MP Chunav 2023: देश-प्रदेश की राजनीति एक तरफ और रीवा में टिकट को लेकर चल रही रणनीति एक तरफ. यहां सीट के लिए विचारधारा क्षण-क्षण में बदल रही है. रंगबाजों के रंग बदल रहे हैं, बोलचाल के ढंग बदल रहे हैं. जो बदले नहीं वो सिर्फ हालात हैं.
”मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र अपने उम्मीदवारों का चुनाव करते-करते पार्टियां खुद कन्फ्यूज हो गईं हैं. किसको दें टिकट, किसका उड़ा दें विकेट, किसे बनाएं उम्मीदवार किसे कर दें दरकिनार! बड़ी विडंबना हो गई है. जो सीट की आस में अभी-अभी खड़े हुए थे उन्हें कोई साथ बिठाना नहीं चाह रहा है, जो बड़े नेताओं की सिफारिश के भरोसे बैठे थे, उन्हें अब कोई उठाना नहीं चाह रहा है, बड़ी समस्या हो गई है”.
ये लाइने कोई छंद-चौपाई नहीं रीवा में चल रही राजनीति की सच्चाई है. यहां 4 सीटों के लिए इतना बवाल मचा है कि कार्यकर्ता भी संकोच में पड़ गए हैं, प्रचार किसका करें? पार्टी का! या बगावत करने की सोच रहे नेता का?
विंध्य के राजनीतिक केंद्र ‘रीवा’ की चार सीटों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा उम्मीदवार घोषित करने के बाद से ही ऐसे हालत निर्मित हुए हैं. रीवा से राजेंद्र शुक्ल, सिरमौर से दिव्यराज सिंह, देवतालाब से गिरीश गौतम और मऊगंज से प्रदीप पटेल को टिकट देने के बाद भाजपा गुढ़, त्योंथर, सेमरिया और मनगवां सीट से उम्मीदवारों के नामों पर मंथन कर रही है. लेकिन दूसरे दलों के नेताओं की बीजेपी में शामिल होने की दिलचस्पी और पार्टी के लीडर्स के बगावती तेवर ने मंथन को चिंतन में बदल दिया है. प्रत्याशियों के चयन को लेकर सिर्फ बीजेपी में टेंशन नहीं है बल्कि कांग्रेस भी तनाव में है। रीवा में 4 सीटों के लिए दर्जनों उम्मीदवार आस और घात लगाए बैठे हैं. आस इस लिए ताकि नाम आने के बाद तुरंत तैयारी में लग जाएं और घात इस लिए कि तुरंत दूसरी पार्टी में शामिल होकर वहां टिकट की आस लगा लें.
सिद्धार्थ तिवारी राज
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व श्रीनिवास तिवारी के पौत्र और पूर्व कांग्रेस विधायक स्व सुंदर लाल तिवारी के पुत्र, सिद्धार्थ तिवारी राज इस समय कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में हारने के बाद वे रीवा की त्योंथर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने की जगह एमपी कांग्रेस कमेटी का महामंत्री बना दिया। सूत्रों की माने तो उन्हें गुढ़ सीट से लड़ने का ऑप्शन दिया गया था लेकिन वे त्योंथर की जिद पकड़े हुए हैं. खबर है कि, त्योंथर से चुनाव लड़ने के लिए सिद्धार्थ कांग्रेस को छोड़ दूसरी पार्टी में जा सकते हैं. उनकी प्राथमिक लिस्ट में भाजपा है और वहां काम नहीं बना तो उन्हें आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने से भी कोई परहेज नहीं होगा.
ऐसी जानकारी भी है कि कांग्रेस, सिद्धार्थ तिवारी और उनके नाराज समर्थकों को सरप्राइज करने के लिए उनकी डिमांड पूरी भी कर सकती है लेकिन ‘अमहिया के राज’ ने अपने लिए ”प्लान बी” बना कर रखा हुआ है. सिद्धार्थ के करीबियों का कहना है कि वे इंटरनल पॉलिटिक्स का शिकार हो गए हैं. कांग्रेस के कुछ लोग ‘तिवारी खानदान’ की राजनीति को पूरी तरह से खत्म करने पर आमादा हैं.
त्योंथर से टिकट पाने के लिए तिवारी लाल, देवेंद्र सिंह और वर्तमान विधायक श्यामलाल द्विवेदी भी छटपटा रहे हैं. लेकिन ज्यादा शोर नहीं मचा रहे कि, कहीं कोई भूल न हो जाए और हाईकमान नाराज हो जाएं.
अभय मिश्रा
अभय मिश्रा पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए और इस चुनाव में वापस बीजेपी में आ गए. राजेंद्र शुक्ल के खिलाफ चुनाव लड़ना उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक चूक बन गई और कांग्रेस छोड़ वापस बीजेपी में आना सबसे बड़ी भूल. अब अभय न इधर के रह गए न उधर के, लेकिन अभी भी इधर-उधर करने में लगे हुए हैं. सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि सेमरिया सीट से बेउम्मीद होने के बाद अभय फिर से कांग्रेस में शामिल होने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. उन्होंने इसके लिए अपने राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह से मुलाकात भी की है. उनके समर्थकों ने भी सोशल मीडिया में ‘सेमरिया में कुछ अच्छा होने वाला है’ लिखकर माहौल खींचना शुरू कर दिया है.
एक इंटरनल न्यूज़ ये भी है कि अगर कांग्रेस के पंजे ने अभय का हाथ नहीं थामा तो वे AAP की झाड़ू भी पकड़ सकते हैं. लेकिन इस सम्भावना को भी नाकारा नहीं जा सकता है कि बीजेपी अभय मिश्रा को दल बदलने से रोकने के लिए उनकी पत्नी को टिकट देदे। ऐसी उम्मीद इस लिए है क्योंकि बीजेपी की चौथी लिस्ट में सेमरिया सीट के उम्मीदवार का नाम फाइनल होने के बाद भी अंतिम क्षण में हटा दिया गया था.
बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि बीजेपी में शामिल होने के बाद भी पार्टी के नेता उनसे उखड़े-उखड़े रहते हैं. न उन्हें चुनाव प्रचार के लिए बुलाया जाता है और ना ही मीटिंग में शामिल होने के लिए. इसी लिए अभय भी अब अवसरवाद की राजनीति करने को मजबूर हो गए हैं.
कपिध्वज सिंह
पिछले चुनाव में कांग्रेस से सपा ज्वाइन करने के बाद कपिध्वज सिंह फिर से कांग्रेसी बन गए. लेकिन कोई ठिकाना नहीं है कि वे कब बीजेपी में शामिल होकर वर्तमान विधायक नागेंद्र सिंह की उम्मीदवारी खत्म कर दें, या AAP से गुढ़ का टिकट हासिल कर लें. जैसे डूबता हुआ इंसान सहारा पकड़ने के लिए हर तरफ हाथ-पैर चलाता है उसी तरह कपिध्वज सिंह भी हर राष्ट्रीय पार्टी को अपना विकल्प माने हुए हैं. क्योंकि इस बार वे हारे तो उनके राजनीतिक करियर पर पूर्ण विराम लग सकता है. सूत्रों का कहना है कि गुढ़ से बीजेपी विधायक नागेंद्र सिंह के रिश्ते विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से ठीक नहीं चल रहे हैं. लेकिन कपिध्वज सिंह का विस अध्यक्ष से नेम-प्रेम बरक़रार है.
दरअसल कपिध्वज सिंह को कांग्रेस से टिकट मिलने पर संशय है. क्योंकि चुरहट के पिछला चुनाव हार कर बैठे कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल विंध्य में अपने से बड़ा क्षत्रिय नेता किसी और को बनते नहीं देखना चाहते। कपिध्वज सिंह के रुतबे से हर कोई वाकिफ है और अगर वे कांग्रेस की टिकट से विधायक बन गए तो अजय सिंह राहुल के वर्चस्व में संकट पैदा हो जाएगा। बीजेपी के कुछ क्षत्रीय नेता भी नहीं चाहेंगे कि कपिध्वज सिंह चुनाव जीतें इसी लिए भाजपा इस सीट से पूर्व विधायक पुष्पराज सिंह को भी टिकट दे सकती है. वैसे पुष्पराज सिंह को अमरपाटन सीट देने पर भी विचार चल रहा है.
वैसे बीजेपी से गुढ़ का टिकट पाने के लिए कभी कभार नज़र आने वालीं नेत्रियां भी सक्रिय हो गई हैं. अंजू मिश्रा और माया सिंह जैसी बीजेपी महिला नेता भी मंत्री जी से मीटिंग करने पहुंच रही हैं. पूर्व सांसद चंद्रमणि त्रिपाठी की पुत्री प्रज्ञा त्रिपाठी भी गुढ़ सीट की डिमांड कर रही हैं.
केपी त्रिपाठी
सेमरिया से बीजेपी विधायक केपी त्रिपाठी को दूसरी बार टिकट मिलना लगभग फाइनल हो गया था. चौथी लिस्ट में उनका नाम शामिल करने के बाद भी हटा दिया गया. कहा जाता है कि ऐसा होने के पीछे की वजह अभय मिश्रा हैं, जो इस सीट से खुद को नहीं तो अपनी पत्नी नीलम मिश्रा (पूर्व सेमरिया विधायक) को टिकट दिलाना चाहते हैं. ऐसा इस लिए क्योंकि बीजेपी इस समय महिलाओं को मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में शामिल कर रही है और उन्हें टिकट देकर महिला वोटर्स को अपनी तरफ लाने का प्रयास कर रही है.
सूत्रों का कहना है कि केपी त्रिपाठी को अगर बीजेपी ने टिकट नहीं दी तो वे भी बगावत करने से झिझकेंगे नहीं। लेकिन जहां तक है कि उन्हें टिकट मिलना तय ही है, क्योंकि उनका नाम मंत्री राजेंद्र शुक्ल के खेमे से भेजा गया है.
पंचूलाल प्रजापति
आरक्षित सीट मनगवां में भी बीजेपी अब वर्तमान विधायक पंचूलाल का रिप्लेसमेंट खोज रही थी. भाजपा को रिप्लेसमेंट मिल भी गया है. खबर है कि कांग्रेस छोड़ BJP ज्वाइन करने वाले नरेंद्र प्रजापति को इस बार भारतीय जनता पार्टी मनगवां से टिकट थमा सकती है. क्योंकि ये आरक्षित सीट है इसी लिए यहां उस स्तर की अंदरूनी राजनीति नहीं हो रही लेकिन टिकट न मिलने पर पंचूलाल भी बगावत करने से संकोच नहीं करेंगे।
इन सब आशंकाओं और संभावनाओं का सिलसिला तभी थमेगा जब बीजेपी की पांचवी लिस्ट जारी होगी। भाजपा अब अपनी अगली सूची तभी जारी करेगी जब कांग्रेस अपने पत्ते खोलेगी। CEC की मीटिंग में पितृ पक्ष के बाद 100 नामों की लिस्ट जारी करने निर्णय लिया गया है.