Red Sea Crisis:कौन हैं हूती।रेड सी पर हमले के क्या हैं कारण?

Gulf of Aden यानि अदन की खाड़ी में हूती विद्रोहियों ने अमेरिकी युद्धपोत और एक ब्रिटिश जहाज पर हमला कर दिया।अमेरिका और ब्रिटिश सेना के यूनाइटेड किंगडम मैरीटाइम ऑपरेशंस ने हमले की पुष्टि की है।

19 नवंबर को पहली बार हूती विद्रोहियों ने रेड सी में एक कमर्शियल शिप को हाईजैक कर लिया और उसके बाद ये सिलसिला चलता ही गया.अभी के अमेरिका और ब्रिटैन की शिप्स पर हुआ हमला सबसे ताज़ा है.इसी के साथ अमेरिका के हूती विद्रोहियों से सुरक्षा के लिए बनाया गया बहुराष्ट्रीय नौसैनिक गठबंधन ‘प्रोस्पेरिंग गार्डियन’ पर सवाल खड़े हो जाते हैं जो अमेरिका नै रेड सी में जहाजों की सुरक्षा के लिए लगभग एक महीने पहले बनाया।

बहरहाल,क्यों हो रहे हैं रेड सी में ये हमले?कौन हैं हूती विद्रोही?क्या है मिडिल ईस्ट की पॉलिटिक्स से इनका सम्बन्ध और कैसे ये कैपिटलिस्ट इकॉनमी के लिए सिरदर्द बन गए हैं.जानेंगे ये सब आज इस आर्टिकल में.

इन सब में सबसे पहले मिडिल ईस्ट के एक देश यमन फ्रेम में आता है.हूतियों  की कहानी यमन से अलग नहीं है.यमन मिडिल ईस्ट का एक देश है जिसकी जनसँख्या 3 करोड़ के आसपास है.यमन के उत्तर में सऊदी अरब है,पूर्व में ओमान,पश्चिम में रेड सी और गल्फ ऑफ़ अदन और अरेबियन सी यानि अरब महासागर इसके दक्षिण में है.हूती  यमन का ही एक मिलिटेंट ग्रुप है जिसने यमन के उत्तरी भाग में कब्ज़ा किया हुआ है.और साल 2014 से यमन गृह युद्ध की मार झेल रहा है.हूती और यमन सरकार लड़ाई में एक दुसरे के खिलाफ हैं.इस लड़ाई में आम लोगों की ज़िन्दगी बुरी तरह से प्रभावित है.संयुक्त राष्ट्र की 2022 की एक  रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक इस युद्ध में 1 लाख 50 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है और ये आंकड़ा 1.3 मिलियन तक पहुँच जाएगा 2030 तक ऐसे कयास लगाए गए हैं.हमे पता है गृह युद्ध के नतीजे क्या होते हैं.इतिहास उठा कर देख लें.श्रीलंका से लेकर हर तरह के सिविल वॉर मात्र तबाही लाते हैं और पैटर्न इनका ऐसा होता है कि या तो कोई दो कम्युनिटी या एक कम्युनिटी और सत्ता के बीच देश में ही युद्ध हो जाता है. जो गृह युद्ध की परिभाषा है.लेकिन हम इन सब की बात क्यों कर रहे हैं? क्योंकि इसी से हूती विद्रोहियों का जन्म हुआ है.हूतीयों की कहानी यमन के बिना बेमानी है.

क्या है हूतियों का इतिहास?

साल 1990 में यमन के शहर सईदा में एक रेबेल ग्रुप फॉर्म होता है जिसका नाम दिया जाता है द बिलीविंग यूथ.यहीं से कहानी की शुरुआत होती है. हुसैन बेदरदीन अल हूती इस संगठन का फाउंडर था.संगठन का मकसद था यमन में जायदि इस्लाम जिसे जैदी भी कहते हैं उसकी फिर से स्थापना।जैदी इस्लाम शिया इस्लाम की ही एक ब्रांच है.दरअसल 1000 सालों तक यमन में जैदी राजाओं का शासन था लेकिन साल 1962 में जैदी के आखिरी राजा का क़त्ल हो जाता है और इसी के साथ सत्ता पर सैन्य ताकत बैठती है.लीडर का नाम अली अब्दुल्लाह साले।इनको सपोर्ट मिलता है सऊदी अरब से.सऊदी अरब सुन्नी बहुल राष्ट्र है और अब यहीं से मध्य पूर्व का  एक और देश फ्रेम में आता है ,ईरान।हूती विद्रोहियों को ईरान का समर्थंन प्राप्त है.ईरान शिया बहुल देश है  दुनिया ये बात जानती है. हालाँकि ईरान और हूती दोनों ही इस बात से लगातार इंकार करते रहे हैं.एक वक्त में कमजोर मिलिटेंट ग्रुप के पास आज खुद की मिसाइल्स और आधुनिक हथियार भी हैं.ईरान अमेरिका की लड़ाई का हमे पता ही है.अमेरिका भी यमन सरकार की मदद हूती विद्रोहियों के खिलाफ करता रहा है.डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में हूतियों को आतंकवादी समूह घोषित करने की घोषणा की थी.हाल ही में एक बार फिर अमेरिका ने हूती विद्रोहियों को आतंकी समूह घोषित किया है,यमन की लड़ाई उसमे ईरान की एंट्री ,सऊदी अरब से उसकी लड़ाई,उसमे अमेरिका की एंट्री और अब रेड सी पर हमले से दुनिया भर की पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं जिसमे भारत भी आता है उनपर खासा असर.ये सब कुछ एक बड़ा GEOPOLITICAL EVENT है. बहरहाल, कहानी में पीछे जाते हैं.जब सत्ता पर सैन्य ताकत बैठती है उसे सऊदी अरब की मदद मिलती है और जैदी समुदाय हाशिये पर चला जाता है और इस ग्रुप बेलीविंग यूथ का निर्माण होता है.ग्रुप के फाउंडर के नाम पर ही इन विद्रोहियों ने अपने मिलिटेंट ग्रुप का नाम हूती रखा.ये विद्रोह यमन सरकार के खिलाफ खुलकर चलता है और धीरे धीरे बड़ा रूप ले लेता है.इस लड़ाई में साल 2004 में यमन सरकार द्वाराहुसैन बेदरदीन अल हूती की हत्या हो जाती है जिससे लड़ाई थमने की बजाय और भी ज्यादा  उग्र हो जाती है.उसके बाद हुए युद्ध में सऊदी अरब की मदद के बावजूद यमन सरकार हूती विद्रोहियों से युद्ध हार जाती है और आज की तारीख में यमन का एक तिहाई हिस्सा यानि 70 से 75 फ़ीसदी की आबादी पर हुतियों का कब्ज़ा है.ईरान और सऊदी अरब की प्रॉक्सी वॉर इसका एक महत्वपूर्ण एंगल है कारण हमने जान लिया है.

इन सब में यमन के हालात कैसे होंगे आप अंदाज़ा लगा सकतें हैं.बड़े स्तर पर मानवाधिकारो का उल्लंघन,भुखमरी और गरीबी से जूझता यमन इस युद्ध की भेट चढ़ गया है.देश अपनी 70 फ़ीसदी से ज्यादा की जरूरतों के लिए बाहरी मदद पर आश्रित है.

क्यों हो कर रहे हैं Red Sea पर हमले?

ये तो हुतियों का बैकग्राउंड और यमन पर इन सब के असर की बात थी.अब रेड सी  का मामला आता है.दरअसल रेड सी Maritime Buisness का महत्वपूर्ण स्पॉट है.यहाँ स्थित सुएज कैनाल समुद्र को यूरोप से जोड़ती है.इसलिए ये जगह व्यापार के लिए बेहद जरुरी मानी जाती है. दुनिया भर का 12 फ़ीसदी व्यापार इसी रूट से होता है। ऐसे में इन हमलों से दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं.कई देश अपने रूट बदल रहे हैं लेकिन उसमें और भी खर्चा आ रहा है.लेकिन हूती यहाँ हमला कर क्यों रहे हैं?इसका जवाब बेहद सीधा और सरल है और जुड़ा हुआ है इजराइल फिलिस्तीन के युद्ध से.हूती इस लड़ाई में फिलिस्तीन के सहयोग में हैं और ये हमले इसलिए हो रहे हैं ताकि इजराइल को कोई भी मदद न पहुंचाई जाए.साथ में उन्होंने फिलिस्तीन को मदद पहुँचाने की बात भी कही है. 

भारत उभरती हुई अर्थव्यवस्था है.साथ ही ईरान में हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री S.Jaishankar का दौरा भी हुआ था.इन सब में राजनीतिक इंटेरेट्स, पोलिटिकल इन्तेरेस्ट्स सबकुछ इन्वॉल्व हैं. अब देखने वाली बात है कि भारत इन सबसे कैसे डील करता है और क्या होती है उसकी डिप्लोमेटिक स्ट्रेटेजी।

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