Importance Of Banyan Tree In Hindi: वट वृक्ष जिसे भारतीय संस्कृति में बरगद या बरा बोला जाता है। अंग्रेज़ी में ही इसे बनयान ट्री कहा जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप का एक अत्यंत पूजनीय और विशाल वृक्ष है। इसे संस्कृत में “वटवृक्ष” या “बट” भी कहा जाता है। यह केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म, और लोकजीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। इसके बहुत सारे धार्मिक, पर्यावरण और आयुर्वेदिक महत्व हैं।
वटवृक्ष की विशेषताएं
इसकी शाखाओं से जड़ें नीचे की ओर लटकती हैं, जो ज़मीन में पहुंचकर नया तना बना लेती हैं। इससे यह वृक्ष बहुत विशाल फैलाव वाला हो जाता है। वटवृक्ष सैकड़ों वर्षों तक जीवित रह सकता है। इस वट वृक्ष की आयु अनुमानतः 360 वर्ष मानी जाती है।
वटवृक्ष का धार्मिक महत्व
- वट वृक्ष को त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक और स्वरूप माना गया है।
- माना जाता है इसके जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु, और शाखाओं में शिव का वास होता है।
- ज्येष्ठ मास की अमावस्या को सुहागिन स्त्रियाँ विशेष रूप से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए, वट सावित्री का व्रत रखते हुए वृक्ष की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं।
- भगवत गीता में वटवृक्ष को भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप का प्रतीक बताया है।
वटवृक्ष का पर्यावरण महत्व
- वटवृक्ष बहुत ही विशाल और घना होता है, जो बड़े क्षेत्र में छाया देता है। यह स्थानीय तापमान को संतुलित रखने में मदद करता है।
- इसके साथ ही यह कार्बन डाइऑक्साइड का मुख्य अवशोषण होता है। यह पेड़ बड़ी मात्रा में कार्बन अवशोषित करता है और ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है, जिससे वायु की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- बरगद मिट्टी का संरक्षण भी करता है। इसकी फैली हुई जड़ें मिट्टी को कटाव से बचाती हैं और जलस्तर बनाए रखने में सहायक होती हैं।
- इसके घने तने और शाखाएं अनेक पक्षियों, कीटों और छोटे जीवों को आश्रय देती हैं। जो जैव विविधता के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।
वटवृक्ष का आयुर्वेदिक महत्व
- वटवृक्ष के जड़, छाल, पत्ते, दूध (दुग्धरस) और फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं।
- इसके दुग्धरस का उपयोग फोड़े-फुंसी, मस्से और त्वचा रोगों में किया जाता है। इसमें कसैला और ठंडा प्रभाव होता है।
- इसके छाल का चूर्ण रक्त शुद्धि, मधुमेह, दस्त और लिवर की समस्याओं में फायदेमंद होता है।
- इसके पत्ते जले हुए स्थानों पर ठंडक पहुँचाने और सूजन कम करने में सहायक होते हैं।
- आयुर्वेद के अनुसार इसके जड़ की छाल पुरुषों में वीर्यवृद्धि और स्त्रियों में रजोनिवृत्ति संबंधित समस्याओं के लिए उपयोगी मानी जाती है।
- इसका फल कब्ज, पाचन विकार और वात संबंधी रोगों में लाभकारी।