Ram Prasad Bismil Biography In Hindi | रामप्रसाद बिस्मिल केवल क्रांतिकारी ही नहीं थे, वो एक शायर और कवि भी थे। वो राम, अज्ञात और बिस्मिल के तख़ल्लुस से लिखते थे। उन्होंने कई किताबें भी लिखी थीं सुशीलमाला, देशवासियों के नाम सन्देश इत्यादि। अरविंद घोष की योगिक साधना किताब का हिंदी अनुवाद भी किया। उनके दो काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए मन की लहर और स्वदेशी रंग नाम से।
चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है
यह पंक्ति हैं भारत के सुप्रसिद्ध क्रन्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की। वही बिस्मिल जो देश की आज़ादी के लिए हँसते हुए फांसी पर झूल गए। 19 दिसंबर को देश की स्वतंत्रता के अमर बलिदानी रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत का दिन है। ठाकुर रोशन सिंह और अशफ़ाक़उल्ला खान के साथ ही बिस्मिल को 1925 के काकोरी कांड और मैनपुरी षड़यंत्र के लिए 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी।
रामप्रसाद बिस्मिल केवल क्रांतिकारी ही नहीं थे, वो एक शायर और कवि भी थे। वो राम, अज्ञात और बिस्मिल के तख़ल्लुस से लिखते थे। उन्होंने कई किताबें भी लिखी थीं सुशीलमाला, देशवासियों के नाम सन्देश इत्यादि। अरविंद घोष की योगिक साधना किताब का हिंदी अनुवाद भी किया। उनके दो काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए मन की लहर और स्वदेशी रंग नाम से। उन्होंने गोरखपुर जेल में रहते हुए खुद की आत्मकथा भी लिखी थी। रजिस्टर साइज के कागजों में पेंसिल से लिखकर न जाने किस प्रकार तीन खेपों में गुप्त रूप से कांग्रेस नेता दशरथ प्रसाद द्विवेदी के पास भिजवाई थी, इनमें अंतिम खेप तो उनकी फांसी के दो दिन पहले ही द्विवेदी जी प्राप्त हुई थीं। यह आत्मकथा 1928 में कानपुर के प्रताप प्रेस से गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रयासों से “काकोरी के शहीद” नाम से छपी थी। इस आत्मकथा के बारे में बनारसी दास चतुर्वेदी कहते हैं ” बिस्मिल का आत्मचरित्र हिंदी का सर्वश्रेष्ठ आत्मचरित है , जिन परिस्थियों में वह लिखा गया था , उनके बीच में से गुजरने का मौका लाखों में से किसी एक को ही मिलता है। “
अपनी आत्मकथा में बिस्मिल एक बात कहते हैं, वह आज़ादी को महत्ववपूर्ण मानते हैं पर बिना किसी उचित नेतृत्व की आज़ादी को वो सही नहीं मानते। उनके अनुसार 1857 क्रांति की असफलता का भी यही कारण था, उसमे सही नेतृत्व नहीं था।
उनकी कविताएं देशप्रेम और राष्ट्रभक्ति की प्रतिनिधि हैं। उनमे एक छुपा हुआ रोमांटिक पुट भी प्राप्त होता है। भारतभूमि को माँ मानकर वह लिखते हैं –
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं।
अपनी आत्मकथा में एक जगह बिस्मिल लिखते हैं, जेल की कोठरी में रहने के दौरान उन्हें आनंद आ रहा है, क्योंकी उनकी बहुत इच्छा थी कि वह कुछ दिन किसी साधु की गुफा में व्यतीत कर योगाभ्यास करें। साधु की गुफा तो नहीं मिली लेकिन साधना की गुफा तो मिल ही गई और यह इच्छा पूर्ण हो गई। यह साधना देश के लिए कुछ करने की साधना थी। जेल की कोठरी में रहते हुए उन्हें सुयोग्य अवसर प्राप्त हुआ है की अपनी अंतिम बात लिखकर देशवासियों को अर्पित कर दें शायद है उनके जीवन से प्रेरणा लेकर किसी का भला हो जाये। यहीं पर वो कुछ पंक्तियाँ लिखते हैं –
महसूस हो रहे हैं बादे फ़ना के झोंके
खुलने लगे हैं मुझ पर असरार जिंदगी के
बारे आलम उठाया रंगे निशात देखा
आए नहीं हैं यूँ ही अंदाज़ बेहिसी के
वफ़ा पर दिल को सदके जान को नजरें जफ़ा कर दे
मुहब्बत में जो कुछ लाजिम है फ़िदा कर दे
आगे वह लिखते हैं अब तो यही इच्छा है –
बहे बहरे फ़ना में जल्द या रब लाश बिस्मिल की
की भूखी मछलियां हैं जौहरे शमशीर कातिल की
समझ कर फूंका इसको ऐ दागे नाकामी
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजड़े हुए दिल से
उनमे देश प्रेम की उनमे अटूट भावना थी , वह बार-बार इस भूमि में जन्म लेने के बाद यहीं कुर्बान हो जाना चाहते थे, वह लिखते हैं –
यदि देश हित मरना पड़े मुझको सहस्रों बार भी
तो भी मैं इन कष्ट को निज ध्यान में लाऊँ कभी।
हे ईश भारतवर्ष में शात बार मेरा जन्म हो
कारन सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो। ।
बिस्मिल केवल कोरी आज़ादी की बात नहीं करते वह देश में गुलामी और गरीबी जैसी दुर्दशा पर भी लिखते हैं। अपनी आत्मकथा में बिस्मिल क्रांति के बारे में एक बात कहते हैं, वह आज़ादी को महत्ववपूर्ण मानते हैं पर बिना किसी उचित नेतृत्व की आज़ादी को वो सही नहीं मानते। उनके अनुसार 1857 क्रांति की असफलता का भी यही कारण था, उसमे सही नेतृत्व नहीं था। वह क्रांति को भी असफल ही मानते हैं अगर अमेरिका और फ्रांस की तरह राजतन्त्र को पलट कर लोकतंत्र लाया गया पर यह पूंजीवादियों के हाथ में चला जाए , ऐसी क्रांति व्यर्थ
दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा,
एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा।
बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन,
मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा।
ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल में,
हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा।
बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं,
ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा।
अपनी आत्मकथा में अंत में वह देशवासियों से एक विनती करते हैं, जो भी करें सब मिलकर करें, सब मिलकर करें और सब देश की भलाई के लिए करें, इसी से सब का भला होगा। उनका यही सन्देश आज भी प्रासंगिक है। उनकी अंतिम पंक्तियों के साथ देश के वीर शहीदों को नमन है –
मरते बिस्मिल रोशन लहरी अशफ़ाक़ अत्याचार से।
होंगे पैदा सैकड़ों इनकी रुधिर की धार से।