MLA Ramniwas Rawat, Nirmala Sapre News; मध्य परदेशी की राजनीति में इन दिनों गजब का खेला चल रहा है. कब कहां से कैसी खबर आ जाए कुछ पता नहीं। आपने कुछ दिनों पहले ही एक खबर सुनी होगी कि कांग्रेस को दो विधायक जिन्हे जनता कांग्रेस निशान पर बटन दबा कर विधानसभा भेजा था. वो पार्टी को उस समय ठोकर मार दिए जिस वक़्त पार्टी को उनकी जरुरत थी. हम बात कर रहे हैं. रामनिवास रावत (Ramniwas Rawat) और निर्मला सप्रे ( Nirmala Sapre) की. अब खबर आ रही है कि ये फिर से कांग्रेस में दमन थाम रहे हैं.
MP Politics: क्या ये सुन के आप भी उतने ही चौंके जितना इनके पार्टी बदलने से कांग्रेस चौंकी थी. जिस वक़्त रामनिवास रावत ने पार्टी बदली उस वक़्त ये अटकलें तेज हो गई कि उनके दल बदलने से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को भारी नुकसान होगा। सागर जिले में एकमात्र सीट कांग्रेस के खाते में आई थी. वो थी बिना, यहां से जीती विधायक निर्मला सप्रे बीजेपी में शामिल हो गईं. अपनी मूल पार्टी को छोड़ने से लेकर अब तक इन विधायकों ने ऐसे संकेत दिए हैं, जिससे लाग रहा है कि वो जल्द ही कांग्रेस में वापसी कर लेंगे और ऐसा होता है तो क्या ये सिर्फ बीजेपी का एक चुनावी स्टंट या प्रेसर पॉलिटिक्स ही मानी जाएगी।
विधानसभा के अभी भी सदस्य हैं
रामनिवास रावत और निर्मला सप्रे ने भाजपा का दामन थम लिया है. लेकिन उन्होंने पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है. मिली जानकारी के अनुसार दोनों ने पार्टी तो बदल ली. लेकिन अब तक विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया है. रामनिवास रावत को तो पार्टी से इस्तीफा दिए हफ्ते भर से ज्यादा हो गया है निर्मला सप्रे को भी पार्टी छोड़े कई दिन हो गए हैं. इस्तीफे के सवाल पर निर्मला सप्रे ने मीडिया से कहा कि अभी तक मैंने विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया है पहले मैं पार्टी नेताओं से चर्चा करुँगी, उसके बाद फैसला लुंगी। हालांकि भाजपा ज्वाइन करने के बाद भी निर्मला सप्रे ने भाजपा के पक्ष में अभी तक कोई प्रचार नहीं किया है.
क्या कहता है दल बदल कानून
ऐसे में ये जान लेना जरूरी है कि दल बदल (Anti Defection ) के बाद इस्तीफा न देना इतनी सुर्खियां क्यों बटोर रहा है. इसके लिए कोई नियम कानून है कि नहीं, कोई भी विधायक जब चाहे तब किसी और पार्टी को ज्वाइन कर ले और उसकी विधायकी भी बानी रहे. असल में दल बदल को लेकर भी कानून हैं. आसान भाषा में समझते हैं.
साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल बदल कानून’ पारित किया गया. और इसे संविधान की दसवीं अनुसूची में जोड़ा गया. इस कानून का मुख्य मकसद है भारतीय राजनीति में दलबदल की परंपरा पर लगाम कसना। इस कानून के तहत कुछ नियम बनाए गए हैं. जो भी निर्वाचित प्रतिनिधि उसे तोड़ता है. वो अपने पद से अयोग्य माना जाता है. जिसके चलते उसे इस्तीफा भी देना पड़ता है.