े रखने और उनका सम्मान करने के लिए, आज भी इन घटनाओं को त्योहारों के रूप में याद किया जाता है और मनाया जाता है।

सप्त ऋषियों को श्रद्धांजलि देने और उन्हें सम्मान देने के लिए मनाए जाने वाले इस त्योहार को ‘सप्तऋषि पंचमी’ भी कहा जाता है। जबकि सदियों से इस त्योहार को ‘ऋषि पंचमी’ के नाम से जाना जाता है। आइए इस लेख में ऋषि पंचमी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा के माध्यम से जानते हैं आवश्यक तथ्य क्या हैं ।

ऋषि पंचमी क्या है – Rishi Panchami Kya Hai ?

हिंदू धर्म में सबसे अधिक मनाए जाने वाले व्रतों में से एक, जो भाद्रपद (अगस्त/सितंबर) माह में शुक्ल पंचमी के दिन पड़ता है, ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार चंद्र कैलेंडर के अनुसार ‘गणेश चतुर्थी’ के शुभ त्योहार के अगले दिन और ‘हरतालिका तीज’ के दो दिन बाद पड़ता है।

ऋषि पंचमी क्यों मनाई जाती है – Rishi Panchami Kyu Manai Jati Hai ?

ऋषि पंचमी वह त्योहार है जो प्राचीन ऋषियों, सप्तर्षियों के महान कार्यों के सम्मान में मनाया जाता है। ‘सप्त’ शब्द का अर्थ है सात और ‘ऋषि’ शब्द का अर्थ है ऋषि, इस प्रकार ‘सप्तऋषि’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है सात ऋषि। ऋषि पंचमी के इस त्योहार के दौरान, लोग कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ नामक सप्त ऋषियों की पारंपरिक पूजा करते हैं।

महिलाएं इस दिन ‘ऋषि पंचमी व्रत’ या ‘साम पंचमी व्रत’ के रूप में व्रत रखती हैं ताकि समाज की भलाई और कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले इन महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता, सम्मान और उनके अच्छे कार्यों का आभार प्रकट कर जश्न मनाया जा सके।

ऋषि पंचमी कब है – Rishi Panchami Kab Hai 2025 ?

  • इस वर्ष ऋषि पंचमी गुरुवार, 28 अगस्त  2025 को पड़ रही है।
  • ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त – सुबह 11:05 बजे से दोपहर 01:39 बजे तक
  • अवधि – 02 घंटे 34 मिनट 
  •  पंचमी तिथि प्रारंभ- 27 अगस्त 2025 को दोपहर 03:44 बजे
  • पंचमी तिथि समाप्त – 28 अगस्त 2025 को शाम 05:56 बजे।

ऋषि पंचमी की पौराणिक कथा – Rishi Panchami Katha ?

– बहुत समय पहले, विदर्भ नगर में उत्तंक नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह अपनी पत्नी सुशीला और दो बच्चों, एक पुत्र और एक पुत्री, के साथ वहां रहता था। जैसे ही उसकी पुत्री विवाह योग्य हुई, उसने उसका विवाह एक गुणी पुरुष से कर दिया लेकिन उसकी खुशी ज़्यादा देर तक नहीं टिकी, क्योंकि विवाह के कुछ ही दिनों बाद, उसकी पुत्री के पति का निधन हो गया और वह विधवा हो गई। उसकी पुत्री अपने माता-पिता (उत्तंक और सुशीला) के पास वापस लौट आई। दुखी और स्तब्ध उत्तंक अपनी पत्नी, पुत्र और विधवा पुत्री के साथ गंगा घाट पर एक छोटी सी झोपड़ी में रहने लगे। एक रात उत्तंक अपने परिवार के साथ शांति से सो रहे थे कि अचानक सुशीला की नींद टूट गई और वह जाग उठी।

विधवा पुत्री का शरीर कीड़ों से ढका हुआ देखकर वह स्तब्ध और विस्मित रह गई वह फोरन अपने पति उत्तंक के पास गई और उन्हें वह चौंकाने वाली घटना सुनाई जो उसने देखी थी। एक सदाचारी ब्राह्मण होने के नाते उत्तंक ने इस स्थिति को समझने के लिए समाधि (ध्यान की अवस्था) धारण कर ली। उत्तंक को पता चला कि उनकी पुत्री पिछले जन्म में भी ब्राह्मणी के रूप में पैदा हुई थी और उसका विवाह एक ब्राह्मण से हुआ था।

पिछले जन्म में उत्तंक की पुत्री रजस्वला थी और उसने पूजा गृह और रसोई के बर्तन छू लिए थे और घर के सारे काम करती रही थी। वैदिक ग्रंथों के अनुसार, , रजस्वला काल में किसी भी वस्तु या व्यक्ति के संपर्क में आना पाप है, जिससे स्त्री को बचना चाहिए। इस पाप को रजस्वला दोष कहते हैं। इस पाप को धोने और सुरक्षित, स्वस्थ और निरोगी रहने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है।

उत्तंक को समाधि से यह भी पता चला कि उनकी पुत्री ने अपने वर्तमान जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत या पूजा नहीं की थी। इसलिए, पिछले और वर्तमान जन्म में किए गए पाप के कारण उसके शरीर पर कीड़े पड़ गए। पवित्र शास्त्रों के अनुसार, रजस्वला स्त्री अपने मासिक धर्म के पहले दिन चांडालिनी के समान अशुद्ध होती है, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी के समान और तीसरे दिन धोबिन के समान अशुद्ध होती है। ऐसा माना जाता है कि मासिक धर्म के चौथे दिन स्त्री को स्नान करके और पांचवें दिन ऋषि पंचमी का व्रत रखकर अपने शरीर को शुद्ध करना चाहिए।

ऐसा करने से उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं और अगले जन्म में उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उत्तंक ने अपनी पुत्री को ऋषि पंचमी का व्रत रखने और ऋषि पंचमी की पूजा करने को कहा। पिता उत्तंक के निर्देशानुसार, उनकी पुत्री ने विधिपूर्वक साम पंचम व्रत रखा और ऋषि पंचमी की पूजा की। जैसे ही उसने पूरे मन से सभी अनुष्ठान किए, उसे पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिल गई और उसके सभी दुख दूर हो गए।

ऋषि पंचमी पूजा विधि – Rishi Panchami Puja Vidhi

ऋषि पंचमी पूजा विवाहित महिलाओं द्वारा की जाती है। आइए देखें कि पूजा विधि कैसे करना चाहिए । ऋषि पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठें। स्नान करें और खुद को शुद्ध करें ऐसा कहा जाता है कि यदि आप पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी आदि में स्नान करते हैं तो यह फलदायी होता है। जल स्नान के बाद – दही, दूध, तुलसी और मक्खन के मिश्रण से स्नान भी किया जा सकता है क्योंकि यह शरीर को शुद्ध और आत्मा को शुद्ध करता है।

फिर साफ कपड़े पहनें और अब ऋषि पंचमी के दिन अपने सिर पर और घर के आसपास पवित्र गंगाजल छिड़कें। पूरे दिन उपवास रखें। इस दिन भगवान गणेश सहित सप्तर्षियों की पूजा जाती है। महिलाए देवताओं को फल,मिठाई का ‘प्रसाद’ चढ़ाती हैं और उस दिन अपनी आस्था, श्रद्धा और सामर्थ्य से कुछ विशेष मंत्र और अपने-अपने गुरु मंत्र का 108 माला करती हैं फिर उस दूर्वा को भगवान गणेश को मिठाई के साथ चढ़ाती हैं और उसी का पारण करती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण – Scientific Perspective – प्राचीन धार्मिक मान्यताओं में मासिक धर्म (Menstruation) के समय महिलाओं को अशुद्ध या दोषी माना जाता था, परंतु आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से यह स्वाभाविक और आवश्यक जैविक प्रक्रिया है। इस अवधि में महिलाओं के शरीर से विषाक्त तत्व (toxic waste) और अशुद्ध रक्त बाहर निकलता है, जिससे उनके शरीर की प्राकृतिक शुद्धि होती है। यही कारण है कि इन दिनों साफ-सफाई (hygiene) और आराम पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी जाती है। यदि महिलाएं इस समय उचित स्वच्छता न रखें तो संक्रमण, एनीमिया, थकान और हार्मोनल असंतुलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ऋषि पंचमी व्रत की मूल भावना को अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह महिलाओं को इन दिनों अधिक विश्राम, स्वच्छता और शरीर की देखभाल का महत्व समझाने का प्रतीक है।

विशेष – Conclusion – ऋषि पंचमी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसमें छिपा संदेश यह भी है कि समाज को स्त्रियों के मासिक धर्म जैसे प्राकृतिक चक्र को सम्मान और वैज्ञानिक समझ के साथ स्वीकार करना चाहिए। व्रत और पूजा का उद्देश्य केवल पाप-पुण्य तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वच्छता, आत्मसंयम और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना भी है। इसलिए ऋषि पंचमी को एक धार्मिक परंपरा के साथ-साथ स्वास्थ्य और सामाजिक जागरूकता का पर्व मानना ही इसकी वास्तविक सार्थकता है।

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