Ram Mandir Flag: अयोध्या, राम मंदिर और 22 जनवरी आजकल सबकी जुबाँ और मन-मस्तिष्क पर छाया हुआ है. लगभग सभी ओर चर्चा बस प्रभु श्री राम और उनकी जन्म भूमि अयोध्या की ही हो रही है. जबसे यह पता लगा है कि अयोध्या राज्य ध्वज पर अंकित कोविदार वृक्ष को ढूंढ निकालने वाले ललित मिश्र रीवा के निवासी हैं तब से विंध्य की धरती भी उतनी ही सुर्खिया बटोर रही हैं.
विंध्य से प्रभु श्री राम का गहरा नाता
वैसे तो विंध्य का प्रभु श्री राम से गहरा नाता रहा है. प्रभु राम ने अपने वनवास के दस वर्षों से अधिक का समय विंध्य की धरती पर व्यतीत किया। परन्तु ललित मिश्र के कोविदार वृक्ष की खोज से श्री राम का विंध्य की धरती से नाता दुबारा उभर कर सामने आया है और इसने विंध्य, विशेष कर रीवा को अयोध्या में हो रहे भव्य राम मंदिर के पुनर्निर्माण से सीधा जोड़ दिया है।
वाल्मीकि रामायण में भी कोविदार वृक्ष का है उल्लेख
आपको बता दें इस वृक्ष का वर्णन वाल्मीकि रामायण के भाग 1 के पृष्ठ संख्या 464 के तीसरे सर्ग, 493 के 8वें और 13वें सर्ग और पृष्ठ संख्या 494 के 21वें सर्ग में भी किया गया है और यह कोविदार वृक्ष रीवा के कॉलेज चौराहा स्थित विवेकानंद पार्क सहित अन्य स्थानों पर भी मौजूद है. शब्द साँची की टीम ने ललित मिश्र जी के सहयोग से इस वृक्ष को खोज कर इसका एक छोटा सा वीडियो बनाया जिसे आप अभी स्क्रीन पर देख पा रहे हैं.
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कोविदार को कैसे पहचाने?
कभी-कभी बहुत से लोग कचनार के वृक्ष को ही कोविदार का वृक्ष समझने की गलती कर देते हैं. क्योंकि इनकी संरचना कुछ मिलती जुलती होती है. पर इस वृक्ष की पहचान इसके तने और इसके पत्तियों के माध्यम से आसानी से की जा सकती है. इसकी पत्तिया दो पत्तियों के युग्म से मिल कर बानी होती हैं जो किसी दोने के आकार की दिखाई पड़ती हैं. पत्तियों के बाद इसे, इसके तने से भी पहचाना जा सकता है, वाल्मीकि का कहना है कि इसके तने बिलकुल सफ़ेद रंग के होते हैं जिसे पहचानना बड़ा आसान होता है. वहीँ बात इस वृक्ष के पुष्प की करें तो कश्यप ऋषि के अनुसार इसके पुष्प में गुलाबी रंग में मंदार की नीलिमा मिश्रित रहती है जिससे सम्पूर्ण फूल बैगनी रंग की दिखाई पड़ती है.
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