Regular teachers protest online attendance while guest teachers lead in attendance: मध्य प्रदेश के रीवा जिले सहित अन्य जिलों में शासकीय स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए सार्थक ऐप को अनिवार्य किए जाने के बाद तनाव बढ़ गया है। नियमित शिक्षक संघ ने इस नई व्यवस्था का कड़ा विरोध जताया है, जबकि अतिथि शिक्षकों ने इसे अपनाते हुए शानदार प्रदर्शन किया है। जिला समीक्षा में सामने आया कि अतिथि शिक्षकों की ऑनलाइन उपस्थिति 91 प्रतिशत रही, वहीं नियमित शिक्षकों की हाजिरी का आंकड़ा महज 55 प्रतिशत दर्ज किया गया। इस अंतर ने शिक्षकों की कार्यप्रणाली और सार्थक ऐप की कार्यक्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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शिक्षक संघ का तर्क है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी, बार-बार सर्वर डाउन होने और ऐप की जटिल डिजाइन के कारण उपस्थिति दर्ज करना चुनौतीपूर्ण है। कई शिक्षकों ने बताया कि तकनीकी समस्याओं के चलते वे समय पर हाजिरी नहीं दर्ज कर पा रहे, जिससे उनकी कार्यक्षमता पर अनुचित सवाल उठाए जा रहे हैं। कुछ शिक्षकों ने यह भी आरोप लगाया कि ग्रामीण स्कूलों में नेटवर्क की कमी को नजरअंदाज कर यह व्यवस्था लागू की गई है, जो अव्यवहारिक है।दूसरी ओर, अतिथि शिक्षकों ने सार्थक ऐप को अपनाकर लगभग सतप्रतिशत उपस्थिति दर्ज की है। उनकी यह सक्रियता प्रशासन के लिए सकारात्मक संकेत है, लेकिन नियमित शिक्षकों के कम आंकड़े ने चिंता बढ़ा दी है।
जिला शिक्षा अधिकारी रामराज मिश्रा ने स्थिति को नियंत्रण में बताते हुए कहा कि ऑनलाइन उपस्थिति का आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। उन्होंने आश्वासन दिया कि तकनीकी समस्याओं को जल्द दूर किया जाएगा और सभी शिक्षकों को इस प्रणाली के साथ जोड़ा जाएगा। मिश्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि सार्थक ऐप का उद्देश्य शिक्षण व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।हालांकि, शिक्षक संघ ने मांग की है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तकनीकी सीमाओं को ध्यान में रखकर वैकल्पिक उपाय किए जाएं। उन्होंने सुझाव दिया कि जब तक ऐप की समस्याएं पूरी तरह हल नहीं हो जातीं, तब तक मैनुअल उपस्थिति का विकल्प भी खुला रखा जाए।
यह विवाद मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है, जहां सार्थक ऐप के कार्यान्वयन को लेकर समान शिकायतें सामने आ रही हैं।प्रदेश में सार्थक पोर्टल के तहत यह व्यवस्था नए शिक्षा सत्र से लागू की गई है, जिसका मकसद शिक्षकों की उपस्थिति की सख्त निगरानी और स्कूलों में अनुशासन को बढ़ावा देना है। लेकिन, तकनीकी बाधाओं और शिक्षकों के विरोध ने इसकी राह में चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।