रीवा के रक्षक चिराहुलनाथ स्वामी की कहानी –

आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना । होहु तात बल सील निधाना ॥ अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥ 

मध्य प्रदेश के रीवा जिले में सैकड़ों वर्ष पुराना हनुमान मंदिर है. जिसे दुनिया चिरहुलानाथ स्वामी के नाम से जानती है. कहा जाता है कि यहां बजरंगबली अपनी मनोकामनाएं लेकर आने वाले भक्तों को कभी खाली हाथ वापस नहीं भेजते। चिरहुला मंदिर की एक खासियत ये भी है कि श्रद्धालुओं ने इसे डिस्ट्रिक कोर्ट भी नाम दिया है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में केसरीनंदन खुद अपने भक्तों की सुनवाई करते हैं और न्याय करते हैं. अब जाहिर है कि चिरहुला मंदिर डिस्ट्रिक कोर्ट है तो रीवा में ही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी होंगे। चिरहुलानाथ मंदिर से पूर्व दिशा की ओर दो हनुमान मंदिर हैं. राम सगार और खेम सागर। राम सागर को हाईकोर्ट कहा जाता है और खेमसागर को सुप्रीम कोर्ट। ये तीनों मंदिर एक सीधाई पर बने हैं. तीनों मंदिरों के सामने तालाब हैं और तीनों मंदिरों में विराजे पवनपुत्र हनुमान पूरवमुखी हैं.

चिरहुलानाथ स्वामी मंदिर को लेकर कई किवदंतियां भी है. कहा जाता है कि आज से लगभग 500 वर्ष पहले महात्मा चिरहुलदास ने यहां हनुमान जी की प्रतिमा की स्थपना की थी. इसी के साथ राम दास ने राम सागर और खेमदास ने खेमसागर में पूरव मुखी हनुमान जी की प्रतिमा एक ही महीने में स्थापित की थी. इन्ही तीनों महात्माओं के नाम पर इन मंदिरों का नामकरण हुआ था. ये तीनों महात्मा रीवा के प्राचीन अखाड़े अखाड़घाट में निवास करते थे. जो रीवा किले के पीछे आज भी मौजूद है. सबसे पहले रीवा के महाराज वेंकटरमन ने इन तीनों क्षेत्रों में मंदिर का निर्माण कराया था जो हूबहू रीवा के प्रसिद्द महामृत्युंजय मंदिर जैसे दिखाई देते थे. वक़्त के साथ चिराहुलनाथ मंदिर का भक्तों के द्वारा विस्तार होता रहा, रीवा से राजशाही खत्म होने के बाद चिरहुला मंदिर सरकार के अधीन हो गया और यहां भव्य मंदिर का निर्माण हुआ. चिरहुला मंदिर के परिक्रमा मार्ग में भगवन हनुमान की लीलाओं का वर्णन किया गया है. इस मंदिर में हमेशा राम चरित मनास का पाठ होता रहता है. यहां हर रोज़ भंडारे का आयोजन होता है, प्रतिदिन हवन होते हैं.

ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर में कभी गोस्वामी तुलसीदास भी पधारे थे और यहीं उन्होंने रामचरित मानस का पाठ किया था. इस मंदिर के बारे में यहां के पुजारी श्री गोकरणचार्य विस्तार से बताते हैं.

चिरहुला नाथ स्वामी के दर्शन करने और पुजारी जी से इस मंदिर के इतिहास और महत्त्व को समझने के बाद हम निकल पड़े हाईकोर्ट यानी की राम सागर मंदिर। जिस तरह चिरहुलदास ने चिरहुला में हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित किया था उसी प्रकार महात्मा रामदास ने रामसागर में केसरीनंदन की प्रतिमा स्थापित की थी. चलिए अब राम सागर मंदिर की तरफ बढ़ते हैं.

राम सागर मंदिर में विराजे हनुमान जी का आकर चिरहुला नाथ स्वामी से थोड़ा बड़ा है. इसी लिए इन्हे चिराहुलनाथ का बड़ा भाई भी कहा जाता है साथ ही भक्त इस मंदिर को हाईकोर्ट कहते हैं. ऐसा कहा जाता है कि जिनकी सुनवाई चुरहुला मंदिर में नहीं हो पाती उनका समाधान रामसागर के हनुमान जी करते हैं. इस मंदिर के ठीक बगल में विशाल तालाब है यह मंदिर शहर से दूर है इसी लिए यहां आने वाले भक्तों की संख्या भी कम है. ये मंदिर अभी भी अपने मूल स्वरुप में हैं क्योंकि इस मंदिर का रखरखाव सरकार के अधीन नहीं बल्कि रामदास के शिष्य रहे सूरज दीन प्रसाद और उनके के वंशजों ने किया है. मंदिर के पुजारी अरुण प्रसाद तिवारी बताते हैं कि उनके परदादा महात्मा रामदास के शिष्य थे, उनके बाद उनके पुत्र गंगा प्रसाद ने हनुमान जी की सेवा की और उनके बाद पुजारी जी के पिता अयोध्या प्रसाद और अब वे महाबली की सेवा कर रहे हैं. हमने राम सागर मंदिर के पुजारी से इस मंदिर के महत्त्व को जाना।

राम सागर मंदिर से हम खेमसागर की तरफ बढे, जो रीवा के लोही गाँव में स्थापित है.चिरहुला से 5 किलोमीटर दूर बने इस मंदिर का पहुंच मार्ग थोड़ी तकलीफ जरूर देता है लेकिन मंदिर पहुंचने के बाद बड़ी शांति भी मिलती है. चिरहुला और रामसागर की तरह यहाँ भी एक विशाल तालाब है. जिसके गहरीकरण का काम चल रहा है.

खेम सागर मंदिर शहर से दूर है, इसी लिए यहां भक्तों की संख्या और भी कम है. और यही कारण है कि यहां बैठकर ध्यान करने से भक्त अपनी भक्ति में लीन हो जाता है. इस मंदिर को सुप्रीम कोर्ट दरबार कहते हैं. ऐसा कहा जाता है कि जिस भक्त की समस्या का समाधान चिरहुला और राम सागर में नहीं होता वे सुप्रीम कोर्ट दरबार यानी खेम सागर में अर्जी लगाता है और यहां तो न्याय मिल ही जाता है. इस मंदिर के पुजारी यहां हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करने वाले महात्मा खेमदास के वंशज हैं. पुजारी जी खुद को खेमदास की छटी पीढ़ी का बताते हैं.

यह मंदिर भी अपने मूल स्वरुप में हैं. हमने जब इस मंदिर के स्तम्भों को देखा तो समझ आया कि ये हूबहू रीवा किला परिसर में मौजूद महामृत्युंजय मंदिर की तरह हैं. जिनमे द्वारपालों की प्रतिमाएं हैं. प्राचीन तकनीक से बने इस मंदिर में बैठकर ज्ञान करने से एक सकारात्मक ऊर्जा का आभास होता है, इसका कारण यही है कि इसके मूल स्वरुप में कोई बदलाव नहीं किया गया. आइये इस मंदिर के बारे में पुजारी रामदास शुक्ला से जानते हैं.

इन तीनों मंदिरों के दर्शन के बाद हमने जाना कि क्यों इन्हे हाईकोर्ट, डिस्ट्रिक कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नाम दिए गए हैं. क्योंकि तीनों मंदिरों में विराजे बजरंगबली आकर में क्रमशः एक दूसरे से बड़े हैं इसी लिए तीनों को एक दूसरे का बड़ा भाई कहा जाता है. लेकिन बजरंगबली एक ही हैं, चाहें चिरहुला में हों या खेमदास में, चाहे घर में हों या भक्त के स्मरण में. बजरंगबली अपने भक्तों से भेद नहीं करते। लेकिन भक्तों ने अपनी श्रद्धा से उन्हें अलग-अलग स्थान और नाम जरूर दिए हैं.

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