रीवा। रीवा में मौजूद एक ऐसा दिव्य धाम जंहा शक्ति स्वरूपा मां विराजमान है तो यह स्थान पर्यटन के रूप में विकसित है। यहा पहुचने वाले लोग मां का दर्शन पूजन करने के साथ ही परिसर में मौजूद भव्य तालाब के प्रकृति छठा का आंनद भी उठाते है। जी हां हम बात कर रहे रीवा के रानी तालाब की है। जहा नवरात्रि की धूम रहेगी और 22 सिंतबर से 2 अक्टूबर तक नवदुर्गा उत्सव में अल सुबह 4 बजे से मईया के भक्त मंदिर में पहुच कर पूजा-अर्चना करके मां की प्रार्थना करेगे। इस धाम में आस्था, विश्वास, आराधना और भक्ति का विशाल सैलाब उमड़ता है. सिद्धि प्राप्ति के लिए भक्त यहां 9 दिनों तक देवी की आराधना करते है।
भक्तों की मनोकामनाएं होती है पूरी
मां कालिका मंदिर की मान्यता है कि इस सिद्धपीठ में नवरात्रि में आराधना से लोगों को सिद्धि प्राप्त होती है. नवरात्रि के दिनों में यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। इतना ही नही साल के 365 दिन श्रद्धालु इस अलौकिक धाम में आकर मां कालिका के चरणों में अपना शीश झुकाते है. मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ऐसे बना रानी तालाब सिद्ध पीठ
रानी तालाब के बीचों-बीच शिवजी का भव्य और प्राचीन मंदिर स्थित है। ज्योतिष गणना के अनुसार, यहां उत्तर में हनुमान जी और शंकर जी, उत्तर पूर्व के कोने में शिवलिंग, दक्षिण में गणेश जी, पूर्व में काल भैरव हैं. इसलिए इस स्थान को सिद्ध पीठ का दर्जा मिला है। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह में मां कालिका की मूर्ति के साथ भगवान सूर्य सहित शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भैरवी, गणेश जी व हनुमान जी विराजे हैं. वहीं, मां कालिका की रक्षा के लिए आई दो देवियों में से एक दाएं में खोरवा माई और बाएं में घेंघा माई विराजी हैं।
रानी तालाब कालिका मंदिर का क्या है पूजन विधान
नवदुर्गा उत्सव और चौत्र नवरात्रि के दौरान, देवी काली की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, और भक्त देवी के दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में मां कालिका को स्वर्ण आभूषणों और श्रृंगार सामग्री से सजाया जाता है। भक्त देवी को प्रसाद चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। शाम को देवी की आरती की जाती है, और भक्त देवी के मंत्रों का जाप करते हैं। सिद्धि प्राप्त करने के लिए भक्त नौ दिनों तक देवी की आराधना करते हैं। इस मंदिर का धार्मिक महत्व यह है कि रीवा के राजघराने की कुलदेवी होने के नाते, नवविवाहिताएं शादी की रस्मों के बाद सबसे पहले मां काली के दर्शन करती हैं, जिससे इस स्थान का धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है।