Ram Navami 2025 | ओरछा के रामराजा सरकार की कहानी

Ram Navami 2025: Story Of Ramraja Sarkar In Hindi: अयोध्या भगवान राम की जन्म भूमि है। वनवास से वापस आने के बाद भगवान अयोध्या के राजा भी बने। भगवान रामचन्द्र को समर्पित बहुत सारे मंदिर अयोध्या समेत पूरे देश में हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के ओरछा में भगवान की पूजा राजा के तौर पर होती है, बुंदेला महारानी गणेश कुंवरि द्वारा अयोध्या से भगवान राम को लाने की कथा तो अत्यंत प्रसिद्ध है।

जब राजा और रानी में हुई लड़ाई | Ram Navami 2025

16 वीं शताब्दी की बात है, ओरछा में बुंदेला राजा मधुकरशाह का शासन था। महाराज मधुकरशाह परम कृष्णभक्त थे, लेकिन उनकी पत्नी रानी गणेश कुंवरि भगवान श्रीराम की भक्त थीं। प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार एक बार राजा और रानी में मथुरा और अयोध्या जाने को लेकर विवाद हो गया। जहां राजा मथुरा जाने के लिए कह रहे थे, वहीं महारानी अयोध्या चलने के लिए कह रहीं थीं। विवाद इतना बढ़ गया कि राजा ने रानी को ताना मारते हुए कहा, अयोध्या तो जाइए आप लेकिन इतनी ही बड़ी रामभक्त हैं, तो रामलला को अपने साथ लाइएगा, नहीं तो वापस मत आइएगा।

अयोध्या में रानी की कठोर तपस्या | Ram Navami 2025

अयोध्या पहुँचकर रानी ने सब मंदिर और तीर्थ में दर्शन-पूजन इत्यादि किए। और सरयू नदी के किनारे बैठ कर भगवान रामलला को अपने साथ ओरछा ले जाने हेतु तपस्या करने लगीं। 21 दिन तक जब भगवान ने साथ चलने के कोई संकेत नहीं दिए। तब रानी ने सोचा मेरा ओरछा वापस लौट कर जाना सही नहीं। राजा जी ने मुझे रामलला को साथ लाने के लिए कहा है, अन्यथा लौट कर ना आने के लिए कहा है। व्यंग्य में ही सही, पर मेरे पति ने ऐसा कहा है, इसीलिए अब ओरछा जाना सही नहीं है, इससे अच्छा मैं आत्मघात कर लेती हैं।

जब रानी की गोद में आई रामलला की मूर्ति | Ram Navami 2025

आत्मघात का सोचकर रानी ने, सरयू के गहरे जल में डूब जाने का निश्चय किया और गहरे पानी में छलांग लगा दी। लेकिन रानी ने जैसे ही छलांग लगाई, वैसे ही रामलला की मूर्ति उनके गोद में आ गई और लहरों के थपेड़ों से वह किनारे पर आ गईं। उनके खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। कई लोग मानते हैं, यह रामलला की असली मूर्ति थी, जो मुस्लिम आक्रमणों के भय से पुजारियों ने नदी में फेंक दी थी।

रामलला ने रखी तीन शर्तें | Ram Navami 2025

कहते हैं रामलला ने अयोध्या से ओरछा चलने के लिए तीन शर्ते रानी के सामने रखीं। पहली थी वह केवल पुष्य नक्षत्र पर ही यात्रा करेंगे, जैसे ही पुष्य नक्षत्र समाप्त होगा उनकी यात्रा रुक जाएगी। वह केवल रानी की गोद पर ही रहेंगे, जहां ही रानी उन्हें रख देंगी, वह वहीं स्थापित हो जाएंगी। और तीसरी ओरछा के राजा वही माने जाएंगे। रानी ने रामलला की तीनों शर्तों को स्वीकार कर लिया, और ओरछा महाराज के पास खबर भी भिजवा दी।

रानी ने अपने महल में स्थापित कर दिया | Ram Navami 2025

रानी गणेश कुंवरि रामलला के विग्रह को लेकर अयोध्या से ओरछा के लिए शुभ पुष्यनक्षत्र में चलीं। और शर्त अनुसार आगे बढ़ रहीं थीं, और कोई तीन वर्ष की यात्रा के बाद वह ओरछा पहुंची। यहाँ रामलला के आगमन की सुनकर महाराज ने बहुत ही भव्य मंदिर बनवाना प्रारंभ कर दिया था, लेकिन रामलला के ओरछा आगमन तक पूर्णतः बना नहीं था। इसीलिए रानी रामलला के विग्रह को लेकर अपने महल चलीं गईं और वहीं उन्हें स्थापित कर दिया। तबसे रामलला वहीं स्थापित हो गए और, रामराजा के नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई और उनकी पूजा भी वहीं होने लगी।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सलामी देने की है परंपरा | Ram Navami 2025

चूंकि रियासती दौर में राजाओं के जमाने में, राम लला की पूजा पूरी राजसिक सम्मान के साथ होती थी। वह परंपरा आगे भी चलती रही जब देश आजाद हो गया और देश में लोकतंत्र आ गया। ओरछा के राम राजा सरकार को मध्यप्रदेश सरकार भी प्रचलित परंपरा के अनुसार सम्मान देती है। मध्यप्रदेश पुलिस के जवानों द्वारा भगवान के चार बार की पूजा के समय उन्हें बंदूकों से सलामी दी जाती है। देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने ओरछा आगमन पर, भगवान रामराजा सरकार के सम्मान में ओरछा को नो कट ज़ोन घोषित किया था।

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