जगद्गुरु आदिशंकराचार्य ने 1200 वर्ष पूर्व रीवा में बीहर नदी के तट पर एकात्म चिंतन किया था और इस पावन भूमि से पांचवे मठ ‘पंचमठ’ की घोषणा की थी.
रीवा/मध्य प्रदेश: रीवा शहर में स्थापित भगवान आदिशंकराचार्य की तपोभूमि ‘पंचमठा’ के जीर्णोद्धार का लोकार्पण संपन्न हुआ. मध्य प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री एवं रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ल ने ‘पंचमठा’ परिसर का लोकार्पण किया।
पंचमठा का विकास राजेंद्र शुक्ल के कुछ अहम विकास प्रोजेक्ट्स का हिस्सा रहा है. जिस स्थान में आदिशंकराचार्य ने तप किया उसकी दुर्दशा देख राजेंद्र शुक्ल से रहा नहीं गया. जिसके बाद उन्होंने इस पवित्र परिसर के जीर्णोद्धार के लिए पहल शुरू की और आज पंचमठा को वो स्वरुप मिल गया जो बीते 1200 वर्षों से अधूरा था.
ज्यादातर लोगों को यही मालूम है कि भगवान शिव के अवतार जगद्गुरु आदिशंकराचार्य ने देश की चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी. जबकि उन्होंने ‘रेवपट्टनम’ (आज का रीवा) की धरती में भी एकात्म चिंतन कर बीहर नदी के तट पर पांचवे मठ की स्थपना की थी. दुर्भाग्य से बीते 1200 वर्षों में ‘पंचमठा’ गुमनाम रहा, अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहत करता था. जिनके ऊपर पंचमठ के विकास और रखरखाव की जिम्मेदारी थी उन्होंने कभी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया।
विंध्य के दूरदर्शी नेता ‘राजेंद्र शुक्ल’ ने सनातन धर्म की रक्षा करने वाले श्री आदिशंकराचार्य की तपोस्थली की अहमियत को समझा और इस पावन धाम का विकास करने का जिम्मा उठाया। कैबिनेट मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने ‘पंचमठा’ के जीर्णोद्धार करने का प्रोजेक्ट तैयार किया और आज उन्हें हाथों ‘पंचमठा’ के विकासकार्य का लोकार्पण संपन्न हुआ.
पंचमठा
आज से 1200 साल पहले विंध्यांचल पर्वत को पार करते हुए, शिवावतार शंकराचार्य रीवा पधारे थे. तब रीवा जैसा कोई शहर नहीं था. 820 ईस्वीं में रीवा को रेवपट्टनम के नाम से जाना जाता था.
भगवान भोलेनाथ के अवतार आदि शंकराचार्य देश में चार प्रमुख मठों की स्थापना करने के पश्चयात देशाटन में निकले थे और ओंकारेश्वर, काशी, प्रयागराज के बाद रेवपट्ट्नम यानी की रीवा पधारे थे। उन्होंने बीहर नदी के किनारे रह कर एक हफ्ते तक एकात्म चिंतन किया था. कहा जाता है कि अमरकंटक और प्रयागराज के बीच आने-जाने वाले साधु-संत रेवपट्टनम में विश्राम करते थे।
आदि शंकराचार्य रेवपट्ट्नम को आध्यात्मिक केंद्र बनाना चाहते थे। ताकि यहां एकात्म दर्शन और सामाजिक एकता की अलख जगाई जा सके। प्रयागराज, काशी, चित्रकूट, अमरकंटक जैसे क्षेत्र उस वक़्त साधू-संतों के प्रमुख केंद्र थे। इस माध्यम से रेव पट्टनम को भी विकसित किया जाना था। आदिशंकराचार्य रीवा में बिहर नदी के किनारे एक हफ्ते तक ठहरे थे और पंचमठा को पांचवे मठ के रूप में बनाने की घोषणा की थी।
अंततः ‘पंचमठा’ को उसकी पहचान मिली
बीते 1200 सालों में आदि शंकराचार्य जी के द्वारा जो पांचवा मठ रीवा में स्थापित किया गया वो उपेक्षा का शिकार रहा। अगर उनके देहांत के बाद यहां के राजाओं ने मठ की सही तरीके से जिम्मेदारी संभाली होती तो रीवा आज अध्यात्म का केंद्र होता। ठीक वैसे ही जैसे बद्रीधाम, पूरी, रामेश्वरम और द्वारका है। लेकिन अब पांचवे मठ का विकास हो रहा है. मध्य प्रदेश कैबिनेट मंत्री एवं विधयाक राजेंद्र शुक्ल की पहल से बिहर बिछिया नदी के तट पर रिवर फ्रंट बनाया जा रहा है। जिसके अंतर्गत आने वाले पंचमठ का जीर्णोद्धार किया गया है.
पंचमठा में अन्य चार मठों शारदा मठ, ज्योतिर्मठ, श्रृंगेरी मठ और गोवर्धन मठ की झलक देखने को मिलती है. पीछे की तरफ बीहर नदी में रिवर फ्रंट बनाया गया है. पूरे परिसर को ऐसा रूप दिया गया है जो यहां आने वाले दर्शनार्थियों को प्राचीन भारत की याद दिलाता है. अभी पंचमठा का विस्तार होना बाकी है. यहां जगद्गुरु आदिशंकराचार्य की विशाल प्रतिमा स्थापित की जाएगी। शंकराचार्य की ‘रेवपट्टनम’ को आध्यात्मिक केंद्र बनाने की मंशा थी, इस परिसर के जीर्णोद्धार के बाद पंचमठा आध्यात्मिक केंद्र के रूप में उभरेगा।