Ramdhari Singh Dinkar Jayanti 2025 | यह ताव आज के कवि-कोविदों में कहां..! FT. जयराम शुक्ल

Ramdhari Singh Dinkar Jayanti 2025

Ramdhari Singh Dinkar Jayanti 2025, Author: Jayram Shukla | रामधारी सिंह दिनकर नेहरू के करीबी माने जाते थे। प्रधानमंत्री रहते हुए पंड्डिजी ने ही उन्हें राष्ट्रकवि का खिताब बख्शा व राज्यसभा में कांग्रेस की ओर से मनोनीत करवाया।

दिनकर की यशस्वी कृति ..संस्कृति के चार अध्याय ..की भूमिका जवाहरलाल नेहरू ने ही लिखी थी लेकिन जब 1962 के युद्ध में हमारे सैनिक मारे गए तब वो नेहरू की आलोचना करने से भी नहीं चूके, … दिनकर संकेत देते हुए लिखते हैं..

घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है
लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है।
जिस पापी को गुण नहीं, गोत्र प्यारा है
समझो, उसने ही हमें यहां मारा है।

गोत्र प्यारा होने का इशारा नेहरू के रिश्तेदार होने का दावा करने वाले उनके सबसे कृपापात्र ले.जनरल बीएम कौल की तरफ है। जनरल कौल उस समय सेना की दुर्दशा करने और अरुणाचल ( तत्कालीन NEFA) में दुखद हार के जिम्मेदार थे।

इन पंक्तियों को लेकर दिनकर जी के विरोधियों ने पंडित नेहरू के कान भरे। स्थिति यहां तक पहुंची कि दिनकर जी ने राज्यसभा से इस्तीफा देने तक की घोषणा कर दी।

‘लोकपुरुष नेहरू’ जैसी पुस्तक लिखने वाले दिनकर जी समय-बेसमय अपनी तीक्ष्ण रचनाओं से नेहरू जी की लू उतारते रहे।

नेहरू जी के प्रधानमंत्रित्व के उतरार्द्ध में वे जो कुछ भी लिखते चाटुकार दरबार में जाकर उसे नेहरू जी के खिलाफ लिखा बताते। अंततः दिनकर व नेहरू के संबंध कटु हो गए।

दिनकर जी जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के प्रवक्ता से बन गए थे, जो 72 के बाद इंदिरा गाँधी की स्वेच्छाचारिता व तानाशाही के खिलाफ छेड़ा गया था।

दिनकर जी सन् 1974 में भगवान व्येंकटेश बालाजी को अपनी कविताएं अर्पित करने के बाद इस लोक से प्रस्थान कर गए अन्यथा वे भी आपातकाल में जयप्रकाश नारायण, फणीश्वरनाथ रेणु के साथ कारावास भोगते..।

वह इसलिए….!
जयप्रकाश जी तो नेहरू परिवार सर्वाधिक करीब थे। वे कमला नेहरू के लिए लक्ष्मण की भाँति थे। इंदिरा जी तब उनके लिए इंदू थीं और वे उनके प्रिय चाचा।

जब ‘प्रिय चाचा’ ही नहीं बख्शे गए तो दिनकर ऐसी तीखी कविताओं के लिए दिन में ही साँझ बना दिए जाते.. बहरहाल…

दिल्ली के रामलीला मैदान से उनकी कविता की ये पंक्तियां ऐसे गूंजी कि दिल्ली का राजसिंहासन हिल उठा-
दो राह समय के रथ का
घर्रघर्र नाद सुनो
सिंहासन खाली करो
कि जनता आती है)

… नेहरू जी के दरबारी चाटुकारों से व्यथित दिनकर लिखते हैं-

चोरों के जो हितू ठगों के बल हैं
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं
जो छल प्रपंच सब को प्रश्नय देते हैं
या चाटुकार जन की सेवा लेते हैं
यह पाप उन्ही का हमको मार गया है
भारत अपने ही घर में हार गया है।

(रक्षामंत्रालय के जीप घोटाला कांड जिसके प्रथमदृष्टया आरोपी तत्कालीन रक्षामंत्री कृष्णमेनन थे, चीन के संदर्भ में उनके गंभीर कृत्यों की अनदेखी किए जाने जैसे कई प्रसंगों को इस कविता के साथ जोड़कर बाँचा गया।

सन् 62 के चीनयुद्ध में देश की हार के लिए कृष्णमेनन को सबसे ज्यादा दोषी ठहराया गया था। संसद में उत्तेजित सदस्यों ने यही आरोप लगाया यहां तक कि कांग्रेस के एक सदस्य महावीर त्यागी ने खुलेआम तत्कालीन रक्षामंत्री को फटकारा था। उस समय दिनकरजी राज्यसभा के मनोनीत सदस्य थे)

यदि आपने दिनकर जी रचित खंडकाव्य ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ नहीं पढ़ी तो समझिए दिनकर साहित्य के मूल सत्व से अब तक वंचित हैं…

रश्मिरथी के कृष्ण-दुर्योधन वाले प्रसंग के पद से यह कहीं भी कमतर नहीं..तो पढ़िए..

है जहाँ खड्ग, सब पुण्य वहीं बसते हैं।
वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है,
वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है।

तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है,
लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है।
असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है,
पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।

तलवारें सोतीं जहाँ बन्द म्यानों में,
किस्मतें वहाँ सड़ती है तहखानों में।
बलिवेदी पर बालियाँ-नथें चढ़ती हैं,
सोने की ईंटें, मगर, नहीं कढ़ती हैं।

हम दें उस को विजय, हमें तुम बल दो,
दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।
हों खड़े लोग कटिबद्ध वहाँ यदि घर में,
है कौन हमें जीते जो यहाँ समर में ?

हो जहाँ कहीं भी अनय, उसे रोको रे !
जो करें पाप शशि-सूर्य, उन्हें टोको रे !

जा कहो, पुण्य यदि बढ़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में;
तामस बढ़ता यदि गया ढकेल प्रभा को,
निर्बन्ध पन्थ यदि मिला नहीं प्रतिभा को,

रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा।

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